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योहन 9:21 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

21 किन्त्वधुना कथं दृष्टिं प्राप्तवान् तदावां न् जानीवः कोस्य चक्षुषी प्रसन्ने कृतवान् तदपि न जानीव एष वयःप्राप्त एनं पृच्छत स्वकथां स्वयं वक्ष्यति।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

21 কিন্ত্ৱধুনা কথং দৃষ্টিং প্ৰাপ্তৱান্ তদাৱাং ন্ জানীৱঃ কোস্য চক্ষুষী প্ৰসন্নে কৃতৱান্ তদপি ন জানীৱ এষ ৱযঃপ্ৰাপ্ত এনং পৃচ্ছত স্ৱকথাং স্ৱযং ৱক্ষ্যতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

21 কিন্ত্ৱধুনা কথং দৃষ্টিং প্রাপ্তৱান্ তদাৱাং ন্ জানীৱঃ কোস্য চক্ষুষী প্রসন্নে কৃতৱান্ তদপি ন জানীৱ এষ ৱযঃপ্রাপ্ত এনং পৃচ্ছত স্ৱকথাং স্ৱযং ৱক্ষ্যতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

21 ကိန္တွဓုနာ ကထံ ဒၖၐ္ဋိံ ပြာပ္တဝါန် တဒါဝါံ န် ဇာနီဝး ကောသျ စက္ၐုၐီ ပြသန္နေ ကၖတဝါန် တဒပိ န ဇာနီဝ ဧၐ ဝယးပြာပ္တ ဧနံ ပၖစ္ဆတ သွကထာံ သွယံ ဝက္ၐျတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

21 kintvadhunA kathaM dRSTiM prAptavAn tadAvAM n jAnIvaH kOsya cakSuSI prasannE kRtavAn tadapi na jAnIva ESa vayaHprApta EnaM pRcchata svakathAM svayaM vakSyati|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

21 કિન્ત્વધુના કથં દૃષ્ટિં પ્રાપ્તવાન્ તદાવાં ન્ જાનીવઃ કોસ્ય ચક્ષુષી પ્રસન્ને કૃતવાન્ તદપિ ન જાનીવ એષ વયઃપ્રાપ્ત એનં પૃચ્છત સ્વકથાં સ્વયં વક્ષ્યતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

21 kintvadhunA kathaM dRSTiM prAptavAn tadAvAM n jAnIvaH kosya cakSuSI prasanne kRtavAn tadapi na jAnIva eSa vayaHprApta enaM pRcchata svakathAM svayaM vakSyati|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




योहन 9:21
7 अन्तरसन्दर्भाः  

द्वादशवर्षाणि प्रदररोगग्रस्ता नाना वैद्यैश्चिकित्सिता सर्व्वस्वं व्ययित्वापि स्वास्थ्यं न प्राप्ता या योषित् सा यीशोः पश्चादागत्य तस्य वस्त्रग्रन्थिं पस्पर्श।


तदाष्टात्रिंशद्वर्षाणि यावद् रोगग्रस्त एकजनस्तस्मिन् स्थाने स्थितवान्।


अतएव ते ऽपृच्छन् त्वं कथं दृष्टिं पाप्तवान्?


ततस्तस्य पितरौ प्रत्यवोचताम् अयम् आवयोः पुत्र आ जनेरन्धश्च तदप्यावां जानीवः


यिहूदीयानां भयात् तस्य पितरौ वाक्यमिदम् अवदतां यतः कोपि मनुष्यो यदि यीशुम् अभिषिक्तं वदति तर्हि स भजनगृहाद् दूरीकारिष्यते यिहूदीया इति मन्त्रणाम् अकुर्व्वन्


अतस्तस्य पितरौ व्याहरताम् एष वयःप्राप्त एनं पृच्छत।


तदा तत्र पक्षाघातव्याधिनाष्टौ वत्सरान् शय्यागतम् ऐनेयनामानं मनुष्यं साक्षत् प्राप्य तमवदत्,


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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