भजन संहिता 119 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)परमेश्वर की व्यवस्था उत्तम है (आलेफ) (आलेफ) 1 धन्य हैं वे जिनका आचरण निर्दोष है, जो प्रभु की व्यवस्था पर चलते हैं, 2 धन्य हैं वे जो प्रभु की सािक्षयां मानते हैं, जो अपने सम्पूर्ण हृदय से प्रभु की खोज करते हैं, 3 जो अन्याय नहीं करते वरन् प्रभु के मार्ग पर चलते हैं। 4 प्रभु, तूने अपने आदेश प्रदान किए हैं कि उत्साहपूर्वक उनका पालन किया जाए। 5 भला हो कि तेरी संविधियों का पालन करने के लिए मेरा आचरण दृढ़ हो जाए। 6 प्रभु, जब मैं तेरी सब आज्ञाओं पर ध्यान करता रहूंगा, तब मैं लज्जित नहीं होऊंगा। 7 जब मैं तेरे धर्ममय न्याय-सिद्धान्तों को सीखूंगा, तब निष्कपट हृदय से तेरी सराहना करूंगा। 8 मैं तेरी संविधियों का पालन करूंगा प्रभु, तू मुझे कदापि मत त्यागना! (बेथ) (बेथ) 9 जवान व्यक्ति अपना आचरण किस प्रकार शुद्ध रख सकता है? प्रभु, तेरे वचन का पालन करके। 10 मैं अपने सम्पूर्ण हृदय से तुझको खोजता हूं; मुझे अपनी आज्ञाओं से विमुख न होने देना! 11 मैंने तेरे वचन अपने हृदय में धारण किए हैं, कि मैं तेरे विरुद्ध पाप न करूं। 12 हे प्रभु, तू धन्य है; तू मुझे अपनी संविधियाँ सिखा। 13 तेरे समस्त न्याय-सिद्धान्तों का मैं अपने मुंह से वर्णन करूंगा। 14 मैं तेरी सािक्षयों के मार्ग से हर्षित होता हूं, जैसे मैं सब प्रकार के धन-धान्य से प्रसन्न होता हूं। 15 मैं तेरे आदेशों का पाठ करूंगा, मैं तेरे मार्गों की ओर दृष्टि करूंगा। 16 मैं तेरी संविधियों से प्रसन्न रहूंगा; मैं तेरे वचन को नहीं भूलूंगा। (गीमेल) (गीमेल) 17 प्रभु, अपने सेवक का उपकार कर, कि मैं जीवित रहूं और तेरे वचन का पालन कर सकूं। 18 तू मेरी आंखें खोल कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं। 19 मैं पृथ्वी पर प्रवासी हूं; प्रभु, मुझ से अपनी आज्ञाएं न छिपा। 20 हर समय तेरे न्याय-सिद्धान्त की अभिलाषा करते-करते मेरा प्राण डूब चुका है। 21 तू अभिमानियों और शापितों को डांटता है, वे तेरी आज्ञाओं से भटक जाते हैं। 22 उनकी निन्दा और अपमान मुझ से दूर कर, क्योंकि मैं तेरी सािक्षयों को मानता हूं। 23 चाहे शासक भी बैठकर मेरे विरुद्ध बातें करें, तो भी मैं, तेरा यह सेवक, तेरी संविधियों का पाठ करूंगा। 24 तेरी सािक्षयां मेरा आनन्द हैं, वे मुझे परामर्श देती हैं। (दालेथ) (दालेथ) 25 मेरे प्राण धूल में मिल गए; प्रभु, तू अपने वचन के अनुसार मुझे पुनर्जीवित कर! 26 जब मैंने अपने आचरण की चर्चा की, तब तूने मुझे उत्तर दिया; मुझे अपनी संविधियां सिखा। 27 प्रभु, तू अपने आदेशों का मार्ग समझा; मैं तेरे आश्चर्यपूर्ण कार्यों का ध्यान करूंगा। 28 वेदना के कारण मेरा प्राण पिघलने लगा है। तू अपने वचन के अनुसार मुझे बलवान बना। 29 प्रभु, असत्य का मार्ग मुझ से दूर कर; मुझ पर कृपा कर अपनी व्यवस्था सिखा। 30 मैंने सत्य का मार्ग चुना है, मैंने तेरे न्याय-सिद्धान्त अपने सम्मुख रखे हैं। 31 हे प्रभु, मैं तेरी सािक्षयों से चिपका हूं; मुझे लज्जित न होने देना। 