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मत्ती 27:35 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

35 तदानीं ते तं क्रुशेन संविध्य तस्य वसनानि गुटिकापातेन विभज्य जगृहुः, तस्मात्, विभजन्तेऽधरीयं मे ते मनुष्याः परस्परं। मदुत्तरीयवस्त्रार्थं गुटिकां पातयन्ति च॥यदेतद्वचनं भविष्यद्वादिभिरुक्तमासीत्, तदा तद् असिध्यत्,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

35 তদানীং তে তং ক্ৰুশেন সংৱিধ্য তস্য ৱসনানি গুটিকাপাতেন ৱিভজ্য জগৃহুঃ, তস্মাৎ, ৱিভজন্তেঽধৰীযং মে তে মনুষ্যাঃ পৰস্পৰং| মদুত্তৰীযৱস্ত্ৰাৰ্থং গুটিকাং পাতযন্তি চ|| যদেতদ্ৱচনং ভৱিষ্যদ্ৱাদিভিৰুক্তমাসীৎ, তদা তদ্ অসিধ্যৎ,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

35 তদানীং তে তং ক্রুশেন সংৱিধ্য তস্য ৱসনানি গুটিকাপাতেন ৱিভজ্য জগৃহুঃ, তস্মাৎ, ৱিভজন্তেঽধরীযং মে তে মনুষ্যাঃ পরস্পরং| মদুত্তরীযৱস্ত্রার্থং গুটিকাং পাতযন্তি চ|| যদেতদ্ৱচনং ভৱিষ্যদ্ৱাদিভিরুক্তমাসীৎ, তদা তদ্ অসিধ্যৎ,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

35 တဒါနီံ တေ တံ ကြုၑေန သံဝိဓျ တသျ ဝသနာနိ ဂုဋိကာပါတေန ဝိဘဇျ ဇဂၖဟုး, တသ္မာတ်, ဝိဘဇန္တေ'ဓရီယံ မေ တေ မနုၐျား ပရသ္ပရံ၊ မဒုတ္တရီယဝသ္တြာရ္ထံ ဂုဋိကာံ ပါတယန္တိ စ။ ယဒေတဒွစနံ ဘဝိၐျဒွါဒိဘိရုက္တမာသီတ်, တဒါ တဒ် အသိဓျတ်,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

35 tadAnIM tE taM kruzEna saMvidhya tasya vasanAni guTikApAtEna vibhajya jagRhuH, tasmAt, vibhajantE'dharIyaM mE tE manuSyAH parasparaM| maduttarIyavastrArthaM guTikAM pAtayanti ca||yadEtadvacanaM bhaviSyadvAdibhiruktamAsIt, tadA tad asidhyat,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

35 તદાનીં તે તં ક્રુશેન સંવિધ્ય તસ્ય વસનાનિ ગુટિકાપાતેન વિભજ્ય જગૃહુઃ, તસ્માત્, વિભજન્તેઽધરીયં મે તે મનુષ્યાઃ પરસ્પરં| મદુત્તરીયવસ્ત્રાર્થં ગુટિકાં પાતયન્તિ ચ|| યદેતદ્વચનં ભવિષ્યદ્વાદિભિરુક્તમાસીત્, તદા તદ્ અસિધ્યત્,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मत्ती 27:35
10 अन्तरसन्दर्भाः  

तदा यीशुरकथयत्, हे पितरेतान् क्षमस्व यत एते यत् कर्म्म कुर्व्वन्ति तन् न विदुः; पश्चात्ते गुटिकापातं कृत्वा तस्य वस्त्राणि विभज्य जगृहुः।


इत्युक्त्वा निजहस्तं कुक्षिञ्च दर्शितवान्, ततः शिष्याः प्रभुं दृष्ट्वा हृष्टा अभवन्।


अतो वयं प्रभूम् अपश्यामेति वाक्येऽन्यशिष्यैरुक्ते सोवदत्, तस्य हस्तयो र्लौहकीलकानां चिह्नं न विलोक्य तच्चिह्नम् अङ्गुल्या न स्पृष्ट्वा तस्य कुक्षौ हस्तं नारोप्य चाहं न विश्वसिष्यामि।


पश्चात् थामै कथितवान् त्वम् अङ्गुलीम् अत्रार्पयित्वा मम करौ पश्य करं प्रसार्य्य मम कुक्षावर्पय नाविश्वस्य।


तस्मिन् यीशौ ईश्वरस्य पूर्व्वनिश्चितमन्त्रणानिरूपणानुसारेण मृत्यौ समर्पिते सति यूयं तं धृत्वा दुष्टलोकानां हस्तैः क्रुशे विधित्वाहत।


तर्हि सर्व्व इस्रायेेलीयलोका यूयं जानीत नासरतीयो यो यीशुख्रीष्टः क्रुशे युष्माभिरविध्यत यश्चेश्वरेण श्मशानाद् उत्थापितः, तस्य नाम्ना जनोयं स्वस्थः सन् युष्माकं सम्मुखे प्रोत्तिष्ठति।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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