तब यहोवा ने देखा कि पृथ्वी पर मनुष्य की दुष्टता बढ़ गई है, और उसके मन का प्रत्येक विचार निरंतर बुरा ही होता है।
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तब यहोवा ने देखा कि पृथ्वी पर मनुष्य की दुष्टता बढ़ गई है, और उसके मन का प्रत्येक विचार निरंतर बुरा ही होता है।
तब यहोवा ने मनमोहक सुगंध पाकर अपने मन में कहा, “मैं फिर कभी मनुष्य के कारण भूमि को शाप न दूँगा, यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है वह बुरा ही है। जैसा मैंने प्रत्येक प्राणी को अब नाश किया है, वैसा फिर कभी न करूँगा।
मूर्ख अपने मन में कहता है, “परमेश्वर है ही नहीं।” वे भ्रष्ट हैं और घृणित कार्य करते हैं। ऐसा कोई नहीं जो भलाई करता हो।
मूर्ख अपने मन में कहता है, “परमेश्वर है ही नहीं।” वे भ्रष्ट हैं, और अधर्म के घृणित कार्य करते हैं। ऐसा कोई नहीं जो भलाई करता हो।
क्योंकि मन से बुरे बुरे विचार, हत्या, परस्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निंदा निकलती हैं।
परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, कामुकता, कुदृष्टि, निंदा, अहंकार और मूर्खता निकलती हैं।
तब यीशु ने उनसे कहा :“तुम अपने आपको मनुष्यों के सामने धर्मी ठहराते हो, परंतु परमेश्वर तुम्हारे मनों को जानता है; क्योंकि जो मनुष्यों में सम्मानित है वह परमेश्वर की दृष्टि में घृणित है।
जब वह तेरे पास रही, तो क्या वह तेरी न थी? और जब बिक गई तो क्या तेरे अधिकार में न थी? फिर तेरे मन में ऐसा करने का विचार क्यों आया? तूने मनुष्यों से नहीं, परंतु परमेश्वर से झूठ बोला है।”
इसलिए अपनी इस बुराई से पश्चात्ताप कर और प्रभु से प्रार्थना कर, संभव है कि तेरे मन का विचार क्षमा किया जाए;
क्योंकि जब हम शारीरिक थे तो हमारी लालसाएँ जो व्यवस्था के अनुसार पापमय थीं, हमारे अंगों में मृत्यु का फल लाने के लिए कार्य करती थीं।
परंतु पाप ने आज्ञा के द्वारा अवसर पाकर मुझमें हर प्रकार का लालच उत्पन्न किया; क्योंकि व्यवस्था के बिना पाप मृत है।
इसलिए जो कुछ तुममें सांसारिक है उसे मार डालो, जैसे व्यभिचार, अशुद्धता, कामुकता, बुरी लालसा, तथा लोभ को जो मूर्तिपूजा है।
हम भी पहले निर्बुद्धि, आज्ञा न माननेवाले, भ्रम में पड़े हुए, तथा विभिन्न प्रकार की लालसाओं और भोग-विलास के दासत्व में थे, तथा बुराई और ईर्ष्या में जीवन व्यतीत करते थे। हम घृणित थे और एक दूसरे से घृणा करते थे।