32 जब तू मेरे हृदय को विशाल बनाएगा, तब मैं तेरी आज्ञाओं के मार्ग पर दौड़ूंगा। (हे) (हे) 33 हे प्रभु, मुझे अपनी संविधियों का मार्ग सिखा; मैं अन्त तक उसे मानता रहूंगा। 34 मुझे समझ दे कि मैं तेरी व्यवस्था को मानूं और पूर्ण हृदय से उसका पालन करूं। 35 अपनी आज्ञाओं के पथ पर मुझे चला, क्योंकि मैं उसमें आनन्दित होता हूं। 36 प्रभु, मेरे हृदय को लालच की ओर नहीं, किन्तु अपनी सािक्षयों की ओर झुका। 37 व्यर्थ वस्तुओं की ओर से मेरी आंखें हटा; मुझे अपने मार्ग के लिए जीवन दे। 38 तेरे भक्तों के लिए तेरी जो प्रतिज्ञा है, उसे अपने सेवक के लिए भी पुष्ट कर। 39 मेरी निंदा दूर कर, उससे मैं डरता हूं; तेरे न्याय-सिद्धान्त उत्तम हैं। 40 मैं तेरे आदेशों की अभिलाषा करता हूं; मुझे अपनी धार्मिकता से पुनर्जीवित कर। (वाव) (वाव) 41 हे प्रभु, तेरी करुणा, तेरी प्रतिज्ञा के अनुसार तेरा उद्धार मुझे प्राप्त हो। 42 तब मैं अपने निन्दकों को उत्तर दे सकूंगा, मैं तेरे वचन पर भरोसा करता हूं। 43 मेरे मुंह से सत्य का वचन कदापि मत छीन, क्योंकि मैं तेरे न्याय-सिद्धान्तों की आशा करता हूं। 44 मैं तेरी व्यवस्था का निरन्तर, युग-युगान्त पालन करता रहूंगा, 45 मैं स्वतंत्रता में जीवन व्यतीत करूंगा; क्योंकि मैंने तेरे आदेशों की खोज की है। 46 मैं राजाओं के समक्ष तेरी सािक्षयों की चर्चा करूंगा; मैं लज्जित नहीं हूंगा। 47 मैं तेरी आज्ञाओं से हर्षित होता हूं; उनसे मैं प्रेम करता हूं। 48 मैं तेरी आज्ञाओं की ओर अपने हाथ फैलता हूं; उनसे मैं प्रेम करता हूं; मैं तेरी संविधियों का पाठ करूँगा। (ज़यिन) (ज़यिन) 49 प्रभु, अपने सेवक से की गई प्रतिज्ञा को स्मरण कर, जिसके द्वारा तूने मुझे आशा प्रदान की थी। 50 मेरी विपत्ति में मेरी यही सांत्वना है, कि तेरा वचन मुझे पुनर्जीवित करता है। 51 यद्यपि अभिमानी व्यक्ति मेरा अधिकाधिक उपहास करते हैं, तो भी मैं तेरी व्यवस्था से विमुख नहीं होता। 52 प्रभु, जब मैं अतीत के तेरे न्याय-सिद्धान्त स्मरण करता हूं, तब मैं स्वयं को दिलासा देता हूं। 53 जो दुर्जन व्यक्ति तेरी व्यवस्था को त्याग देते हैं, उनके कारण मैं क्रोधाग्नि से भस्म होने लगता हूं। 54 मेरे प्रवास के देश में तेरी संविधियां मेरे गीत बनी हैं। 55 प्रभु, मैं रात में तेरा नाम स्मरण करता हूं, मैं तेरी व्यवस्था का पालन करता हूं। 56 यह आशिष मुझे प्राप्त हुई, क्योंकि मैंने तेरे आदेश माने थे। (खेथ) (खेथ) 57 प्रभु, तू मेरा सब-कुछ है! मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं तेरे वचनों का पालन करूंगा। 58 मैं तेरी कृपा के लिए सम्पूर्ण हृदय से गिड़गिड़ाता हूं, प्रभु, अपनी कृपा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर। 59 जब मैं अपने आचरण पर विचार करता हूं, तब अपने पैर तेरी सािक्षयों की ओर मोड़ता हूं। 60 मैं विलम्ब नहीं करता, वरन् तेरी आज्ञा-पालन के लिए शीघ्रता करता हूं। 61 यद्यपि दुर्जनों के फंदे मुझे फंसाते हैं, तो भी मैं तेरी व्यवस्था नहीं भूलता हूं। 