प्यार, वो एहसास है जो शब्दों से ज़्यादा कामों से दिखाई देता है। यकीन मानो, यीशु मसीह का बलिदान इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने हमसे इतना प्यार किया कि हमारे पापों की माफ़ी के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। उन्होंने बिना कुछ कहे, चुपचाप, वो सारे कोड़े सहे जो असल में हमारी बुराईयों की वजह से हमें मिलने चाहिए थे।
सोचो, यीशु मसीह से बेहतर आदर्श और कौन हो सकता है? उनके जैसा प्यार करना सबसे अनमोल चीज़ है जो हम कर सकते हैं। परमेश्वर चाहता है कि हम एक-दूसरे से वैसे ही प्यार करें जैसे उसने हमसे किया है।
सच्चा प्यार परमेश्वर से ही आता है, वही इसका अटूट स्रोत है। एक बार जब ये प्यार तुम्हारे अंदर आ जाए, तो तुम बिना किसी शर्त के प्यार करना सीख जाओगे। परमेश्वर चाहता है कि एक ऐसी पीढ़ी आए जो प्यार में चले और ज़रूरतमंदों के लिए सब कुछ देने को तैयार रहे।
इस दुनिया में प्यार की बहुत कमी है और तुम इस धरती पर यीशु का प्रतिबिंब बनने के लिए चुने गए हो। प्यार रंग-रूप और सामाजिक स्तर से परे है। ये इस बात पर नहीं निर्भर करता कि दूसरे तुम्हें क्या देते हैं, बल्कि इस पर निर्भर करता है कि तुम दूसरों को कितना दे सकते हो। यही तो प्यार का असली मतलब है।
पर परमेश्वर ने हम पर अपना प्रेम दिखाया। जब कि हम तो पापी ही थे, किन्तु यीशु ने हमारे लिये प्राण त्यागे।
प्रेम धैर्यपूर्ण है, प्रेम दयामय है, प्रेम में ईर्ष्या नहीं होती, प्रेम अपनी प्रशंसा आप नहीं करता।
वह अभिमानी नहीं होता। वह अनुचित व्यवहार कभी नहीं करता, वह स्वार्थी नहीं है, प्रेम कभी झुँझलाता नहीं, वह बुराइयों का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता।
बुराई पर कभी उसे प्रसन्नता नहीं होती। वह तो दूसरों के साथ सत्य पर आनंदित होता है।
वह सदा रक्षा करता है, वह सदा विश्वास करता है। प्रेम सदा आशा से पूर्ण रहता है। वह सहनशील है।
परमेश्वर को जगत से इतना प्रेम था कि उसने अपने एकमात्र पुत्र को दे दिया, ताकि हर वह आदमी जो उसमें विश्वास रखता है, नष्ट न हो जाये बल्कि उसे अनन्त जीवन मिल जाये।
जबकि पवित्र आत्मा, प्रेम, प्रसन्नता, शांति, धीरज, दयालुता, नेकी, विश्वास,
नम्रता और आत्म-संयम उपजाता है। ऐसी बातों के विरोध में कोई व्यवस्था का विधान नहीं है।
किन्तु परमेश्वर करुणा का धनी है। हमारे प्रति अपने महान् प्रेम के कारण
उस समय अपराधों के कारण हम आध्यात्मिक रूप से अभी मरे ही हुए थे, मसीह के साथ साथ उसने हमें भी जीवन दिया (परमेश्वर के अनुग्रह से ही तुम्हारा उद्धार हुआ है।)
इन बातों के अतिरिक्त प्रेम को धारण करो। प्रेम ही सब को आपस में बाँधता और परिपूर्ण करता है।
प्रेम, विश्वसनीयता कभी तुझको छोड़ न जाये, तू इनका हार अपने गले में डाल, इन्हें अपने मन के पटल पर लिख ले।
बिना किसी कारण के किसी को मत कोस, जबकि उस जन ने तुझे क्षति नहीं पहुँचाई है।
किसी बुरे जन से तू द्वेष मत रख और उसकी सी चाल मत चल। तू अपनी चल।
क्यों क्योंकि यहोवा कुटिल जन से घृणा करता है और सच्चरित्र जन को अपनाता है।
