यशायाह 5:7 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु का यह अंगूर-उद्यान इस्राएल वंश है। यहूदा प्रदेश के निवासी प्रभु के सुन्दर पौधे हैं। प्रभु ने उनसे न्याय की आशा की, पर उसे देखने को मिला: रक्त पात। प्रभु ने उनसे धार्मिकता की आशा की, पर उसे सुनने को मिला: गरीबों का करुण- क्रंदन! पवित्र बाइबल सर्वशक्तिशाली यहोवा का अँगूर का बगीचा इस्राएल का राष्ट्र है और अंगूर की बेलें जिन्हें यहोवा प्रेम करता है, यहूदा के लोग हैं। यहोवा ने न्याय की आशा की थी, किन्तु वहाँ हत्या बस रही। यहोवा ने निष्पक्षता की आशा की, किन्तु वहाँ बस सहायता माँगने वालों का रोना रहा जिनके साथ बुरा किया गया था। Hindi Holy Bible क्योंकि सेनाओं के यहोवा की दाख की बारी इस्राएल का घराना, और उसका मनभाऊ पौधा यहूदा के लोग है; और उसने उन में न्याय की आशा की परन्तु अन्याय देख पड़ा; उसने धर्म की आशा की, परन्तु उसे चिल्लाहट ही सुन पड़ी! पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) क्योंकि सेनाओं के यहोवा की दाख की बारी तो इस्राएल का घराना है, और उसका प्रिय पौधा यहूदा के लोग हैं; और उसने उनमें न्याय की आशा की परन्तु अन्याय दिखाई पड़ा; उसने धर्म की आशा की, परन्तु उसे चिल्लाहट ही सुनाई पड़ी! सरल हिन्दी बाइबल क्योंकि इस्राएल वंश सर्वशक्तिमान याहवेह की दाख की बारी है, और यहूदिया की प्रजा उनका प्रिय पौधा. उन्होंने न्याय मांगा, लेकिन अन्याय मिला; उन्होंने धर्म चाहा, लेकिन अधर्म मिला. इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 क्योंकि सेनाओं के यहोवा की दाख की बारी इस्राएल का घराना, और उसका प्रिय पौधा यहूदा के लोग है; और उसने उनमें न्याय की आशा की परन्तु अन्याय देख पड़ा; उसने धार्मिकता की आशा की, परन्तु उसे चिल्लाहट ही सुन पड़ी! (भज. 80:8, मत्ती 3:8-10) |
मैं अपने निज लोग इस्राएलियों के लिए एक स्थान निर्धारित करूँगा। मैं उन्हें वहाँ बसाऊंगा जिससे वे अपने स्थान में निवास करेंगे, और उन्हें फिर नहीं सताया जाएगा। दुर्जन उन्हें फिर दु:ख नहीं देंगे, जैसे वे पहले करते थे,
उनके द्वारा सताए गए गरीबों की दुहाई परमेश्वर तक पहुँची, और उसने पीड़ितों की चीख-पुकार सुनी।
प्रभु ने कहा, ‘मैंने निश्चय ही अपनी प्रजा की, जो मिस्र देश में है, दु:ख-पीड़ा देखी है। उनसे बेगार कराने वालों के कारण उत्पन्न उनकी दुहाई सुनी है। मैं उनके दु:ख को जानता हूं।
जो मनुष्य गरीब की दुहाई सुनकर कान बन्द कर लेता है, वह जब स्वयं सहायता के लिए पुकारेगा तब उसकी दुहाई भी नहीं सुनी जाएगी।
तब मैंने पुनर्विचार किया कि सूर्य के नीचे धरती पर कितना अत्याचार होता है। जिन पर अत्याचार होता है, वे आंसू बहाते हैं, पर उनके आंसू पोंछनेवाला कोई नहीं है। अत्याचार करनेवालों के पास शक्ति थी, किन्तु आंसू बहानेवालों के पास उन्हें सान्त्वना देनेवाला भी नहीं था।
जो नगरी सती-साध्वी थी, वह कैसे वेश्या बन गई! वह न्याय-प्रिय थी, उसमें धर्म का निवास था। पर अब? वहाँ हत्यारे बसे हुए हैं।
सिर से पैर तक, तुममें स्वास्थ्य का चिह्न नहीं रहा, केवल घाव, चोट और सड़े हुए जख्म! उनका न मवाद पोंछा गया, न उनपर पट्टी बांधी गई, और न तेल लगाकर उन्हें ठण्डा ही किया गया।
प्रभु ने अपने निज लोगों के धर्मवृद्धों और शासकों से बहस आरम्भ की : ‘तुमने ही अंगूर-उद्यान उजाड़ा है, तुमने ही गरीब को लूटा है और उसका माल अपने घर में रखा है।
तुम किस उद्देश्य से लोगों को रौंदते हो, गरीबों को पीसते हो?’ स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु, स्वामी की यह वाणी है।
अत: इस्राएल का पवित्र परमेश्वर यों कहता है: “तुमने मेरे संदेश को तुच्छ समझा; तुम अत्याचार और कुटिलता पर भरोसा करते हो, तुम अत्याचार और कुटिलता का सहारा लेते हो;
उसने भूमि को खोदा, उसके पत्थर-कंकड़ बीने, और उसमें उत्तम जाति की अंगूर-बेल लगाई। उसने अंगूर-उद्यान के मध्य एक मचान बनाया, और वहाँ अंगूर-रस के लिए कुण्ड खोदा। उसने आशा की, कि अंगूर-उद्यान में उसे मीठे अंगूर मिलेंगे, पर उसमें केवल खट्टे अंगूर लगे!