62 तेरे धर्ममय न्याय-सिद्धान्तों के कारण आधी रात को उठकर मैं तेरी सराहना करता हूं। 63 मैं उन सब का साथी हूं जो तेरे भक्त हैं, जो तेरे आदेशों का पालन करते हैं। 64 हे प्रभु, पृथ्वी तेरी करुणा से परिपूर्ण है, प्रभु, मुझे अपनी संविधियां सिखा। (टेथ) (टेथ) 65 हे प्रभु, अपने वचन के अनुसार तूने अपने सेवक के साथ भलाई की है। 66 मुझे विवेक और समझ की बातें सिखा; क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं पर विश्वास करता हूं। 67 पीड़ित होने के पूर्व मैं भटक गया था, परन्तु अब मैं तेरे वचनों का पालन करता हूं। 68 तू भला है, और भलाई करता है, मुझे अपनी संविधियां सिखा। 69 अभिमानी व्यक्ति मुझे झूठ से पोतते हैं, किन्तु मैं सम्पूर्ण हृदय से तेरे आदेशों को मानता हूं। 70 उनकी आंखों पर परदा पड़ गया है परन्तु मैं तेरी व्यवस्था से हर्षित हूं। 71 मेरे लिए यह अच्छा था कि मैं पीड़ित हुआ, जिससे मैं तेरी संविधियां सीख सकूं। 72 सोने-चांदी के लाखों टुकड़ों की अपेक्षा तेरे मुंह की व्यवस्था मेरे लिए उत्तम है। (योध) (योध) 73 तेरे हाथों ने मुझे बनाया, और आकार दिया; अब मुझे समझ दे कि मैं तेरी आज्ञाओं को सीखूं। 74 जो तुझसे डरते हैं, वे मुझे देखकर आनन्दित होंगे, क्योंकि मैंने तेरे वचन की आशा की है। 75 प्रभु, मैं जानता हूं कि तेरे न्याय-सिद्धान्त धार्मिक हैं, और तूने मुझे सच्चाई से पीड़ित किया है। 76 मेरी यह विनती है कि जो प्रतिज्ञा तूने अपने सेवक से की थी, उसके अनुसार तेरी करुणा मुझे सांत्वना दे। 77 तेरी असीम अनुकंपा मुझ पर हो जिससे मैं जीवित रहूं; क्योंकि तेरी व्यवस्था मेरा हर्ष है। 78 अभिमानी व्यक्ति लज्जित हों; उन्होंने झूठ बोलकर मुझे ऐंठा है; पर मैं तेरे आदेशों का पाठ करूंगा। 79 जो तुझसे डरते हैं, वे मेरे पास आएं, जिससे वे तेरी सािक्षयों को जान सकें। 80 मैं निर्दोष हृदय से संविधि का पालन करूं, ताकि मुझे लज्जित न होना पड़े। (काफ) (काफ) 81 मेरा प्राण तेरे उद्धार को प्राप्त करने के लिए व्याकुल है; मैं तेरे वचन की आशा करता हूं। 82 मेरी आंखें तेरी प्रतिज्ञा-पूर्ति के लिए बेचैन हैं; मैं यह पूछता हूं : ‘तू कब मुझे सांत्वना देगा?’ 83 मैं धुएं से धुंधलायी मशक के समान जर्जर हो गया हूं; तब भी मैं तेरी संविधियां नहीं भूला हूं। 84 तेरे सेवक की आयु के कितने दिन शेष हैं? प्रभु, तू मेरा पीछा करने वालों का कब न्याय करेगा? 85 अभिमानियों ने मेरे पतन के लिए गड्ढे खोदे हैं; वे तेरी व्यवस्था के अनुरूप आचरण नहीं करते हैं। 86 तेरी समस्त आज्ञाएं विश्वसनीय हैं, वे झूठ-मूठ मेरा पीछा करते हैं, प्रभु, मेरी सहायता कर! 87 उन्होंने मुझे धरती से लगभग मिटा ही डाला था; परन्तु मैंने तेरे आदेशों को नहीं छोड़ा। 88 प्रभु, अपनी करुणा के कारण मुझे पुनर्जीवित कर, ताकि मैं तेरी सािक्षयों का पालन कर सकूं। (लामेध) (लामेध) 89 हे प्रभु, सदा-सर्वदा के लिए तेरा वचन आकाश में स्थिर रहे। 90 तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक है; तूने पृथ्वी को स्थिर किया, वह खड़ी है। 