‘अब हे हमारे परमेश्वर, तू महान, शक्तिशाली और आतंकमय परमेश्वर, अपने विधान का पालन करनेवाला, और करुणा सागर है! जो महा संकट के बादल हम पर, हमारे राजाओं, शासकों, पुरोहितों, नबियों और पूर्वजों पर, तेरे समस्त निज लोगों पर असीरियाई राजाओं के समय से आज तक हम पर बरसते आए हैं, उन्हें अपनी दृष्टि में कम न जान!
पर तू देखता है, निश्चय ही तूने दु:खों और कष्टों पर ध्यान दिया है; तू उन्हें अपने हाथ में लेगा। अभागा मनुष्य स्वयं को तुझपर छोड़ देता है, क्योंकि तू अनाथों का नाथ है।
जब तू समुद्र पार करेगा, मैं तेरे साथ रहूंगा। जब तू नदियों से होते हुए जाएगा तब नदियां तुझे डुबो न सकेंगी। यदि तू आग पर चलेगा, तो भी तू नहीं जलेगा; लपटें तुझे भस्म न कर सकेंगी;
ओ आकाश, आनन्द से गा; ओ पृथ्वी, हर्ष से मगन हो। ओ पर्वतो, जयजयकार से गूंज उठो। क्योंकि प्रभु ने अपने निज लोगों को शान्ति प्रदान की है; उसने दु:खी जनों पर दया की है।
यद्यपि हमारे पूर्वज अब्राहम और इस्राएल हमें नहीं जानते, हमें नहीं पहिचानते, तो भी तू हमारा पिता है। प्राचीनकाल से तेरा नाम ‘हमारा मुक्तिदाता’ है, निस्सन्देह तू ही हमारा पिता है।।
वहां आनन्द-उल्लास का स्वर फिर सुनाई देगा, दूल्हा-दुल्हिन के हास-परिहास की आवाज सुनाई देगी। जब आराधक प्रभु के भवन में स्तुति-बलि चढ़ाने के लिए आएंगे तब वे आनन्द से यह गीत गाएंगे: “स्वर्गिक सेनाओं के प्रभु को धन्यवाद दो, क्योंकि प्रभु भला है, उसकी करुणा सदा बनी रहती है।” मैं-प्रभु कहता हूं : मैं पहले के समान इस देश की दशा समृद्ध कर दूंगा।’
किन्तु अब आप परमेश्वर को पहचान चुके हैं या यों कहें कि परमेश्वर ने आप को अपना लिया है, तो आप कैसे फिर उन अशक्त एवं असार तत्वों की शरण ले सकते हैं? क्या आप एक बार फिर उनकी दासता स्वीकार करना चाहते हैं?
किन्तु परमेश्वर ने जो पक्की नींव डाली है, वह सुदृढ़ है और उस में ये शब्द अंकित हैं, “प्रभु उन लोगों को जानता है, जो उसके अपने हैं” और “जो प्रभु का नाम लेता है, वह अधर्म से दूर रहे।”