14 देखिए, आकाश से आग बरसी थी। उसने दो सेना-नायकों और उनके पचास-पचास सैनिकों के दल को भस्म कर दिया था। अब, कृपाकर, मेरे प्राण को अपनी दृष्टि में तुच्छ मत समझिए।’
14 पचास पचास सिपाहियों के जो दो प्रधान अपने अपने पचासों समेत पहिले आए थे, उन को तो आग ने आकाश से गिरकर भस्म कर डाला, परन्तु अब मेरा प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरे।
14 पचास पचास सिपाहियों के जो दो प्रधान अपने अपने पचासों समेत पहले आए थे, उनको तो आग ने आकाश से गिरकर भस्म कर डाला, परन्तु अब मेरा प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरे।”
14 पचास-पचास सिपाहियों के जो दो प्रधान अपने-अपने पचासों समेत पहले आए थे, उनको तो आग ने आकाश से गिरकर भस्म कर डाला, परन्तु अब मेरा प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरे।”
राजा ने एलियाह के पास पुन: पचास सैनिकों के तीसरे दल को तथा उनके सेना-नायक को भेजा। तीसरा सेना-नायक पहाड़ पर चढ़ा। वह एलियाह के समीप आया। उसने एलियाह के सम्मुख घुटने टेके, और उनसे यह निवेदन किया, “हे परमेश्वर के जन! कृपाकर, मेरे प्राण को और अपने पचास सेवकों के प्राण को अपनी दृष्टि में तुच्छ मत समझिए।
किन्तु मेरी दृष्टि में मेरे जीवन का कोई मूल्य नहीं। मैं तो केवल अपनी दौड़ समाप्त करना और वह सेवाकार्य पूरा करना चाहता हूँ, जिसे प्रभु येशु ने मुझे सौंपा है − अर्थात् मैं परमेश्वर के अनुग्रह के शुभ समाचार की साक्षी देता रहूँ।
शाऊल ने कहा, ‘मैंने पाप किया है। दाऊद, मेरे पुत्र, लौट आ! अब मैं तेरा अनिष्ट कभी नहीं करूंगा। तूने आज अपनी दृष्टि में मेरे प्राण को बहुमूल्य समझा। देख, मैंने आज बहुत मूर्खतापूर्ण कार्य किया। मैंने बड़ी भूल की।’