प्रभु परमेश्वर ने मनुष्य से कहा, ‘तूने अपनी पत्नी की बात सुनी, और उस पेड़ का फल खाया जिसके विषय में मैंने आज्ञा दी थी कि “उसका फल न खाना।” अतएव तेरे कारण भूमि शापित हुई। उसकी फसल खाने के लिए तुझे जीवनभर कठोर परिश्रम करना पड़ेगा।
सभोपदेशक 2:23 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) सच पूछो तो उसके जीवन के सब दिन दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम सन्तोष नहीं, वरन् सन्ताप उत्पन्न करता है। रात में भी उसके मन को चैन नहीं मिलता। यह भी व्यर्थ है। पवित्र बाइबल अपने सारे जीवन में वह कठिन परिश्रम करता रहा किन्तु पीड़ा और निराशा के अतिरिक्त उसके हाथ कुछ भी नहीं लगा। रात के समय भी मनुष्य का मन विश्राम नहीं पाता। यह सब भी अर्थहीन ही है। Hindi Holy Bible उसके सब दिन तो दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम खेद के साथ होता है; रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्थ ही है। पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) उसके सब दिन तो दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम खेद के साथ होता है; रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्थ ही है। नवीन हिंदी बाइबल उसके सब दिन तो दुःखों से भरे रहते हैं, और उसका कार्य कष्टदायक होता है; यहाँ तक कि रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्थ है। सरल हिन्दी बाइबल वास्तव में सारे जीवन में उसकी पूरी मेहनत दुःखों और कष्टों से भरी होती है; यहां तक की रात में भी उसके मन को और दिमाग को आराम नहीं मिल पाता. यह भी बेकार ही है. इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 उसके सब दिन तो दुःखों से भरे रहते हैं, और उसका काम खेद के साथ होता है; रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्थ ही है। |
प्रभु परमेश्वर ने मनुष्य से कहा, ‘तूने अपनी पत्नी की बात सुनी, और उस पेड़ का फल खाया जिसके विषय में मैंने आज्ञा दी थी कि “उसका फल न खाना।” अतएव तेरे कारण भूमि शापित हुई। उसकी फसल खाने के लिए तुझे जीवनभर कठोर परिश्रम करना पड़ेगा।
याकूब ने फरओ को उत्तर दिया, ‘मेरे प्रवास की अवधि कुल एक सौ तीस वर्ष हुई है। मेरे जीवन के दिन थोड़े हैं और वे बुरे बीते हैं। अभी मैंने अपने जीवन के उतने दिन व्यतीत नहीं किए हैं जितने मेरे पूर्वजों ने अपने प्रवास काल में बिताए थे।’
उस रात सम्राट क्षयर्ष सो न सका। उसने ‘इतिहास-ग्रन्थ’ लाने का आदेश दिया, जिसमें महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन लिखा गया था। ये घटनाएँ सम्राट के सम्मुख पढ़ी गईं।
तुम व्यर्थ ही तड़के उठते, और देर से सोते हो, तुम व्यर्थ ही कठोर परिश्रम की रोटी खाते हो, क्योंकि प्रभु ही अपने प्रियजनों को नींद प्रदान करता है।
जितने दिन तूने हमें पीड़ित किया, जितने वर्ष हमने दु:ख भोगा उतने ही समय तक हमें आनन्दित कर।
इस आकाश के नीचे पृथ्वी पर जो होता है, बुद्धि से उसकी खोजबीन करने और उसका भेद समझने के लिए मैंने अपना मन लगाया। यह एक कष्टप्रद कार्य है, जिसे परमेश्वर ने मनुष्यों को इसी कार्य में व्यस्त रहने के लिए सौंपा है।
तब मैंने अपने कामों पर विचार किया, मैंने उस परिश्रम पर भी सोचा जो मैंने उन कामों पर किया था। मुझे अनुभव हुआ कि यह सब निस्सार है− यह मानो हवा को पकड़ना है। इस सूर्य के नीचे धरती पर मनुष्य के काम और परिश्रम से कुछ लाभ नहीं।
मजदूर के लिए वरदान है− मीठी नींद, चाहे वह आधा पेट खाए चाहे पेट भर। किन्तु धनवान का धन बढ़ने से उसकी आंखों से नींद उड़ जाती है।
उसने व्यर्थ ही परिश्रम किया, उसने अपना सम्पूर्ण जीवन अन्धकार और दु:ख में, चिन्ता और रोग में, असन्तोष में व्यतीत किया।
जब मैंने बुद्धि प्राप्त करने के लिए, तथा पृथ्वी पर होने वाले कार्य-व्यापार को समझने के लिए मन लगाया, और जब मैंने यह जानने का प्रयत्न किया कि कैसे मनुष्य रात-दिन जागते रहते हैं,
तत्पश्चात् सम्राट दारा अपने महल में चला गया। उसने उस रात भोजन नहीं किया। उसने अपने मनोरंजन करनेवालों को मना कर दिया; अत: उस रात में उसके पास कोई नहीं आया। उसकी आंखों से नींद उड़ गई।
वे शिष्यों का मन सुदृढ़ करते और उन्हें विश्वास में स्थिर रहने के लिए प्रोत्साहित करते थे, और कहते थे कि हमें बहुत-से कष्ट सह कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना है।