“मैं इतना दुर्बल हूँ कि मेरी खाल मेरी हड्डियों पर लटक गई। अब मुझ में कुछ भी प्राण नहीं बचा है।
तूने मुझे बांध दिया और हर कोई मुझे देख सकता है। मेरी देह दुर्बल है, मैं भयानक दिखता हूँ और लोग ऐसा सोचते हैं जिस का तात्पर्य है कि मैं अपराधी हूँ।
मेरी त्वचा काली पड़ गई है। मेरा तन बुखार से तप रहा है।
मेरा शरीर कीड़ों और धूल से ढका हुआ है। मेरी त्वचा चिटक गई है और इसमें रिसते हुए फोड़े भर गये हैं।
मेरा जीवन वैसे बीत रहा जैसा उड़ जाता धुँआ। मेरा जीवन ऐसे है जैसे धीरे धीरे बुझती आग।
निज दु:ख के कारण मेरा भार घट रहा है।
मैं अकेला हूँ जैसे कोई एकान्त निर्जन में उल्लू रहता हो। मैं अकेला हूँ जैसे कोई पुराने खण्डर भवनों में उल्लू रहता हो।
तूने मुझे दण्डित किया और मेरी सम्पूर्ण काया दु:ख रही है, मैंने पाप किये और तूने मुझे दण्ड दिया। इसलिए मेरी हड्डी दु:ख रही है।
उसने मेरा मांस, मेरा चर्म नष्ट कर दिया। उसने मेरी हड्डियों को तोड़ दिया।
किन्तु उनके मुख अब धुंए से काले हो गये हैं। यहाँ तक कि गलियों में उनको कोई नहीं पहचानता था। उनकी ठठरी पर अब झूर्रियां पड़ रही हैं। उनका चर्म लकड़ी सा कड़ा हो गया है।
हमारी खाल तन्दूर सी तप रही है, हमारी खाल तप रही उस भूख के कारण जो हमको लगी हैं।
‘इस नगर की वह धूल तक जो हमारे पैरों में लगी है, हम तुम्हारे विरोध में यहीं पीछे जा रहे है। फिर भी यह ध्यान रहे कि परमेश्वर का राज्य निकट आ पहुँचा है।’