दुष्ट के घर पर यहोवा का शाप रहता है, वह नेक के घर को आर्शीवाद देता है।
वह गर्वीले उच्छृंखल की हंसी उड़ाता है किन्तु दीन जन पर वह कृपा करता है।
विवेकी जन तो आदर पायेंगे, किन्तु वह मूर्खों को, लज्जित ही करेगा।
फिर तू परमेश्वर और मनुज की दृष्टि में उनकी कृपा और यश पायेगा।
इसलिए हम जानते हैं कि हमने अपना विश्वास उस प्रेम पर टिकाया है जो परमेश्वर में हमारे लिए है। परमेश्वर प्रेम है और जो प्रेम में स्थित रहता है, वह परमेश्वर में स्थित रहता है और परमेश्वर उसमें स्थित रहता है।
इस दौरान विश्वास, आशा और प्रेम तो बने ही रहेंगे और इन तीनों में भी सबसे महान् है प्रेम।
यीशु ने उससे कहा, “‘सम्पूर्ण मन से, सम्पूर्ण आत्मा से और सम्पूर्ण बुद्धि से तुझे अपने परमेश्वर प्रभु से प्रेम करना चाहिये।’
यह सबसे पहला और सबसे बड़ा आदेश है।
फिर ऐसा ही दूसरा आदेश यह है: ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम कर जैसे तू अपने आप से करता है।’
प्रेम के साथ जीओ। ठीक वैसे ही जैसे मसीह ने हमसे प्रेम किया है और अपने आप को मधुर-गंध-भेंट के रूप में, हमारे लिए परमेश्वर को अर्पित कर दिया है।
और सबसे बड़ी बात यह है कि एक दूसरे के प्रति निरन्तर प्रेम बनाये रखो क्योंकि प्रेम से अनगिनत पापों का निवारण होता है।
हे स्वामी, तू दयालु और कृपापूर्ण परमेश्वर है। तू धैर्यपूर्ण, विश्वासी और प्रेम से भरा हुआ हैं।
क्योंकि मैं मान चुका हूँ कि न मृत्यु और न जीवन, न स्वर्गदूत और न शासन करने वाली आत्माएँ, न वर्तमान की कोई वस्तु और न भविष्य की कोई वस्तु, न आत्मिक शक्तियाँ,
न कोई हमारे ऊपर का और न हमसे नीचे का, न सृष्टि की कोई और वस्तु हमें प्रभु के उस प्रेम से, जो हमारे भीतर प्रभु यीशु मसीह के प्रति है, हमें अलग कर सकेगी।
किन्तु मैं कहता हूँ अपने शत्रुओं से भी प्यार करो। जो तुम्हें यातनाएँ देते हैं, उनके लिये भी प्रार्थना करो।
यदि मुझमें परमेश्वर की ओर से बोलने की शक्ति हो और मैं परमेश्वर के सभी रहस्यों को जानता होऊँ तथा समूचा दिव्य ज्ञान भी मेरे पास हो और इतना विश्वास भी मुझमें हो कि पहाड़ों को अपने स्थान से सरका सकूँ, किन्तु मुझमें प्रेम न हो
भाई चारे के साथ एक दूसरे के प्रति समर्पित रहो। आपस में एक दूसरे को आदर के साथ अपने से अधिक महत्व दो।
यहोवा कहता है, “चाहे पर्वत लुप्त हो जाये और ये पहाड़ियाँ रेत में बदल जायें किन्तु मेरी करूणा तुझे कभी भी नहीं त्यागेगी। मैं तुझसे मेल करूँगा और उस मेल का कभी अन्त न होगा।” यहोवा तुझ पर करूणा दिखाता है और उस यहोवा ने ही ये बातें बतायी हैं।
परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा है किन्तु यदि हम आपस में प्रेम करते हैं तो परमेश्वर हममें निवास करता है और उसका प्रेम हमारे भीतर सम्पूर्ण हो जाता है।
यदि कोई कहता है, “मैं परमेश्वर को प्रेम करता हूँ,” और अपने भाई से घृणा करता है तो वह झूठा है। क्योंकि अपने उस भाई को, जिसे उसने देखा है, जब वह प्रेम नहीं करता, तो परमेश्वर को जिसे उसने देखा ही नहीं है, वह प्रेम नहीं कर सकता।
