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मत्ती 26:52 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

ततो यीशुस्तं जगाद, खड्गं स्वस्थानेे निधेहि यतो ये ये जना असिं धारयन्ति, तएवासिना विनश्यन्ति।

अध्यायं द्रष्टव्यम्

अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

ততো যীশুস্তং জগাদ, খড্গং স্ৱস্থানেे নিধেহি যতো যে যে জনা অসিং ধাৰযন্তি, তএৱাসিনা ৱিনশ্যন্তি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

ততো যীশুস্তং জগাদ, খড্গং স্ৱস্থানেे নিধেহি যতো যে যে জনা অসিং ধারযন্তি, তএৱাসিনা ৱিনশ্যন্তি|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

တတော ယီၑုသ္တံ ဇဂါဒ, ခဍ္ဂံ သွသ္ထာနေे နိဓေဟိ ယတော ယေ ယေ ဇနာ အသိံ ဓာရယန္တိ, တဧဝါသိနာ ဝိနၑျန္တိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

tatO yIzustaM jagAda, khaPgaM svasthAnEे nidhEhi yatO yE yE janA asiM dhArayanti, taEvAsinA vinazyanti|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

તતો યીશુસ્તં જગાદ, ખડ્ગં સ્વસ્થાનેे નિધેહિ યતો યે યે જના અસિં ધારયન્તિ, તએવાસિના વિનશ્યન્તિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम्

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

tato yIzustaM jagAda, khaDgaM svasthAneे nidhehi yato ye ye janA asiM dhArayanti, taevAsinA vinazyanti|

अध्यायं द्रष्टव्यम्
अन्ये अनुवादाः



मत्ती 26:52
13 अन्तरसन्दर्भाः  

किन्त्वहं युष्मान् वदामि यूयं हिंसकं नरं मा व्याघातयत। किन्तु केनचित् तव दक्षिणकपोले चपेटाघाते कृते तं प्रति वामं कपोलञ्च व्याघोटय।


हे प्रियबन्धवः, कस्मैचिद् अपकारस्य समुचितं दण्डं स्वयं न दद्ध्वं, किन्त्वीश्वरीयक्रोधाय स्थानं दत्त यतो लिखितमास्ते परमेश्वरः कथयति, दानं फलस्य मत्कर्म्म सूचितं प्रददाम्यहं।


अपरं कमपि प्रत्यनिष्टस्य फलम् अनिष्टं केनापि यन्न क्रियेत तदर्थं सावधाना भवत, किन्तु परस्परं सर्व्वान् मानवांश्च प्रति नित्यं हिताचारिणो भवत।


अनिष्टस्य परिशोधेनानिष्टं निन्दाया वा परिशोधेन निन्दां न कुर्व्वन्त आशिषं दत्त यतो यूयम् आशिरधिकारिणो भवितुमाहूता इति जानीथ।


यो जनो ऽपरान् वन्दीकृत्य नयति स स्वयं वन्दीभूय स्थानान्तरं गमिष्यति, यश्च खङ्गेन हन्ति स स्वयं खङ्गेन घानिष्यते। अत्र पवित्रलोकानां सहिष्णुतया विश्वासेन च प्रकाशितव्यं।


भविष्यद्वादिसाधूनां रक्तं तैरेव पातितं। शोणितं त्वन्तु तेभ्यो ऽदास्तत्पानं तेषु युज्यते॥