कान उन सब को परखता है जिनको वह सुनता है, ऐसे ही जीभ जिस खाने को छूती है, उसका स्वाद पता करती है।
जैसे जीभ भोजन का स्वाद चखती है, वैसी ही कानों को शब्दों को परखना भाता है।
मैंने अपने मुख को अपने शत्रु से बुरे शब्द बोल कर पाप नहीं करने दिया और नहीं चाहा कि उन्हें मृत्यु आ जाये।
मैं अपनी बात शीघ्र ही कहनेवाला हूँ, मैं अपनी बात कहने को लगभग तैयार हूँ।
“अरे ओ विवेकी पुरुषों तुम ध्यान से सुनो जो बातें मैं कहता हूँ। अरे ओ चतुर लोगों, मुझ पर ध्यान दो।
सो आओ इस परिस्थिति को परखें और स्वयं निर्णय करें की उचित क्या है। हम साथ साथ सीखेंगे की क्या खरा है।
मैं झूठ नहीं कह रहा हूँ। मुझको भले और बुरे लोगों की पहचान है।”
आध्यात्मिक मनुष्य सब बातों का न्याय कर सकता है किन्तु उसका न्याय कोई नहीं कर सकता। क्योंकि शास्त्र कहता है:
किन्तु ठोस आहार तो उन बड़ों के लिए ही होता है जिन्होंने अपने अनुभव से भले-बुरे में पहचान करना सीख लिया है।