हे यहोवा, इस भोर के फूटते ही मुझे अपना सच्चा प्रेम दिखा। मैं तेरे भरोसे हूँ। मुझको वे बाते दिखा जिनको मुझे करना चाहिये।
बड़े से बड़ा प्रेम जिसे कोई व्यक्ति कर सकता है, वह है अपने मित्रों के लिए प्राण न्योछावर कर देना।
प्रेम में कोई भय नहीं होता बल्कि सम्पूर्ण प्रेम तो भय को भगा देता है। भय का संबन्ध तो दण्ड से है। सो जिसमें भय है, उसके प्रेम को अभी पूर्णता नहीं मिली है।
और प्रभु एक दूसरे के प्रति तथा सभी के लिए तुममें जो प्रेम है, उसकी बढ़ोतरी करे। वैसे ही जैसे तुम्हारे लिए हमारा प्रेम उमड़ पड़ता है।
और आशा हमें निराश नहीं होने देती क्योंकि पवित्र आत्मा के द्वारा, जो हमें दिया गया है, परमेश्वर का प्रेम हमारे हृदय में उँडेल दिया गया है।
अब देखो जब तुमने सत्य का पालन करते हुए, सच्चे भाईचारे के प्रेम को प्रदर्शित करने के लिए अपने आत्मा को पवित्र कर लिया है तो पवित्र मन से तीव्रता के साथ परस्पर प्रेम करने को अपना लक्ष्य बना लो।
यहोवा के प्रेम और करुणा का तो अत कभी नहीं होता। यहोवा की कृपाएं कभी समाप्त नहीं होती।
हर सुबह वे नये हो जाते हैं! हे यहोवा, तेरी सच्चाई महान है!
जो मेरा साथ नहीं है, मेरा विरोधी हैं। और जो बिखरी हुई भेड़ों को इकट्ठा करने में मेरी मदद नहीं करता है, वह उन्हें बिखरा रहा है।
ताकि उनके मन को प्रोत्साहन मिले और वे परस्पर प्रेम में बँध जायें। तथा विश्वास का वह सम्पूर्ण धन जो सच्चे ज्ञान से प्राप्त होता है, उन्हें मिल जाये तथा परमेश्वर का रहस्यपूर्ण सत्य उन्हें प्राप्त हो वह रहस्यपूर्ण सत्य स्वयं मसीह है।
प्रेम अपने साथी का बुरा कभी नहीं करता। इसलिए प्रेम करना व्यवस्था के विधान को पूरा करना है।
“इसलिये जैसा व्यवहार अपने लिये तुम दूसरे लोगों से चाहते हो, वैसा ही व्यवहार तुम भी उनके साथ करो। व्यवस्था के विधि और भविष्यवक्ताओं के लिखे का यही सार है।
कौन है जो हमें मसीह के प्यार से अलग करेगा? यातना या कठिनाई या अत्याचार या अकाल या नंगापन या जोख़िम या तलवार?
सच्चा प्रेम इसमें नहीं है कि हमने परमेश्वर से प्रेम किया है, बल्कि इसमें है कि एक ऐसे बलिदान के रूप में जो हमारे पापों को धारण कर लेता है, उसने अपने पुत्र को भेज कर हमारे प्रति अपना प्रेम दर्शाया है।
यदि हर दिन यहोवा सच्चा प्रेम दिखएगा, फिर तो मैं रात में उसका गीत गा पाऊँगा। मैं अपने सजीव परमेश्वर की प्रार्थना कर सकूँगा।
संसार को अथवा सांसारिक वस्तुओं को प्रेम मत करते रहो। यदि कोई संसार से प्रेम रखता है तो उसके हृदय में परमेश्वर के प्रति प्रेम नहीं है।
उनको उनके सब संकटो से किसी भी स्वर्गदूत ने नहीं बचाया था। उसने स्वयं ही अपने प्रेम और अपनी दया से उनको छुटकारा दिलाया था।
हे स्वामी, तू दयालु और खरा है। तू सचमुच अपने उन भक्तों को प्रेम करता है, जो सहारा पाने को तुझको पुकारते हैं।
उसके आदेशों का पालन करते हुए हम यह दर्शाते हैं कि हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं। उसके आदेश अत्यधिक कठोर नहीं हैं।
