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अय्यूब 14:1 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

1 ‘स्‍त्री से जन्‍मा मनुष्‍य अल्‍पायु होता है; उसका सारा जीवन दु:ख से भरा रहता है।

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पवित्र बाइबल

1 अय्यूब ने कहा, “हम सभी मानव है हमारा जीवन छोटा और दु:खमय है!

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Hindi Holy Bible

1 मनुष्य जो स्त्री से उत्पन्न होता है, वह थोड़े दिनों का और दुख से भरा रहता है।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

1 “मनुष्य जो स्त्री से उत्पन्न होता है, वह थोड़े दिनों का और दु:ख से भरा रहता है।

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सरल हिन्दी बाइबल

1 “स्त्री से जन्मे मनुष्य का जीवन, अल्पकालिक एवं दुःख भरा होता है.

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019

1 “मनुष्य जो स्त्री से उत्पन्न होता है, उसके दिन थोड़े और दुःख भरे है।

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अय्यूब 14:1
20 क्रॉस रेफरेंस  

प्रभु परमेश्‍वर ने मनुष्‍य से कहा, ‘तूने अपनी पत्‍नी की बात सुनी, और उस पेड़ का फल खाया जिसके विषय में मैंने आज्ञा दी थी कि “उसका फल न खाना।” अतएव तेरे कारण भूमि शापित हुई। उसकी फसल खाने के लिए तुझे जीवनभर कठोर परिश्रम करना पड़ेगा।


याकूब ने फरओ को उत्तर दिया, ‘मेरे प्रवास की अवधि कुल एक सौ तीस वर्ष हुई है। मेरे जीवन के दिन थोड़े हैं और वे बुरे बीते हैं। अभी मैंने अपने जीवन के उतने दिन व्‍यतीत नहीं किए हैं जितने मेरे पूर्वजों ने अपने प्रवास काल में बिताए थे।’


उसने अपने पिता से कहा, ‘पिताजी, मेरा सिर! आह, मेरा सिर!’ पिता ने अपने सेवक से कहा, ‘इसे इसकी मां के पास ले जाओ।’


मेरी आयु के चन्‍द दिन और शेष हैं! प्रभु, मुझे अकेला छोड़ दे, ताकि मैं उस स्‍थान को जाने के पूर्व कुछ आराम कर सकूं, जहाँ से मैं वापस नहीं आ सकूंगा, जहाँ केवल अन्‍धकार है, महा अन्‍धकार है, जहाँ मृत्‍यु की छाया है।


मनुष्‍य की हस्‍ती ही क्‍या है कि वह पाप से स्‍वयं शुद्ध हो सके? जो स्‍त्री से उत्‍पन्न हुआ है, क्‍या वह कभी धार्मिक बन सकता है?


तब क्‍या मनुष्‍य उसके सम्‍मुख धार्मिक सिद्ध हो सकता है? नारी से उत्‍पन्न मानव कदापि पवित्र नहीं हो सकता है!


देखो, चन्‍द्रमा भी परमेश्‍वर की दृष्‍टि में प्रकाशहीन है; ये तारे भी निस्‍तेज हैं!


जैसे चिनगारियाँ सदा ऊपर ही उड़ती हैं, वैसे ही मनुष्‍य दु:ख भोगने के लिए जन्‍म लेता है।


‘मनुष्‍य के जीवन की नियति क्‍या है? पृथ्‍वी पर कठोर श्रम! उसका जीवन मजदूर का जीवन है!


मेरे जीवन का हर दिन जुलाहे की ढरकी से अधिक तेजी से गुजरता है; वह बिना किसी आशा के यों ही बीत जाता है।


हम तो कल के लोग हैं, हमें कुछ भी अनुभव नहीं है। पृथ्‍वी पर हमारी उम्र छाया के समान ढलती है।


‘मेरी आयु के दिन हरकारे से भी अधिक तेज भाग रहे हैं! वे दौड़ रहे हैं, और उन्‍हें मेरा कल्‍याण कहीं दिखाई नहीं देता।


तूने मेरे जीवन-काल को बित्ता भर बनाया है। मेरी आयु तेरे सम्‍मुख कुछ भी नहीं है। वस्‍तुत: प्रत्‍येक मनुष्‍य की स्‍थिति श्‍वास मात्र है। सेलाह


निस्‍सन्‍देह मनुष्‍य छाया जैसा चलता-फिरता प्राणी है। निस्‍सन्‍देह वह व्‍यर्थ ही उत्तोजित है; मनुष्‍य धन का ढेर तो लगाता है, पर नहीं जानता कि कौन उसे भोगेगा।


मैं अधर्म में उत्‍पन्न हुआ था; और पाप में मेरी मां ने मुझे गर्भ में धारण किया था।


हे स्‍वामी, स्‍मरण कर, जीवन-काल कितना अल्‍प है; तूने सब मनुष्‍यों को नश्‍वर उत्‍पन्न किया है।


मुझे जीवन से घृणा हो गई, क्‍योंकि आकाश के नीचे पृथ्‍वी पर किए जाने वाले सब कार्य मुझे बुरे लगने लगे। यह सब व्‍यर्थ है, यह मानो हवा को पकड़ना है।


सच पूछो तो उसके जीवन के सब दिन दु:खों से भरे रहते हैं, और उसका काम सन्‍तोष नहीं, वरन् सन्‍ताप उत्‍पन्न करता है। रात में भी उसके मन को चैन नहीं मिलता। यह भी व्‍यर्थ है।


प्रभु, मैं अपनी मां के पेट से बाहर क्‍यों आया? क्‍या कष्‍ट और दु:ख का जीवन बिताने के लिए? क्‍या मैं अपमान और निन्‍दा में अपना जीवन बिताता रहूंगा?


मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ, जो स्‍त्रियों से उत्‍पन्न हुए हैं, उनमें योहन बपतिस्‍मादाता से महान कोई नहीं हुआ। फिर भी, स्‍वर्गराज्‍य में जो सब से छोटा है, वह योहन से बड़ा है।


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