हमने प्रभु को अस्वीकार किया; उसके प्रति अपराध किया; अपने परमेश्वर का अनुसरण करना छोड़ दिया, उससे अपना मुंह फेर लिया। हमने अत्याचार और विरोध की बातें कहीं, हमने मन में झूठी बातें गढ़ीं, और उनको अपने मुंह से निकाला भी।
अत: न्याय ने हम से मुंह मोड़ लिया; धार्मिकता हमसे दूर चली गई। चौराहे पर सच्चाई की धज्जियाँ उड़ गईं, सद्आचरण प्रवेश नहीं पा सकता।
कोई भी व्यक्ति सच्चाई से नालिश नहीं करता, और न कोई ईमानदारी से मुकदमा लड़ता है। वे सब झूठे तर्कों पर भरोसा करते हैं, वे झूठ ही बोलते हैं, उन्हें अनिष्ट का गर्भ रहता है, और वे अधर्म को जन्म देते हैं!
जैसे जवान पुरुष कुंआरी कन्या से विवाह करता है वैसे ही तेरा पुन: निर्माण करनेवाले तुझ से विवाह करेंगे। जैसे दूल्हा अपनी दुल्हिन से आनन्दित होता है वैसे ही तेरा परमेश्वर तुझसे हर्षित होगा।’
अन्य देश के राजाओं ने, अनेक चरवाहों ने मेरे अंगूर-उद्यान को उजाड़ दिया, मेरे “निज भाग” को रौंद डाला। उन्होंने मेरे सुन्दर उद्यान को वीरान निर्जन प्रदेश बना दिया।
एक टोकरी के फल मौसम के प्रथम फलों के सदृश बहुत अच्छे हैं। किन्तु दूसरी टोकरी में खराब फल हैं, जो इतने खराब हैं कि कोई उन को खा भी नहीं सकता।
बेबीलोन के पतन की आवाज से पृथ्वी कांप उठेगी, और उसके हाहाकार का स्वर विश्व के राष्ट्रों में सुनाई देगा।’
‘देश के साधारण-जन भी शोषण-अन्याय करते और चोरी-डकैती करते हैं। उन्होंने गरीबों और दीन-दरिद्रों पर अत्याचार किया है। उन्होंने प्रवासियों को अन्यायपूर्वक लूटा है।
इस्राएल एक लहलहाती दाख-लता है। उसमें फल भी लगते हैं। पर जैसे-जैसे उसके फलों की वृद्धि होती है वह देवी-देवताओं की वेदियों की संख्या बढ़ाता जाता है। जैसे-जैसे उसका देश उन्नति करता है, वह पूजा-स्तम्भों को सुन्दर बनाता है।
ओ यहूदा कुल, तेरे धनवान लोगों में हिंसावृत्ति है, तेरे नागरिक झूठ बोलते हैं; उनकी बातें कपटपूर्ण होती हैं।
ओ मानव, प्रभु ने तुझे बताया है कि उचित क्या है, और वह तुझसे क्या चाहता है। यही न कि तू न्याय-सिद्धान्त का पालन करे करुणा से प्रेम करे, और नम्रतापूर्वक अपने परमेश्वर के मार्ग पर चले?
तू मुझे दुष्कर्म क्यों दिखाता है? समाज में ये आपदाएँ क्यों हैं? मैं अपनी आंखों से विनाश और हिंसा को देखता हूं। लड़ाई-झगड़े होते हैं।
तेरा प्रभु परमेश्वर तेरे मध्य में विराजमान है। वह महायोद्धा है। वही विजय प्रदान करता है। वह तुझसे प्रसन्न होगा, आनन्दित होगा। वह अपने प्रेम में तुझे पुन: संजीव करेगा। तुझे आनन्दित देख, उत्सव के दिन की तरह वह आनन्द-विभोर हो उठेगा।’ प्रभु कहता है, ‘मैं तुझसे विनाश को दूर करूंगा, जिससे तुझे उसके कारण अपमान न सहना पड़े।
“ढोंगी शास्त्रियो और फरीसियो! धिक्कार है तुम्हें! तुम पुदीने, सौंफ और जीरे का दशमांश तो देते हो, किन्तु धर्म-व्यवस्था की मुख्य बातों − न्याय, करुणा और विश्वास की उपेक्षा करते हो। तुम्हारे लिए उचित तो यह था कि तुम इन्हें करते रहते और उन को भी नहीं छोड़ते!
तो क्या परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था नहीं करेगा, जो दिन-रात उसकी दुहाई देते रहते हैं? क्या वह उनके विषय में देर करेगा?
वह उस डाली को, जो मुझ में नहीं फलती, काट देता है और उस डाली को, जो फलती है, छाँटता है, जिससे वह और भी अधिक फल उत्पन्न करे।
तू सावधान रहना। ऐसा न हो कि यह अधम विचार तेरे हृदय में आए, “सातवां वर्ष, ऋण-मुक्ति का वर्ष निकट है” , और तू अपने गरीब भाई-बहिन को अनुदार दृष्टि से देखने लगे, और उसे कुछ न दे। वह तेरे विरुद्ध प्रभु की दुहाई दे सकता है, और यह तेरे लिए एक पाप-कर्म होगा।
मजदूरों ने तुम्हारे खेतों की फसल लुनी और तुमने उन्हें मजदूरी नहीं दी। वह मजदूरी पुकार रही है और लुनने वालों की दुहाई स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु के कानों तक पहुँच गयी है।