क्योंकि समूचे व्यवस्था के विधान का सार संग्रह इस एक कथन में ही है: “अपने साथियों से वैसे ही प्रेम करो, जैसे तुम अपने आप से करते हो।”
परमेश्वर के गुण गाओ। बस वही एक है जो अद्भुत कर्म करता है। उसका सच्चा प्रेम सदा ही बना रहता है।
संसार की रचना से पहले ही परमेश्वर ने हमें, जो मसीह में स्थित हैं, अपने सामने पवित्र और निर्दोष बनने कि लिये चुना। हमारे प्रति उसका जो प्रेम है उसी के कारण उसने यीशु मसीह के द्वारा हमें अपने बेटों के रूप में स्वीकार किये जाने के लिए नियुक्त किया। यही उसकी इच्छा थी और यही प्रयोजन भी था।
हमारा नियन्ता तो मसीह का प्रेम है क्योंकि हमने अपने मन में यह धार लिया है कि वह एक व्यक्ति (मसीह) सब लोगों के लिये मरा। अतः सभी मर गये।
यदि तेरे भाई को तेरे भोजन से ठेस पहुँचती है तो तू वास्तव में प्यार का व्यवहार नहीं कर रहा। तो तू अपने भोजन से उसे ठेस मत पहुँचा क्योंकि मसीह ने उस तक के लिए भी अपने प्राण तजे।
फिर तुम लोगों में यदि मसीह में कोई उत्साह है, प्रेम से पैदा हुई कोई सांत्वना है, यदि आत्मा में कोई भागेदारी है, स्नेह की कोई भावना और सहानुभूति है
ताकि सब कोई जब यीशु के नाम का उच्चारण होते हुए सुनें, तो नीचे झुक जायें। चाहे वे स्वर्ग के हों, धरती पर के हों और चाहे धरती के नीचे के हों।
और हर जीभ परम पिता परमेश्वर की महिमा के लिये स्वीकार करें, “यीशु मसीह ही प्रभु है।”
इसलिए मेरे प्रियों, तुम मेरे निर्देशों का जैसा उस समय पालन किया करते थे जब मैं तुम्हारे साथ था, अब जबकि मैं तुम्हारे साथ नहीं हूँ तब तुम और अधिक लगन से उनका पालन करो। परमेश्वर के प्रति सम्पूर्ण आदर भाव के साथ अपने उद्धार को पूरा करने के लिये तुम लोग काम करते जाओ।
क्योंकि वह परमेश्वर ही है जो उन कामों की इच्छा और उन्हें पूरा करने का कर्म, जो परमेश्वर को भाते हैं, तुम में पैदा करता है।
बिना कोई शिकायत या लड़ाई झगड़ा किये सब काम करते रहो,
ताकि तुम भोले भाले और पवित्र बन जाओ। तथा इस कुटिल और पथभ्रष्ट पीढ़ी के लोगों के बीच परमेश्वर के निष्कलंक बालक बन जाओ। उन के बीच अंधेरी दुनिया में तुम उस समय तारे बन कर चमको
जब तुम उन्हें जीवनदायी सुसंदेश सुनाते हो। तुम ऐसा ही करते रहो ताकि मसीह के फिर से लौटने के दिन मैं यह देख कर कि मेरे जीवन की भाग दौड़ बेकार नहीं गयी, तुम पर गर्व कर सकूँ।
तुम्हारा विश्वास एक बलि के रूप में है और यदि मेरा लहू तुम्हारी बलि पर दाखमधु के समान उँडेल दिया भी जाये तो मुझे प्रसन्नता है। तुम्हारी प्रसन्नता में मेरा भी सहभाग है।
उसी प्रकार तुम भी प्रसन्न रहो और मेरे साथ आनन्द मनाओ।
प्रभु यीशु की सहायता से मुझे तीमुथियुस को तुम्हारे पास शीघ्र ही भेज देने की आशा है ताकि तुम्हारे समाचारों से मेरा भी उत्साह बढ़ सके।
तो मुझे पूरी तरह प्रसन्न करो। मैं चाहता हूँ, तुम एक तरह से सोचो, परस्पर एक जैसा प्रेम करो, आत्मा में एका रखो और एक जैसा ही लक्ष्य रखो।
यहोवा उत्तम है। उसका प्रेम सदा सर्वदा है। हम उस पर सदा सर्वदा के लिये भरोसा कर सकते हैं!