91 आकाश और पृथ्वी तेरे निर्णय से आज भी स्थित हैं; क्योंकि वे तेरे सेवक हैं। 92 यदि तेरी व्यवस्था मेरा हर्ष न होती तो मैं विपत्ति में मर गया होता। 93 मैं तेरे आदेश कभी नहीं भूलूंगा; क्योकि उन्हीं के द्वारा तूने मुझे जीवित किया है। 94 प्रभु, मैं तेरा हूं, मेरी रक्षा कर; क्योंकि मैंने तेरे आदेशों की खोज की है। 95 मुझे नष्ट करने के लिए दुर्जन घात लगाते हैं, किन्तु मैं तेरी सािक्षयों पर विचार करता हूं। 96 मैंने समस्त पूर्णताओं को सीमाबद्ध देखा है, पर तेरी आज्ञा अत्यंत असीम है। (मेम) (मेम) 97 मैं तेरी व्यवस्था से कितना प्रेम करता हूं! दिन-भर मैं उसका पाठ करता हूं। 98 तेरी आज्ञा मेरे शत्रुओं से अधिक मुझे बुद्धिमान बनाती है, क्योंकि वह सदा मेरे साथ है। 99 मेरे सब शिक्षकों की अपेक्षा मुझ में अधिक समझ है; क्योंकि तेरी सािक्षयां मेरा दैनिक पाठ हैं। 100 मैं वृद्धों से अधिक विचार करता हूं, क्योंकि मैं तेरे आदेश मानता हूं। 101 मैं अपने पैरों को हरेक कुपथ से रोकता हूं, जिससे तेरे वचन का पालन करूं। 102 मैं तेरे न्याय-सिद्धान्तों से नहीं हटता हूं, क्योंकि तूने मुझे सिखाया है। 103 तेरे वचन मेरी जीभ को कितने स्वादिष्ट लगते हैं! वे मेरे मुंह में मधु से अधिक मीठे हैं। 104 तेरे आदेशों द्वारा मैं विचार करता हूं; अत: मैं प्रत्येक असत्य पथ से घृणा करता हूं। (नून) (नून) 105 तेरा वचन मेरे पैर के लिए दीपक, और मेरे पथ की ज्योति है। 106 तेरे धर्ममय न्याय-सिद्धान्तों के पालन हेतु मैंने शपथ खाकर संकल्प किया है। 107 मैं अत्यन्त पीड़ित हूं, हे प्रभु, अपने वचन के अनुसार मुझे पुनर्जीवित कर। 108 प्रभु, मैं विनती करता हूं, मेरे मुंह की वंदना-बलि ग्रहण कर, और मुझे अपने न्याय-सिद्धान्त सिखा। 109 मेरा प्राण निरन्तर हथेली पर रहता है, फिर भी मैं तेरी व्यवस्था नहीं भूलता हूं। 110 दुर्जनों ने मेरे लिए जाल बिछा रखा है, परन्तु मैं तेरे आदेशों से नहीं भटकता हूं। 111 मैंने तेरी सािक्षयां सदा के लिए उत्तराधिकार में ग्रहण की हैं; वे मेरे हृदय का हर्ष हैं। 112 तेरी संविधियां पूर्ण करने को सदैव के लिए, अन्त तक मैं अपना हृदय अर्पित करता हूं। (सामेख) (सामेख) 113 मैं दुचित व्यक्ति से घृणा करता हूं, पर मैं तेरी व्यवस्था से प्रेम करता हूं। 114 तू मेरी आड़ और ढाल है; मैं तेरे वचन की आशा करता हूं; 115 दुष्कर्मियो, मुझसे दूर हटो। मैं अपने परमेश्वर की आज्ञाएं मानूंगा। 116 प्रभु, अपने वचन के अनुसार मुझे संभाल ताकि मैं जीवित रहूं, मुझे लज्जित न होने देना; क्योंकि मैंने तेरी आशा की है। 117 प्रभु, मुझे सहारा दे कि मैं बच सकूं, और तेरी संविधियों पर निरन्तर दृष्टि करता रहूं। 118 जो मनुष्य तेरी संविधियों से भटक जाते हैं, उनको तू धिक्कारता है; क्योंकि उनकी चतुराई व्यर्थ है। 119 तू पृथ्वी के सब दुर्जनों को धातु के मैल के समान धोता है; अत: मैं तेरी सािक्षयों से प्रेम करता हूं। 