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याकूब 2:3 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

3 यूयं यदि तं भ्राजिष्णुपरिच्छदवसानं जनं निरीक्ष्य वदेत भवान् अत्रोत्तमस्थान उपविशत्विति किञ्च तं दरिद्रं यदि वदेत त्वम् अमुस्मिन् स्थाने तिष्ठ यद्वात्र मम पादपीठ उपविशेति,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

3 যূযং যদি তং ভ্ৰাজিষ্ণুপৰিচ্ছদৱসানং জনং নিৰীক্ষ্য ৱদেত ভৱান্ অত্ৰোত্তমস্থান উপৱিশৎৱিতি কিঞ্চ তং দৰিদ্ৰং যদি ৱদেত ৎৱম্ অমুস্মিন্ স্থানে তিষ্ঠ যদ্ৱাত্ৰ মম পাদপীঠ উপৱিশেতি,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

3 যূযং যদি তং ভ্রাজিষ্ণুপরিচ্ছদৱসানং জনং নিরীক্ষ্য ৱদেত ভৱান্ অত্রোত্তমস্থান উপৱিশৎৱিতি কিঞ্চ তং দরিদ্রং যদি ৱদেত ৎৱম্ অমুস্মিন্ স্থানে তিষ্ঠ যদ্ৱাত্র মম পাদপীঠ উপৱিশেতি,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

3 ယူယံ ယဒိ တံ ဘြာဇိၐ္ဏုပရိစ္ဆဒဝသာနံ ဇနံ နိရီက္ၐျ ဝဒေတ ဘဝါန် အတြောတ္တမသ္ထာန ဥပဝိၑတွိတိ ကိဉ္စ တံ ဒရိဒြံ ယဒိ ဝဒေတ တွမ် အမုသ္မိန် သ္ထာနေ တိၐ္ဌ ယဒွါတြ မမ ပါဒပီဌ ဥပဝိၑေတိ,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

3 yUyaM yadi taM bhrAjiSNuparicchadavasAnaM janaM nirIkSya vadEta bhavAn atrOttamasthAna upavizatviti kinjca taM daridraM yadi vadEta tvam amusmin sthAnE tiSTha yadvAtra mama pAdapITha upavizEti,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

3 યૂયં યદિ તં ભ્રાજિષ્ણુપરિચ્છદવસાનં જનં નિરીક્ષ્ય વદેત ભવાન્ અત્રોત્તમસ્થાન ઉપવિશત્વિતિ કિઞ્ચ તં દરિદ્રં યદિ વદેત ત્વમ્ અમુસ્મિન્ સ્થાને તિષ્ઠ યદ્વાત્ર મમ પાદપીઠ ઉપવિશેતિ,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

3 yUyaM yadi taM bhrAjiSNuparicchadavasAnaM janaM nirIkSya vadeta bhavAn atrottamasthAna upavizatviti kiJca taM daridraM yadi vadeta tvam amusmin sthAne tiSTha yadvAtra mama pAdapITha upavizeti,

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




याकूब 2:3
8 अन्तरसन्दर्भाः  

हेरोद् तस्य सेनागणश्च तमवज्ञाय उपहासत्वेन राजवस्त्रं परिधाप्य पुनः पीलातं प्रति तं प्राहिणोत्।


यूयञ्चास्मत्प्रभो र्यीशुख्रीष्टस्यानुग्रहं जानीथ यतस्तस्य निर्धनत्वेन यूयं यद् धनिनो भवथ तदर्थं स धनी सन्नपि युष्मत्कृते निर्धनोऽभवत्।


यतो युष्माकं सभायां स्वर्णाङ्गुरीयकयुक्ते भ्राजिष्णुपरिच्छदे पुरुषे प्रविष्टे मलिनवस्त्रे कस्मिंश्चिद् दरिद्रेऽपि प्रविष्टे


धनवन्त एव किं युष्मान् नोपद्रवन्ति बलाच्च विचारासनानां समीपं न नयन्ति?


ते वाक्कलहकारिणः स्वभाग्यनिन्दकाः स्वेच्छाचारिणो दर्पवादिमुखविशिष्टा लाभार्थं मनुष्यस्तावकाश्च सन्ति।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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