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सभोपदेशक 6:7 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

मनुष्‍य अपने पेट के लिए ही सब परिश्रम करता है, तो भी उसका पेट कभी नहीं भरता।

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पवित्र बाइबल

एक व्यक्ति निरन्तर काम करता ही रहता है क्यों? क्योंकि उसे अपनी इच्छाएँ पूरी करनी है। किन्तु वह सन्तुष्ट तो कभी नहीं होता।

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Hindi Holy Bible

मनुष्य का सारा परिश्रम उसके पेट के लिये होता है तौभी उसका मन नहीं भरता।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

मनुष्य का सारा परिश्रम उसके पेट के लिये होता है तौभी उसका मन नहीं भरता।

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नवीन हिंदी बाइबल

मनुष्य का सारा परिश्रम उसके पेट के लिए होता है, फिर भी उसका जी नहीं भरता।

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सरल हिन्दी बाइबल

मनुष्य की सारी मेहनत उसके भोजन के लिए ही होती है, मगर उसका मन कभी संतुष्ट नहीं होता.

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019

मनुष्य का सारा परिश्रम उसके पेट के लिये होता है तो भी उसका मन नहीं भरता।

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सभोपदेशक 6:7
11 क्रॉस रेफरेंस  

मजदूर की भूख ही उसको काम करने के लिए प्रेरित करती है; पेट ही उसको विवश करता है।


सब बातें थकानेवाली हैं, मनुष्‍य उनका वर्णन नहीं कर सकता। आंखें देखकर भी तृप्‍त नहीं होतीं, और न कान सुनकर ही संतुष्‍ट होते हैं।


पैसे से प्‍यार करनेवाला पैसे से कभी सन्‍तुष्‍ट नहीं होता; और न ही ऐसा व्यक्‍ति, जिसे धन से प्रेम है, उसके अधिकाधिक लाभ से सन्‍तुष्‍ट होता है। यह भी व्‍यर्थ है।


किन्‍तु ऐसा होते हुए भी देश के लिए यह लाभदायक बात है कि देश की सेवा करने वाला एक राजा हो।


यदि किसी मनुष्‍य के सौ पुत्र उत्‍पन्न होते हैं, और वह लम्‍बी उम्र तक जीवित रहता है, दीर्घ आयु प्राप्‍त करता है, पर यदि वह जीवन के सुखों को भोग न कर पाए, मरने पर अन्‍तिम क्रिया भी उसे न प्राप्‍त हो, तो मैं यह कहूंगा : ऐसे मनुष्‍य से अधूरे माह का जन्‍मा मृत बच्‍चा श्रेष्‍ठ है।


अत: बुद्धिमान व्यक्‍ति किस बात में मूर्ख मनुष्‍य से श्रेष्‍ठ हुआ? गरीब मनुष्‍य, जो यह जानता है कि जीवन में कैसा आचरण करना चाहिए, उससे किस बात में श्रेष्‍ठ सिद्ध हुआ?


“मैं तुम लोगों से कहता हूँ, चिन्‍ता मत करो − न अपने जीवन-निर्वाह की, कि हम क्‍या खायें अथवा क्‍या पीयें और न अपने शरीर की, कि हम क्‍या पहनें। क्‍या जीवन भोजन से बढ़ कर नहीं? और क्‍या शरीर कपड़े से बढ़ कर नहीं?


और अपने प्राण से कहूँगा−ओ मेरे प्राण! तेरे पास बरसों के लिए बहुत-सी सम्‍पत्ति रखी है, इसलिए विश्राम कर, खा-पी और मौज उड़ा।’


नश्‍वर भोजन के लिए नहीं, बल्‍कि उस भोजन के लिए परिश्रम करो, जो शाश्‍वत जीवन तक बना रहता है और जिसे मानव-पुत्र तुम्‍हें देगा; क्‍योंकि पिता परमेश्‍वर ने मानव-पुत्र पर अपनी स्‍वीकृति की मोहर लगाई है।”