किन्तु यहोवा कहता है, “क्या कोई स्त्री अपने ही बच्चों को भूल सकती है नहीं! क्या कोई स्त्री उस बच्चे को जो उसकी ही कोख से जन्मा है, भूल सकती है नहीं! सम्भव है कोई स्त्री अपनी सन्तान को भूल जाये। परन्तु मैं (यहोवा) तुझको नहीं भूल सकता हूँ।
हे परमेश्वर, मैं तेरे पवित्र मन्दिर की और दण्डवत करुँगा। मैं तेरे नाम, तेरा सत्य प्रेम, और तेरी भक्ति बखानूँगा। तू अपने वचन की शक्ति के लिये प्रसिद्ध है। अब तो उसे तूने और भी महान बना दिया।
क्योंकि तुम परमेश्वर के चुने हुए पवित्र और प्रियजन हो इसलिए सहानुभूति, दया, नम्रता, कोमलता और धीरज को धारण करो।
तुम्हें आपस में जब कभी किसी से कोई कष्ट हो तो एक दूसरे की सह लो और परस्पर एक दूसरे को मुक्त भाव से क्षमा कर दो। तुम्हें आपस में एक दूसरे को ऐसे ही क्षमा कर देना चाहिए जैसे परमेश्वर ने तुम्हें मुक्त भाव से क्षमा कर दिया।
इन बातों के अतिरिक्त प्रेम को धारण करो। प्रेम ही सब को आपस में बाँधता और परिपूर्ण करता है।
यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की भाषाएँ तो बोल सकूँ किन्तु मुझमें प्रेम न हो, तो मैं एक बजता हुआ घड़ियाल या झंकारती हुई झाँझ मात्र हूँ।
किन्तु जब पूर्णता आयेगी तो वह अधूरापन चला जायेगा।
जब मैं बच्चा था तो एक बच्चे की तरह ही बोला करता था, वैसे ही सोचता था और उसी प्रकार सोच विचार करता था, किन्तु अब जब मैं बड़ा होकर पुरूष बन गया हूँ, तो वे बचपने की बातें जाती रही हैं।
क्योंकि अभी तो दर्पण में हमें एक धुँधला सा प्रतिबिंब दिखायी पड़ रहा है किन्तु पूर्णता प्राप्त हो जाने पर हम पूरी तरह आमने-सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान आंशिक है किन्तु समय आने पर वह परिपूर्ण होगा। वैसे ही जैसे परमेश्वर मुझे पूरी तरह जानता है।
इस दौरान विश्वास, आशा और प्रेम तो बने ही रहेंगे और इन तीनों में भी सबसे महान् है प्रेम।
यदि मुझमें परमेश्वर की ओर से बोलने की शक्ति हो और मैं परमेश्वर के सभी रहस्यों को जानता होऊँ तथा समूचा दिव्य ज्ञान भी मेरे पास हो और इतना विश्वास भी मुझमें हो कि पहाड़ों को अपने स्थान से सरका सकूँ, किन्तु मुझमें प्रेम न हो
तो मैं कुछ नहीं हूँ। यदि मैं अपनी सारी सम्पत्ति थोड़ी-थोड़ी कर के ज़रूरत मन्दों के लिए दान कर दूँ और अब चाहे अपने शरीर तक को जला डालने के लिए सौंप दूँ किन्तु यदि मैं प्रेम नहीं करता तो। इससे मेरा भला होने वाला नहीं है।
तथा आओ, हम ध्यान रखें कि हम प्रेम और अच्छे कर्मों के प्रति एक दूसरे को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं।
हमारी सभाओं में आना मत छोड़ो। जैसे कि कुछों को तो वहाँ नहीं आने की आदत ही पड़ गयी है। बल्कि हमें तो एक दूसरे को उत्साहित करना चाहिए। और जैसा कि तुम देख ही रहे हो-कि वह दिन निकट आ रहा है। सो तुम्हें तो यह और अधिक करना चाहिए।
परमेश्वर के गुण गाओ जिसने अपनी बुद्धि से आकाश को रचा है। उसका सच्चा प्रेम सदा ही बना रहता है।
फिर ऐसा ही दूसरा आदेश यह है: ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम कर जैसे तू अपने आप से करता है।’
और विश्वास के द्वारा तुम्हारे हृदयों में मसीह का निवास हो। तुम्हारी जड़ें और नींव प्रेम पर टिकें।
जिससे तुम्हें अन्य सभी संत जनों के साथ यह समझने की शक्ति मिल जाये कि मसीह का प्रेम कितना व्यापक, विस्तृत, विशाल और गम्भीर है।
और तुम मसीह के उस प्रेम को जान लो जो सभी प्रकार के ज्ञानों से परे है ताकि तुम परमेश्वर की सभी परिपूर्णताओं से भर जाओ।
क्योंकि मसीह यीशु में स्थिति के लिये न तो ख़तना कराने का कोई महत्त्व है और न ख़तना नहीं कराने का बल्कि उसमें तो प्रेम से पैदा होने वाले विश्वास का ही महत्त्व है।
और सबसे बड़ी बात यह है कि एक दूसरे के प्रति निरन्तर प्रेम बनाये रखो क्योंकि प्रेम से अनगिनत पापों का निवारण होता है।
बिना कुछ कहे सुने एक दूसरे का स्वागत सत्कार करो।
प्रेम अमर है। जबकि भविष्यवाणी का सामर्थ्य तो समाप्त हो जायेगा, दूसरी भाषाओं को बोलने की क्षमता युक्त जीभें एक दिन चुप हो जायेंगी, दिव्य ज्ञान का उपहार जाता रहेगा,
तो इसे देखते हुए हम क्या कहें? यदि परमेश्वर हमारे पक्ष में है तो हमारे विरोध में कौन हो सकता है?
