सागर की गहराई कहती है, ‘मुझ में विवेक नहीं।’ और समुद्र कहता है, ‘यहाँ मुझ में ज्ञान नहीं है।’
ज्ञान कहाँ रहता है लोग नहीं जानते हैं, लोग जो धरती पर रहते हैं, उनमें विवेक नहीं रहता है।
विवेक को अति मूल्यवान सोना भी मोल नहीं ले सकता है, विवेक का मूल्य चाँदी से नहीं गिना जा सकता है।
लिब्यातान जब सागर में तैरता है तो अपने पीछे वह सफेद झागों जैसी राह छोड़ता है, जैसे कोई श्वेत बालों की विशाल पूँछ हो।