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मत्ती 26:35 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

35 ततः पितर उदितवान्, यद्यपि त्वया समं मर्त्तव्यं, तथापि कदापि त्वां न नाङ्गीकरिष्यामि; तथैव सर्व्वे शिष्याश्चोचुः।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

35 ততঃ পিতৰ উদিতৱান্, যদ্যপি ৎৱযা সমং মৰ্ত্তৱ্যং, তথাপি কদাপি ৎৱাং ন নাঙ্গীকৰিষ্যামি; তথৈৱ সৰ্ৱ্ৱে শিষ্যাশ্চোচুঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

35 ততঃ পিতর উদিতৱান্, যদ্যপি ৎৱযা সমং মর্ত্তৱ্যং, তথাপি কদাপি ৎৱাং ন নাঙ্গীকরিষ্যামি; তথৈৱ সর্ৱ্ৱে শিষ্যাশ্চোচুঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

35 တတး ပိတရ ဥဒိတဝါန်, ယဒျပိ တွယာ သမံ မရ္တ္တဝျံ, တထာပိ ကဒါပိ တွာံ န နာင်္ဂီကရိၐျာမိ; တထဲဝ သရွွေ ၑိၐျာၑ္စောစုး၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

35 tataH pitara uditavAn, yadyapi tvayA samaM marttavyaM, tathApi kadApi tvAM na nAggIkariSyAmi; tathaiva sarvvE ziSyAzcOcuH|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

35 તતઃ પિતર ઉદિતવાન્, યદ્યપિ ત્વયા સમં મર્ત્તવ્યં, તથાપિ કદાપિ ત્વાં ન નાઙ્ગીકરિષ્યામિ; તથૈવ સર્વ્વે શિષ્યાશ્ચોચુઃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

35 tataH pitara uditavAn, yadyapi tvayA samaM marttavyaM, tathApi kadApi tvAM na nAGgIkariSyAmi; tathaiva sarvve ziSyAzcocuH|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मत्ती 26:35
10 अन्तरसन्दर्भाः  

पृथ्व्यामहं शान्तिं दातुमागतइति मानुभवत, शान्तिं दातुं न किन्त्वसिं।


तदा पितरः प्रत्युदितवान्, हे प्रभो साम्प्रतं कुतो हेतोस्तव पश्चाद् गन्तुं न शक्नोमि? त्वदर्थं प्राणान् दातुं शक्नोमि।


भद्रम्, अप्रत्ययकारणात् ते विभिन्ना जातास्तथा विश्वासकारणात् त्वं रोपितो जातस्तस्माद् अहङ्कारम् अकृत्वा ससाध्वसो भव।


अतएव यः कश्चिद् सुस्थिरंमन्यः स यन्न पतेत् तत्र सावधानो भवतु।


अतो हे प्रियतमाः, युष्माभि र्यद्वत् सर्व्वदा क्रियते तद्वत् केवले ममोपस्थितिकाले तन्नहि किन्त्विदानीम् अनुपस्थितेऽपि मयि बहुतरयत्नेनाज्ञां गृहीत्वा भयकम्पाभ्यां स्वस्वपरित्राणं साध्यतां।


अपरञ्च यो विनापक्षपातम् एकैकमानुषस्य कर्म्मानुसाराद् विचारं करोति स यदि युष्माभिस्तात आख्यायते तर्हि स्वप्रवासस्य कालो युष्माभि र्भीत्या याप्यतां।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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