ततो मार्गपार्श्व उडुम्बरवृक्षमेकं विलोक्य तत्समीपं गत्वा पत्राणि विना किमपि न प्राप्य तं पादपं प्रोवाच, अद्यारभ्य कदापि त्वयि फलं न भवतु; तेन तत्क्षणात् स उडुम्बरमाहीरुहः शुष्कतां गतः।
मत्ती 3:10 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari अपरं पादपानां मूले कुठार इदानीमपि लगन् आस्ते, तस्माद् यस्मिन् पादपे उत्तमं फलं न भवति, स कृत्तो मध्येऽग्निं निक्षेप्स्यते। अधिकानि संस्करणानिসত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script অপৰং পাদপানাং মূলে কুঠাৰ ইদানীমপি লগন্ আস্তে, তস্মাদ্ যস্মিন্ পাদপে উত্তমং ফলং ন ভৱতি, স কৃত্তো মধ্যেঽগ্নিং নিক্ষেপ্স্যতে| সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script অপরং পাদপানাং মূলে কুঠার ইদানীমপি লগন্ আস্তে, তস্মাদ্ যস্মিন্ পাদপে উত্তমং ফলং ন ভৱতি, স কৃত্তো মধ্যেঽগ্নিং নিক্ষেপ্স্যতে| သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script အပရံ ပါဒပါနာံ မူလေ ကုဌာရ ဣဒါနီမပိ လဂန် အာသ္တေ, တသ္မာဒ် ယသ္မိန် ပါဒပေ ဥတ္တမံ ဖလံ န ဘဝတိ, သ ကၖတ္တော မဓျေ'ဂ္နိံ နိက္ၐေပ္သျတေ၊ satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script aparaM pAdapAnAM mUlE kuThAra idAnImapi lagan AstE, tasmAd yasmin pAdapE uttamaM phalaM na bhavati, sa kRttO madhyE'gniM nikSEpsyatE| સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script અપરં પાદપાનાં મૂલે કુઠાર ઇદાનીમપિ લગન્ આસ્તે, તસ્માદ્ યસ્મિન્ પાદપે ઉત્તમં ફલં ન ભવતિ, સ કૃત્તો મધ્યેઽગ્નિં નિક્ષેપ્સ્યતે| satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script aparaM pAdapAnAM mUle kuThAra idAnImapi lagan Aste, tasmAd yasmin pAdape uttamaM phalaM na bhavati, sa kRtto madhye'gniM nikSepsyate| |
ततो मार्गपार्श्व उडुम्बरवृक्षमेकं विलोक्य तत्समीपं गत्वा पत्राणि विना किमपि न प्राप्य तं पादपं प्रोवाच, अद्यारभ्य कदापि त्वयि फलं न भवतु; तेन तत्क्षणात् स उडुम्बरमाहीरुहः शुष्कतां गतः।
अपरञ्च तरुमूलेऽधुनापि परशुः संलग्नोस्ति यस्तरुरुत्तमं फलं न फलति स छिद्यतेऽग्नौ निक्षिप्यते च।
मम यासु शाखासु फलानि न भवन्ति ताः स छिनत्ति तथा फलवत्यः शाखा यथाधिकफलानि फलन्ति तदर्थं ताः परिष्करोति।
यः कश्चिन् मयि न तिष्ठति स शुष्कशाखेव बहि र्निक्षिप्यते लोकाश्च ता आहृत्य वह्नौ निक्षिप्य दाहयन्ति।
सावधाना भवत तं वक्तारं नावजानीत यतो हेतोः पृथिवीस्थितः स वक्ता यैरवज्ञातस्तै र्यदि रक्षा नाप्रापि तर्हि स्वर्गीयवक्तुः पराङ्मुखीभूयास्माभिः कथं रक्षा प्राप्स्यते?
किन्तु या भूमि र्गोक्षुरकण्टकवृक्षान् उत्पादयति सा न ग्राह्या शापार्हा च शेषे तस्या दाहो भविष्यति।