उस समय एलीशा अपने घर के भीतर बैठे थे। धर्मवृद्ध भी उनके साथ बैठे थे। इस्राएल प्रदेश के राजा ने अपने दरबार से एक दूत भेजा। परन्तु उसके आगमन के पूर्व एलीशा ने धर्मवृद्धों को बताया, ‘क्या तुम जानते हो, इस हत्यारे राजा ने मेरा सिर धड़ से अलग करने के लिए एक दूत को भेजा है? देखो, जब दूत आएगा, तब तुम द्वार बन्द कर देना, और द्वार को बलपूर्वक बन्द रखना। सुनो, निश्चय ही उसके पीछे यह उसके स्वामी के पैरों की आवाज है।’
स्वामी ने यह कहा, “ये लोग केवल मुंह से मेरी आराधना करते हैं, केवल ओंठों से मेरा सम्मान करते हैं; किन्तु इनका हृदय मुझसे दूर है। ये दूसरों के आदेश से मेरी भक्ति करते हैं; इनकी भक्ति रटी-रटाई, सीखी हुई है।
निष्कासन के सातवें वर्ष के पांचवें महीने के दसवें दिन की यह घटना है। इस्राएली राष्ट्र के कुछ धर्मवृद्ध मेरे पास आए। वे मेरे सामने बैठ गए। उन्होंने मेरे माध्यम से प्रभु की इच्छा पूछी।
‘ओ मानव, तू इस्राएली राष्ट्र के धर्मवृद्धों से बोल, उनसे यह कह: “स्वामी-प्रभु यों कहता है : क्या तुम मेरी इच्छा जानने के लिए आए हो? मैं, स्वामी-प्रभु यह कहता हूँ: मेरे जीवन की सौगन्ध, तुम मेरी इच्छा कभी नहीं जान पाओगे।”
वे झुण्ड के झुण्ड तेरे पास आते हैं। वे मेरे निज लोगों के समान तेरे सामने बैठते हैं। वे तेरी बातें सुनते हैं, पर मेरे सन्देश के अनुसार आचरण नहीं करते। “वाह! कितने सुन्दर वचन हैं!” , वे मुंह से यह कहते हैं, किन्तु उनका हृदय स्वार्थ में डूबा हुआ है।
सुन, तू उन के लिए क्या है? प्रेम के गीत गानेवाला गायक, जिसके गले में मीठी आवाज है, जो वाद्य-यन्त्र को कुशलता से बजाता है! ओ मानव, वे तेरी बातें सुनते हैं, किन्तु उनके अनुसार आचरण नहीं करते।
निष्कासन के छठे वर्ष के छठे महीने की पांचवीं तारीख की यह घटना है। मैं अपने घर में बैठा था। यहूदा प्रदेश के धर्मवृद्ध मेरे सामने बैठे थे। उसी समय स्वामी-प्रभु की सामर्थ्य मुझ पर प्रकट हुई,
“मैं यहूदी हूँ। मेरा जन्म किलिकिया के तरसुस नगर में हुआ था, किन्तु मैंने इस नगर में गमालिएल के चरणों में बैठकर अपनी शिक्षा-दीक्षा पाई। पूर्वजों की व्यवस्था का मैंने विधिवत् अध्ययन किया। मैं परमेश्वर का वैसा ही उत्साही उपासक बना, जैसे आप सब हैं।