इब्रानियों 7:18 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) शक्तिहीन और निष्फल होने के कारण पुराना आदेश रद्द कर दिया गया है, पवित्र बाइबल पहला नियम इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि वह निर्बल और व्यर्थ था। Hindi Holy Bible निदान, पहिली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई। पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल और निष्फल होने के कारण लोप हो गई नवीन हिंदी बाइबल जहाँ एक ओर पहली आज्ञा निर्बल और निष्फल होने के कारण रद्द हो गई— सरल हिन्दी बाइबल एक ओर पहली आज्ञा का बहिष्कार उसकी दुर्बलता तथा निष्फलता के कारण कर दिया गया. इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 इस प्रकार, पहली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई। |
तो, क्या हम इस विश्वास द्वारा व्यवस्था को रद्द करते हैं? कदापि नहीं! हम व्यवस्था की पुष्टि करते हैं।
मानव स्वभाव की दुर्बलता के कारण मूसा की व्यवस्था जो कार्य करने में असमर्थ थी, वह कार्य परमेश्वर ने कर दिया है। उसने पाप के प्रायश्चित्त के लिए अपने पुत्र को भेजा, जिसने पापी मनुष्य के सदृश शरीर धारण किया। इस प्रकार परमेश्वर ने मानव शरीर में पाप को दण्डित किया,
भाइयो और बहिनो! मैं आप लोगों को साधारण जीवन का उदाहरण दे रहा हूँ। किसी मनुष्य का प्रामाणिक वसीयतनामा न तो कोई रद्द कर सकता और न उसमें कुछ जोड़ सकता है।
मेरे कहने का अभिप्राय यह है: जो विधान परमेश्वर द्वारा प्रामाणिक किया जा चुका है, उसे चार सौ तीस वर्ष बाद होने वाली व्यवस्था न तो रद्द कर सकती है और न उसकी प्रतिज्ञा को व्यर्थ बना सकती है।
तो क्या व्यवस्था और परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं में विरोध है? कभी नहीं! यदि ऐसी व्यवस्था की घोषणा हुई होती, जो जीवन प्रदान करने में समर्थ थी, तो व्यवस्था के पालन द्वारा ही मनुष्य धार्मिक ठहरता।
आप जो व्यवस्था के अधीन रहना चाहते हैं, मुझे यह बताइए : क्या आप यह नहीं सुनते कि व्यवस्था क्या कहती है?
किन्तु अब आप परमेश्वर को पहचान चुके हैं या यों कहें कि परमेश्वर ने आप को अपना लिया है, तो आप कैसे फिर उन अशक्त एवं असार तत्वों की शरण ले सकते हैं? क्या आप एक बार फिर उनकी दासता स्वीकार करना चाहते हैं?
शरीर के व्यायाम से कुछ लाभ तो होता है, किन्तु भक्ति से जो लाभ मिलता है, वह असीम है; क्योंकि वह जीवन का आश्वासन देती है, इहलोक में भी और परलोक में भी।
नाना प्रकार के अनोखे सिद्धान्तों के फेर में नहीं पड़ें। उत्तम यह है कि हमारा मन भोजन से नहीं, बल्कि परमेश्वर की कृपा से बल प्राप्त करे। भोजन-सम्बन्धी निषेध-विधियों का पालन करने वालों को इन से लाभ नहीं हुआ।
क्योंकि व्यवस्था कुछ भी पूर्णता तक नहीं पहुँचा सकी। हमें इस से श्रेष्ठ आशा प्रदान की गयी है और इसके माध्यम से हम परमेश्वर के निकट पहुँचते हैं।