वह बोली, ‘आपके जीवंत प्रभु परमेश्वर की सौगन्ध! मेरे घर में पका हुआ भोजन नहीं है। घड़े में मुट्ठी भर आटा, और कुप्पी में नाममात्र को तेल है। मैं दो-एक लकड़ी बीन रही हूं। मैं घर जाकर अपने लिए और अपने पुत्र के लिए रोटी बनाऊंगी। तब हम खाएंगे। इसके बाद तो भूख से मरना ही है।’
तुम उनसे कहना, “महाराज ने यों कहा है : तुम इस आदमी को कारागार में बन्द रखो। जब तक मैं युद्ध से सकुशल लौट न आऊं तब तक तुम इसे बस इतना भोजन देना कि यह जीवित रह सके।”
तब मैंने कहा, ‘यह क्या, स्वामी-प्रभु! देख, मैंने निषिद्ध भोजन खाकर कभी स्वयं को अशुद्ध नहीं किया। बचपन से अब तक मैंने किसी मरे हुए पशु अथवा जंगली जानवरों द्वारा मारे गए पशु का मांस नहीं खाया। मैंने व्यवस्था द्वारा निषिद्ध मांस अपने मुंह में कभी नहीं डाला।’
प्रभु ने मुझसे यह भी कहा, ‘ओ मानव! देख, मैं यरूशलेम में “रोटी के आधार” को तोड़ दूंगा। यरूशलेम के निवासी रोटी तौल-तौल कर और डरते हुए खाएंगे। वे पानी को मापकर पीएंगे, और पानी पीते समय भी वे चिंता में डूबे रहेंगे।