यशायाह 58:7 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)7 अपना भोजन भूखों को खिलाना, बेघर गरीब को अपने घर में जगह देना, किसी को नंगे देखकर उसे कपड़े पहिनाना, अपने जरूरतमन्द भाई-बहिन से मुंह न छिपाना। अध्याय देखेंपवित्र बाइबल7 मैं चाहता हूँ कि तुम भूखे लोगों के साथ अपने खाने की वस्तुएँ बाँटो। मैं चाहता हूँ कि तुम ऐसे गरीब लोगों को ढूँढों जिनके पास घर नहीं है और मेरी इच्छा है कि तुम उन्हें अपने घरों में ले आओ। तुम जब किसी ऐसे व्यक्ति को देखो, जिसके पास कपड़े न हों तो उसे अपने कपड़े दे डालो। उन लोगों की सहायता से मुँह मत मोड़ो, जो तुम्हारे अपने हों।” अध्याय देखेंHindi Holy Bible7 क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बांट देना, अनाथ और मारे मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना? अध्याय देखेंपवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)7 क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बाँट देना, अनाथ और मारे–मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना? अध्याय देखेंसरल हिन्दी बाइबल7 क्या इसका मतलब यह नहीं कि तुम भूखों को अपना भोजन बांटा करो तथा अनाथों को अपने घर में लाओ— जब किसी को वस्त्रों के बिना देखो, तो उन्हें वस्त्र दो, स्वयं को अपने सगे संबंधियों से दूर न रखो? अध्याय देखेंइंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 20197 क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बाँट देना, अनाथ और मारे-मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना? (इब्रा. 13:2,3, नीति. 25:21, 28:27, मत्ती 25:35,36) अध्याय देखें |
एफ्रइम कुल-क्षेत्र के अगुए, जिनके नाम ऊपर लिखे हुए हैं, उठे, और उन्होंने बन्दियों को संभाला। उनमें अनेक बन्दी नंगे थे। उनको अगुओं ने लूट के माल से वस्त्र पहिनाए। उन्होंने न केवल कपड़े पहिनाए, वरन् पैरों में जूते भी पहिनाए। उनको खाने को भोजन दिया, और पीने को पानी। उनके सिर पर तेल मल। कमजोर और बीमारों को गधे पर बैठाया, और सब बन्दी जनों को उनके जाति भाई-बन्धुओं के पास खजूर वृक्षों के नगर यरीहो पहुंचा दिया। तत्पश्चात् अगुए सामरी नगर को लौट गए।
हम तो उन धनी यहूदी-भाइयों के ही रक्त-मांस हैं और हमारे बाल-बच्चे उनके ही बाल-बच्चों के समान हैं। फिर भी हम विवश किए जा रहे हैं कि अपने बाल-बच्चों को उनके पास गुलाम बनाकर रखें। सच पूछो तो हमारी अनेक कन्याएँ उनकी गुलाम बन भी चुकी हैं। हम यह शोषण रोकने में असमर्थ हैं; क्योंकि हमारे खेत और अंगूर-उद्यान उनके हाथों में जा चुके हैं।’