120 प्रभु, तेरे भय से मेरा शरीर कांपता है; तेरे न्याय-सिद्धान्तों से मैं डरता हूं। (अयिन) (अयिन) 121 मैंने न्याय और धार्मिकता के कार्य किये हैं; प्रभु मुझे अत्याचारियों के हाथ मत सौंप। 122 अपने सेवक की भलाई के लिए तू स्वयं जमानत दे; अभिमानी मुझ पर अत्याचार न करने पाएं। 123 मेरी आंखें तेरे उद्धार के लिए, तेरी धर्ममय प्रतिज्ञा-पूर्ति के लिए बेचैन हैं। 124 अपनी करुणा के अनुसार अपने सेवक के साथ व्यवहार कर, प्रभु, मुझे अपनी संविधियां सिखा। 125 मैं तेरा सेवक हूं; मुझे समझ प्रदान कर; जिससे मैं तेरी सािक्षयों का अनुभव कर सकूं। 126 प्रभु, हस्तक्षेप करने का यह समय है; क्योंकि तेरी व्यवस्था का उल्लघंन किया गया है। 127 इसलिए मैं स्वर्ण अथवा कुन्दन से अधिक तेरी आज्ञाओं से प्रेम करता हूं। 128 तेरे समस्त आदेशों के अनुरूप अपने आचरण को ढालता हूं; मैं प्रत्येक असत्य पथ से घृणा करता हूं। (पे) (पे) 129 तेरी सािक्षयां अद्भुत हैं; इसलिए मैं उनको मानता हूं। 130 तेरे वचनों के उद्घाटन से प्रकाश होता है, उससे बुद्धिहीन बुद्धि पाते हैं। 131 मैं तेरे वचन का प्यासा हूं; क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं की अभिलाषा करता हूं। 132 जैसे तू अपने नाम के भक्तों के लिए करता है, वैसे ही तू मेरी ओर उन्मुख हो और मुझ पर कृपा कर। 133 अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेरे पग स्थिर कर; अधर्म को मुझ पर अधिकार न करने दे। 134 मनुष्य के अत्याचारों से मेरा उद्धार कर, ताकि मैं तेरे आदेशों का पालन कर सकूं। 135 प्रभु, अपने मुख की ज्योति अपने सेवक पर प्रकाशित कर; तू मुझे अपनी संविधियां सिखा। 136 मेरी आंखें आंसुओं की धाराएं प्रवाहित करती हैं; क्योंकि लोग तेरी व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं। (साधे) (साधे) 137 हे प्रभु, तू धार्मिक है, और तेरे न्याय-सिद्धान्त सत्यनिष्ठ हैं। 138 धार्मिकता से, परिपूर्ण सच्चाई से तूने अपनी सािक्षयां नियुक्त की हैं। 139 मेरी धुन ही मुझे नष्ट कर रही है; क्योंकि मेरे बैरी तेरे वचन भूल जाते हैं। 140 तेरी प्रतिज्ञा अत्यन्त शोधित है, तेरा सेवक उससे प्रेम करता है। 141 मैं छोटा और तुच्छ हूं, तोभी मैं तेरे आदेशों को नहीं भूलता हूं। 142 तेरी धार्मिकता सदा के लिए धार्मिक है, और तेरी व्यवस्था सत्य है। 143 यद्यपि मैं संकट में हूं, व्यथित हूं, तो भी तेरी आज्ञाएं मेरा हर्ष हैं। 144 तेरी सािक्षयां सदा के लिए धर्ममय हैं, मुझे समझ दे कि मैं जीवित रहूं। (क्रोफ) (क्रोफ) 145 मैं अपने सम्पूर्ण हृदय से तुझे पुकारता हूं, हे प्रभु, मुझे उत्तर दे; मैं तेरी संविधियां मानूंगा। 146 मैं तुझको पुकारता हूं; मुझे बचा, जिससे मैं तेरी सािक्षयों का पालन कर सकूं। 147 मैं प्रात: काल उठता और तेरी दुहाई देता हूं; मैं तेरे वचनों की आशा करता हूं। 148 मेरी आंखें रात्रि-जागरण के पूर्व खुल गईं, ताकि मैं तेरी प्रतिज्ञा का ध्यान कर सकूं। 149 अपनी करुणा के अनुसार मेरी पुकार सुन; हे प्रभु, अपने न्याय-सिद्धान्त के अनुरूप मुझे पुनर्जीवित कर। 