हे परमेश्वर, मेरे स्वमी, मैं सम्पूर्ण मन से तेरे गुण गाता हूँ। मैं तेरे नाम का आदर सदा सर्वदा करूँगा।
तू मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसलिये मैं तेरा आदर करूँगा। मैं तुझे प्रेम करता हूँ, ताकि तू जी सके, और मेरा हो सके। इसके लिए मैं सभी मनुष्यों और जातियों को बदले में दे दूँगा।”
लोगों के सामने तुम्हारा प्रकाश ऐसे चमके कि वे तुम्हारे अच्छे कामों को देखें और स्वर्ग में स्थित तुम्हारे परम पिता की महिमा का बखान करें।
मैं बहुत इच्छा रखता हूँ क्योंकि मैं तुमसे मिल कर कुछ आत्मिक उपहार देना चाहता हूँ, जिससे तुम शक्तिशाली बन सको।
या मुझे कहना चाहिये कि मैं जब तुम्हारे बीच होऊँ, तब एक दूसरे के विश्वास से हम परस्पर प्रोत्साहित हों।
अब हे भाईयों, मैं तुमसे विदा लेता हूँ। अपने आचरण ठीक रखो। वैसा ही करते रहो जैसा करने को मैंने कहा है। एक जैसा सोचो। शांतिपूर्वक रहो। जिससे प्रेम और शांति का परमेश्वर तुम्हारे साथ रहेगा।
हे पतियों, अपनी पत्नियों से प्रेम करो। वैसे ही जैसे मसीह ने कलीसिया से प्रेम किया और अपने आपको उसके लिये बलि दे दिया।
किन्तु परमेश्वर करूणापूर्ण था। उसने उन्हें उनके पापों के लिये क्षमा किया, और उसने उनका विनाश नहीं किया। परमेश्वर ने अनेकों अवसर पर अपना क्रोध रोका। परमेश्वर ने अपने को अति कुपित होने नहीं दिया।
किन्तु यदि कोई परमेश्वर के उपदेश का पालन करता है तो उसमें परमेश्वर के प्रेम ने परिपूर्णता पा ली है। यही वह मार्ग है जिससे हमें निश्चय होता है कि हम परमेश्वर में स्थित हैं:
सबका सम्मान करो। अपने धर्म भाइयों से प्रेम करो। परमेश्वर का आदर के साथ भय मानो। शासक का सम्मान करो।
हे भाईयों, तुमसे मैं प्रभु यीशु मसीह की ओर से आत्मा से जो प्रेम पाते हैं, उसकी साक्षी दे कर प्रार्थना करता हूँ कि तुम मेरी ओर से परमेश्वर के प्रति सच्ची प्रार्थनाओं में मेरा साथ दो
अतिथियों का सत्कार करना मत भूलो, क्योंकि ऐसा करतेहुए कुछ लोगों ने अनजाने में ही स्वर्गदूतों का स्वागत-सत्कार किया है।
दुष्ट तो तुरंत ही धन उधार माँग लेता है, और उसको फिर कभी नहीं चुकाता। किन्तु एक सज्जन औरों को प्रसन्नता से देता रहता है।
जब यहोवा मेरी प्रार्थनाएँ सुनता है यह मुझे भाता है।
यहाँ तक मैंने विश्वास बनाये रखा जब मैंने कह दिया था, “मैं बर्बाद हो गया!”
