रोमियों 3:9 - नवीन हिंदी बाइबल तो क्या हुआ? क्या हम दूसरों से अच्छे हैं? बिलकुल नहीं! हम पहले ही दोष लगा चुके हैं कि चाहे यहूदी हों या यूनानी, सब पाप के अधीन हैं। पवित्र बाइबल तो फिर हम क्या कहें? क्या हम यहूदी ग़ैर यहूदियों से किसी भी तरह अच्छे है, नहीं बिल्कुल नहीं। क्योंकि हम यह दर्शा चुके है कि चाहे यहूदी हों, चाहे ग़ैर यहूदी सभी पाप के वश में हैं। Hindi Holy Bible तो फिर क्या हुआ? क्या हम उन से अच्छे हैं? कभी नहीं; क्योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं। पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI) तो, क्या हम यहूदी दूसरों की अपेक्षा बेहतर स्थिति में हैं? कदापि नहीं! हम यह आरोप लगा चुके हैं कि सब, चाहे यहूदी हों या यूनानी, पाप के अधीन हैं, पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI) तो फिर क्या हुआ? क्या हम उनसे अच्छे हैं? कभी नहीं; क्योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं। सरल हिन्दी बाइबल तब? क्या हम उनसे उत्तम हैं? बिलकुल नहीं! हम पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि यहूदी तथा यूनानी सभी पाप के अधीन हैं. इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019 तो फिर क्या हुआ? क्या हम उनसे अच्छे हैं? कभी नहीं; क्योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं। |
यह देखकर उस फरीसी ने, जिसने यीशु को बुलाया था, अपने मन में कहा, “यदि यह भविष्यवक्ता होता, तो जान जाता कि जो इसे छू रही है वह कौन और कैसी स्त्री है, क्योंकि वह तो एक पापिन है।”
परमेश्वर का प्रकोप उन लोगों की समस्त अभक्ति और अधार्मिकता पर स्वर्ग से प्रकट होता है जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं,
इससे क्या हुआ? इस्राएली जिसकी खोज में थे, वह उन्हें प्राप्त नहीं हुआ, केवल चुने हुओं को प्राप्त हुआ; और बाकी लोग कठोर कर दिए गए,
अतः हे दोष लगानेवाले, तू जो भी हो, निरुत्तर है; क्योंकि जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है, उसी में स्वयं को भी दोषी पाता है, इसलिए कि तू जिस बात का दोष लगाता है वही करता है।
अब हम जानते हैं कि व्यवस्था जो भी कहती है उन्हीं से कहती है जो व्यवस्था के अधीन हैं, ताकि प्रत्येक मुँह बंद किया जाए और सारा संसार परमेश्वर को लेखा देनेवाला ठहरे;
परंतु यदि हमारी अधार्मिकता परमेश्वर की धार्मिकता को प्रकट करती है, तो हम क्या कहें? क्या परमेश्वर जो क्रोध करता है, अधर्मी है? (मैं मानवीय रीति पर कह रहा हूँ।)
तो क्या? क्या हम इसलिए पाप करें क्योंकि हम व्यवस्था के अधीन नहीं बल्कि अनुग्रह के अधीन हैं? कदापि नहीं!
हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है; परंतु मैं शारीरिक हूँ और पाप के हाथों बिका हुआ हूँ।
फिर क्या करना चाहिए? मैं आत्मा में प्रार्थना करूँगा, और बुद्धि से भी प्रार्थना करूँगा; मैं आत्मा से गाऊँगा, और बुद्धि से भी गाऊँगा।
कौन है जो तुझे दूसरे से श्रेष्ठ समझता है? और तेरे पास क्या है जो तुझे नहीं मिला? और जबकि तुझे मिला है, तो घमंड क्यों करता है मानो तुझे मिला ही नहीं?
परंतु जितने व्यवस्था के कार्यों पर निर्भर रहते हैं, वे शाप के अधीन हैं, क्योंकि लिखा है : शापित है वह जो व्यवस्था की पुस्तक में लिखी हुई सब बातों का पालन नहीं करता।
परंतु पवित्रशास्त्र ने सब को पाप के अधीन कर दिया ताकि वह प्रतिज्ञा जो यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा है, विश्वास करनेवालों को दी जाए।
तो क्या हुआ? केवल यह कि चाहे दिखावे से हो या सच्चाई से, हर प्रकार से मसीह का प्रचार हो रहा है; और मैं इससे आनंदित हूँ। मैं और भी आनंदित होऊँगा,