150 मेरा पीछा करनेवाले निकट आ गये हैं; उन्होंने षड्यन्त्र रचा है; वे तेरी व्यवस्था से दूर हैं। 151 किन्तु प्रभु, तू निकट है, तेरी सब आज्ञाएं सत्य हैं। 152 बहुत दिनों से मैं तेरी सािक्षयों के द्वारा यह अनुभव कर चुका हूं, कि तूने उनको स्थायी रूप से स्थापित किया है। (रेश) (रेश) 153 प्रभु, मेरी पीड़ा को देख और मुझे छुड़ा; क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था को भूला नहीं हूं। 154 मेरे पक्ष में निर्णय दे और मुझे मुक्त कर; अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप मुझे पुनर्जीवित कर! 155 मुक्ति दुर्जनों से दूर है; क्योंकि दुर्जन तेरी संविधियों को नहीं खोजते। 156 हे प्रभु, तेरी अनुकंपा महान है; तू अपने न्याय-सिद्धान्त के अनुरूप मुझे पुनर्जीवित कर। 157 मेरा पीछा करनेवाले लोग तथा मेरे बैरी अनेक हैं, तो भी मैं तेरी सािक्षयों से नहीं हटता। 158 मैं विश्वासघातकों को देखकर उनसे घृणा करता हूं; क्योंकि वे तेरे वचनों का पालन नहीं करते। 159 देख, मैं तेरे आदेशों से कितना प्रेम करता हूं। हे प्रभु, अपनी करुणा के कारण मुझे पुनर्जीवित कर। 160 सत्य तेरे वचन का सारांश है; तेरे धर्ममय न्याय-निर्णय शाश्वत हैं। (शीन) (शीन) 161 शासक अकारण मेरा पीछा करते हैं, परन्तु मेरा हृदय तेरे वचनों से डरता है। 162 जैसे बड़ी लूट पाने वाला व्यक्ति हर्षित होता है, वैसे मैं भी तेरे वचनों से हर्षित होता हूं। 163 झूठ से मुझे घृणा है, मैं उसका तिरस्कार करता हूं; किन्तु मैं तेरी व्यवस्था से प्रेम करता हूं। 164 तेरे धर्ममय न्याय-सिद्धान्तों के कारण मैं दिन में सात बार तेरी स्तुति करता हूं। 165 प्रभु, तेरी व्यवस्था के प्रेमियों को अपार शांति मिलती है, उन्हें कोई बाधा नहीं होती। 166 हे प्रभु, मैं तेरे उद्धार की आशा करता हूं; मैं तेरी आज्ञाएं पूर्ण करता हूं। 167 मेरा प्राण तेरी सािक्षयों का पालन करता है, मैं उनसे बहुत प्रेम करता हूं। 168 मैं तेरे आदेशों और सािक्षयों का पालन करता हूं; मेरा समस्त आचरण तेरे सम्मुख प्रस्तुत है। (ताव) (ताव) 169 हे प्रभु, मेरी पुकार तेरे सम्मुख पहुंचे; तू अपने वचन के अनुसार मुझे समझ दे। 170 मेरी विनती तेरे सम्मुख पहुंचे; अपने वचन के अनुसार मुझे छुड़ा। 171 मेरे ओंठ निरन्तर तेरा स्तुतिगान करेंगे, कि तू मुझे अपनी संविधियां सिखाता है। 172 मैं तेरे वचन के गीत गाऊंगा, क्योंकि तेरी समस्त आज्ञाएं धर्ममय हैं। 173 प्रभु, तेरा हाथ मेरी सहायता के लिए तत्पर रहे; क्योंकि मैंने तेरे आदेशों को अपने लिए चुना है। 174 हे प्रभु, मैं तेरे उद्धार की अभिलाषा करता हूं; क्योंकि तेरी व्यवस्था मेरा हर्ष है। 175 प्रभु, मैं जीवित रहूं जिससे मैं तेरी स्तुति कर सकूं। तेरे न्याय-सिद्धान्त मेरी सहायता करें। 176 मैं भेड़ के समान मार्ग से भटक गया हूं; प्रभु, अपने सेवक को ढूंढ़; क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं को स्मरण रखता हूं। |
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
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