1 निष्कासन के छठे वर्ष के छठे महीने की पांचवीं तारीख की यह घटना है। मैं अपने घर में बैठा था। यहूदा प्रदेश के धर्मवृद्ध मेरे सामने बैठे थे। उसी समय स्वामी-प्रभु की सामर्थ्य मुझ पर प्रकट हुई,
1 एक दिन मैं (यहेजकेल) अपने घर में बैठा था और यहूदा के अग्रज (प्रमुख) वहाँ मेरे सामने बैठे थे। यह देश—निकाले के छठे वर्ष के छठे महीने (सितम्बर) के पाँचवें दिन हुआ। अचानक मेरे स्वामी यहोवा की शक्ति मुझमें उतरी।
1 फिर छठवें वर्ष के छठवें महीने के पांचवें दिन को जब मैं अपने घर में बैठा था, और यहूदियों के पुरनिये मेरे साम्हने बैठे थे, तब प्रभु यहोवा की शक्ति वहीं मुझ पर प्रगट हुई।
1 फिर छठवें वर्ष के छठवें महीने के पाँचवें दिन को जब मैं अपने घर में बैठा था, और यहूदियों के पुरनिये मेरे सामने बैठे थे, तब प्रभु यहोवा की शक्ति वहीं मुझ पर प्रगट हुई।
1 छठवें वर्ष के छठवें माह के पांचवें दिन, जब मैं अपने घर में बैठा हुआ था और यहूदिया के अगुए मेरे सामने बैठे हुए थे, तब वहां परम प्रधान याहवेह का हाथ मेरे ऊपर आया.
1 फिर छठवें वर्ष के छठवें महीने के पाँचवें दिन को जब मैं अपने घर में बैठा था, और यहूदियों के पुरनिये मेरे सामने बैठे थे, तब प्रभु यहोवा की शक्ति वहीं मुझ पर प्रगट हुई।
उस समय एलीशा अपने घर के भीतर बैठे थे। धर्मवृद्ध भी उनके साथ बैठे थे। इस्राएल प्रदेश के राजा ने अपने दरबार से एक दूत भेजा। परन्तु उसके आगमन के पूर्व एलीशा ने धर्मवृद्धों को बताया, ‘क्या तुम जानते हो, इस हत्यारे राजा ने मेरा सिर धड़ से अलग करने के लिए एक दूत को भेजा है? देखो, जब दूत आएगा, तब तुम द्वार बन्द कर देना, और द्वार को बलपूर्वक बन्द रखना। सुनो, निश्चय ही उसके पीछे यह उसके स्वामी के पैरों की आवाज है।’
तू इन्हें यह बात बता, और इनसे कह, स्वामी-प्रभु यों कहता है, ‘इस्राएली कुल का जो व्यक्ति अपने देवता की मूर्ति अपने हृदय में प्रतिष्ठित करेगा, और यों धर्म-मार्ग पर चलने के पूर्व अपने सम्मुख अधर्म के रोड़े डालेगा, और मेरी इच्छा जानने के लिए नबी के पास आएगा, तो उसको मैं अपने ढंग से उत्तर दूंगा : वह अपनी असंख्य मूर्तियों के अनुरूप अपार दण्ड पाएगा।
निष्कासन के सातवें वर्ष के पांचवें महीने के दसवें दिन की यह घटना है। इस्राएली राष्ट्र के कुछ धर्मवृद्ध मेरे पास आए। वे मेरे सामने बैठ गए। उन्होंने मेरे माध्यम से प्रभु की इच्छा पूछी।
जिस दिन यरूशलेम से भागा हुआ आदमी मेरे पास आया, उससे पूर्व सन्धया के समय प्रभु की सामर्थ्य मुझ पर प्रबल हुई थी, और जब वह मनुष्य सबेरे मुझ से मिला, तब प्रभु ने उसी समय मेरा मुंह खोल दिया। प्रभु की सामर्थ्य से मेरा मुंह खुल गया और मेरा गूंगापन दूर हो गया।
वे झुण्ड के झुण्ड तेरे पास आते हैं। वे मेरे निज लोगों के समान तेरे सामने बैठते हैं। वे तेरी बातें सुनते हैं, पर मेरे सन्देश के अनुसार आचरण नहीं करते। “वाह! कितने सुन्दर वचन हैं!” , वे मुंह से यह कहते हैं, किन्तु उनका हृदय स्वार्थ में डूबा हुआ है।
प्रभु की सामर्थ्य मुझ पर प्रबल हुई। प्रभु ने अपने आत्मा के माध्यम से मुझे बाहर निकाला और घाटी के मध्य में खड़ा कर दिया। मैंने देखा कि घाटी हड्डियों से भरी है।
हमारे निष्कासन का पच्चीसवां वर्ष था। यरूशलेम नगर के पतन को चौदह वर्ष हो चुके थे। इसी वर्ष के आरम्भ में, पहले महीने की दसवीं तारीख को प्रभु की सामर्थ्य मुझ पर प्रबल हुई, और वह मुझे वहां लाया।
देखो, इस्राएल देश का राजा शोक मना रहा है। उच्चाधिकारी निराशा के गर्त्त में डूबे हैं। देशवासियों के हाथ-पैर आतंक के कारण सुन्न पड़ गए हैं। ‘ओ मानव-पुत्र, मैं उनके आचरण के अनुरूप उनके साथ व्यवहार करूंगा। जैसे उनके न्याय-सिद्धान्त हैं, वैसे ही मैं उनका न्याय करूंगा। तब उनको ज्ञात होगा कि मैं ही प्रभु हूँ।’
और मैंने यह दर्शन देखा: मुझे मनुष्य की आकृति-सा कुछ दिखाई दिया। आकृति का जो भाग कमर के सदृश था, उसके नीचे अग्नि थी, और कमर के ऊपर का भाग चमक रहा था मानो पीतल को चमकाया गया हो।
‘पुरोहित को अपने मुंह से ज्ञान की रक्षा करनी चाहिए। उसके मुंह से लोगों को व्यवस्था प्राप्त होनी चाहिए। पुरोहित स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु का सन्देशवाहक है।