मैंने यहाँ तक विश्वास सम्भाले रखा जब कि मैं भयभीत था और मैंने कहा, “सभी लोग झूठे हैं!”
मैं भला यहोवा को क्या अर्पित कर सकता हूँ मेरे पास जो कुछ है वह सब यहोवा का दिया है!
मैं उसे पेय भेंट दूँगा क्योंकि उसने मुझे बचाया है। मैं यहोवा के नाम को पुकारूँगा।
जो कुछ मन्नतें मैंने मागी हैं वे सभी मैं यहोवा को अर्पित करूँगा, और उसके सभी भक्तों के सामने अब जाऊँगा।
किसी एक की भी मृत्यु जो यहोवा का अनुयायी है, यहोवा के लिये अति महत्वपूर्ण है। हे यहोवा, मैं तो तेरा एक सेवक हूँ!
मैं तेरा सेवक हूँ। मैं तेरी किसी एक दासी का सन्तान हूँ। यहोवा, तूने ही मुझको मेरे बंधनों से मुक्त किया!
मैं तुझको धन्यवाद बलि अर्पित करूँगा। मैं यहोवा के नाम को पुकारूँगा।
मैं यहोवा को जो कुछ भी मन्नतें मानी है वे सभी अर्पित करूँगा, और उसके सभी भक्तों के सामने अब जाऊँगा।
मैं मन्दिर में जाऊँगा जो यरूशलेम में है। यहोवा के गुण गाओ!
जब मै सहायता पाने उसको पुकारता हूँ वह मेरी सुनता है: यह मुझे भाता है।
मसीह ने हमारे लिए अपना जीवन त्याग दिया। इसी से हम जानते हैं कि प्रेम क्या है? हमें भी अपने भाईयों के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देने चाहिए।
सो जिसके पास भौतिक वैभव है, और जो अपने भाई को अभावग्रस्त देखकर भी उस पर दया नहीं करता, उसमें परमेश्वर का प्रेम है-यह कैसे कहा जा सकता है?
हे प्यारे बच्चों, हमारा प्रेम केवल शब्दों और बातों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि वह कर्ममय और सच्चा होना चाहिए।
जब भी डरता हूँ, तो मैं तेरा ही भरोसा करता हूँ।
मैं परमेश्वर के भरोसे हूँ, सो मैं भयभीत नहीं हूँ। लोग मुझको हानि नहीं पहुँचा सकते! मैं परमेश्वर के वचनों के लिए उसकी प्रशंसा करता हूँ जो उसने मुझे दिये।
इसी से अब आगे मैं जीवित नहीं हूँ किन्तु मसीह मुझ में जीवित है। सो इस शरीर में अब मैं जिस जीवन को जी रहा हूँ, वह तो विश्वास पर टिका है। परमेश्वर के उस पुत्र के प्रति विश्वास पर जो मुझसे प्रेम करता था, और जिसने अपने आप को मेरे लिए अर्पित कर दिया।
मैं निश्चल हूँ, मेरी आत्मा शांत है। मेरी आत्मा शांत और अचल है, जैसे कोई शिशु अपनी माता की गोद में तृप्त होता है।
मैं तेरा परमेश्वर यहोवा हूँ। मैंने तेरा सीधा हाथ थाम रखा है। मैं तुझ से कहता हूँ कि मत डर! मैं तुझे सहारा दूँगा।
वह अभिमानी नहीं होता। वह अनुचित व्यवहार कभी नहीं करता, वह स्वार्थी नहीं है, प्रेम कभी झुँझलाता नहीं, वह बुराइयों का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता।
मैं यहोवा, की करूणा के गीत सदा गाऊँगा। मैं उसके भक्ति के गीत सदा अनन्त काल तक गाता रहूँगा।
यहोवा कहता है, “यदि कोई जन मुझ में भरोसा रखता है तो मैं उसकी रक्षा करूँगा। मैं उन भक्तों को जो मेरे नाम की आराधना करते हैं, संरक्षण दूँगा।”
और समूचे धीरज और बढ़ावे का स्रोत परमेश्वर तुम्हें वरदान दे कि तुम लोग एक दूसरे के साथ यीशु मसीह के उदाहरण पर चलते हुए आपस में मिल जुल कर रहो।
