वहाँ अहवा नदी के पास, मैंने (एज्रा) घोषणा की कि हमें उपवास रखना चाहिये। हमें अपने को परमेश्वर के सामने विनम्र बनाने के लिये उपवास रखना चाहिये। हम लोग परमेश्वर से अपने लिये, अपने बच्चों के लिये, और जो चीज़ें हमारी थीं, उनके साथ सुरक्षित यात्रा के लिये प्रार्थना करना चाहते थे।
पहले महीने के बारहवें दिन हम लोगों ने अहवा नदी को छोड़ा और हम यरूशलेम की ओर चल पड़े। परमेश्वर हम लोगों के साथ था और उसने हमरी रक्षा शत्रओं और डाकुओं से पूरे मार्ग भर की।
किन्तु यद्यपि मैं डर गया था किन्तु फिर भी मैंने राजा से कहा, “राजा जीवित रहें! मैं इसलिए उदास हूँ कि वह नगर जिसमें मेरे पूर्वज दफनाये गये थे उजाड़पड़ा है तथा उस नगर के प्रवेश् द्वार आग से भस्म हो गये हैं।”
सो मुझे इन सब बातों को याद करने दे। मुझे अपना हृदय बाहर ऊँडेलने दे। मुझे याद है मैं परमेश्वर के मन्दिर में चला और भीड़ की अगुवाई करता था। मुझे याद है वह लोगों के साथ आनन्द भरे प्रशंसा गीत गाना और वह उत्सव मनाना।
हे यरूशलेम, प्रसन्न रहो! हे लोगों, यरूशलेम के प्रेमियों, तुम निश्चय ही प्रसन्न रहो! यरूशलेम के संग दु:ख की बातें घटी थी इसलिये तुममें से कुछ लोग भी दु:खी हैं। किन्तु अब तुमको चाहिये कि तुम बहुत—बहुत प्रसन्न हो जाओ।
मैं कभी भीड़ में नहीं बैठा क्योंकि उन्होंने हँसी उड़ाई और मजा लिया। अपने ऊपर तेरे प्रभाव के कारण मैं अकेला बैठा। तूने मेरे चारों ओर की बुराइयों पर मुझे क्रोध से भर दिया।
मेरे लोगों की सुन। इस देश में वे चारों ओर सहायता के लिए पुकार रहे हैं। वे कहते हैं, “क्या यहोवा अब भी सिय्योन में है? क्या सिय्योन के राजा अब भी वहाँ है?” किन्तु परमेश्वर कहता है, “यहूदा के लोग, अपनी देव मूर्तियों की पूजा करके मुझे क्रोधित क्यों करते हैं, उन्होंने अपने व्यर्थ विदेशी देव मूर्तियों की पूजा की है।”
“इन सभी बातों को लेकर मैं चिल्लाई। मेरे नयन जल में डूब गये। मेरे पास कोई नहीं मुझे चैन देने। मेरे पास कोई नहीं जो मुझे थोड़ी सी शांति दे। मेरे संताने ऐसी बनी जैसे उजाड़ होता है। वे ऐसे इसलिये हुआ कि शत्रु जीत गया था।”
हे यरूशलेम की पुत्री परकोटे, तू अपने मन से यहोवा की टेर लगा! आँसुओं को नदी सा बहने दे! रात—दिन अपने आँसुओं को गिरने दे! तू उनको रोक मत! तू अपनी आँखों को थमने मत दे!
मैं बूजी का पुत्र याजक यहेजकेल हूँ। मैं देश निष्कासित था। मैं उस समय बाबुल में कबार नदी पर था जब मेरे लिए स्वर्ग खुला और मैंने परमेश्वर का दर्शन किया। यह तीसवें वर्ष के चौथे महीने जुलाई का पाँचवां दिन था। (राजा यहोयाकीम के देश निष्कासन के पाँचवें वर्ष और महीने के पाँचवें दिन यहेजकेल को यहोवा का सन्देश मिला। उस स्थान पर उसके ऊपर यहोवा की शक्ति आई।)
मैं इस्राएल के उन लोगों के पास गया जो तेलाबीब में रहने को विवश किये गए थे। ये लोग कबार नदी के सहारे रहते थे। मैंने वहाँ के निवासियों को अभिवादन किया। मैं वहाँ सात दिन ठहरा और उन्हें यहोवा की कही गई बातों को बताया।
फिर मैं अपने स्वामी परमेश्वर की ओर मुड़ा और उससे प्रार्थना करते हुए सहायता की याचना की। मैंने भोजन करना छोड़ दिया और ऐसे कपड़े पहन लिये जिनसे यह लगे कि मैं दु:खी हूँ। मैंने अपने सिर पर धूल डाल ली।
मैं अपने दो गवाहों को खुली छूट दे दूँगा और वो एक हज़ार दो सौ साठ दिनों तक भविष्यवाणी करेंगे। वे ऊन के ऐसे वस्त्र धारण किए हुए होंगे जिन्हें शोक प्रदर्शित करने के लिए पहना जाता है।”