मसीह से हमें यह आदेश मिला है। वह जो परमेश्वर को प्रेम करता है, उसे अपने भाई से भी प्रेम करना चाहिए।
देख, तेरे आदेशों का पालन करने का मैं कठिन जतन करता हूँ। हे यहोवा, तेरे सम्पूर्ण प्रेम से मेरा जीवन बनाये रख।
अपने आपको मत छलो। परमेश्वर को कोई बुद्धू नहीं बना सकता क्योंकि जो जैसा बोयेगा, वैसा ही काटेगा।
जो अपनी काया के लिए बोयेगा, वह अपनी काया से विनाश की फसल काटेगा। किन्तु जो आत्मा के खेत में बीज बोएगा, वह आत्मा के द्वारा अनन्त जीवन की फसल काटेगा।
इसलिए आओ हम भलाई करते कभी न थकें, क्योंकि यदि हम भलाई करते ही रहेंगे तो उचित समय आने पर हमें उसका फल मिलेगा।
प्रभु तुम्हारे हृदयों को परमेश्वर के प्रेम और मसीह की धैर्यपूर्ण दृढ़ता की ओर अग्रसर करे।
तो आओ जिस आशा को हमने अंगीकार किया है, हम अडिग भाव से उस पर डटे रहें क्योंकि जिसने हमें वचन दिया है, वह विश्वासपूर्ण है।
वे व्यक्ति सच्ची शांती पायेंगे, जिन्हें तेरी शिक्षाएँ भाती हैं। उसको कुछ भी गिरा नहीं पायेगा।
परमेश्वर के भक्तों, तुम को यहोवा से प्रेम करना चाहिए! यहोवा उन लोगों को जो उसके प्रति सच्चे हैं, रक्षा करता है। किन्तु यहोवा उनको जो अपनी ताकत की ढोल पीटते है। उनको वह वैसा दण्ड देता है, जैसा दण्ड उनको मिलना चाहिए।
बैचेनी के साथ प्रचुर धन उत्तम नहीं, यहोवा का भय मानते रहने से थोड़ा भी धन उत्तम है।
घृणा के साथ अधिक भोजन से, प्रेम के साथ थोड़ा भोजन उत्तम है।
आपसी प्रेम के अलावा किसी का ऋण अपने ऊपर मत रख क्योंकि जो अपने साथियों से प्रेम करता है, वह इस प्रकार व्यवस्था को ही पूरा करता है।
प्रेम धैर्यपूर्ण है, प्रेम दयामय है, प्रेम में ईर्ष्या नहीं होती, प्रेम अपनी प्रशंसा आप नहीं करता।
वह अभिमानी नहीं होता। वह अनुचित व्यवहार कभी नहीं करता, वह स्वार्थी नहीं है, प्रेम कभी झुँझलाता नहीं, वह बुराइयों का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता।
बुराई पर कभी उसे प्रसन्नता नहीं होती। वह तो दूसरों के साथ सत्य पर आनंदित होता है।
वह सदा रक्षा करता है, वह सदा विश्वास करता है। प्रेम सदा आशा से पूर्ण रहता है। वह सहनशील है।
प्रेम अमर है। जबकि भविष्यवाणी का सामर्थ्य तो समाप्त हो जायेगा, दूसरी भाषाओं को बोलने की क्षमता युक्त जीभें एक दिन चुप हो जायेंगी, दिव्य ज्ञान का उपहार जाता रहेगा,
अब हमारा प्रभु स्वयं यीशु मसीह और हमारा परम पिता परमेश्वर जिसने हम पर अपना प्रेम दर्शाया है और हमें परम आनन्द प्रदान किया है तथा जिसने हमें अपने अनुग्रह में सुदृढ़ आशा प्रदान की है।
तुम्हारे हृदयों को आनन्द दे और हर अच्छी बात में जिसे तुम कहते हो या करते हो, तुम्हें सुदृढ़ बनाये।
विचार कर देखो कि परम पिता ने हम पर कितना महान प्रेम दर्शाया है! ताकि हम उसके पुत्र-पुत्री कहला सकें और वास्तव में वे हम हैं ही। इसलिए संसार हमें नहीं पहचानता क्योंकि वह मसीह को नहीं पहचानता।
हे प्यारे मित्रों, हम परस्पर प्रेम करें। क्योंकि प्रेम परमेश्वर से मिलता है और हर कोई जो प्रेम करता है, वह परमेश्वर की सन्तान बन गया है और परमेश्वर को जानता है।