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रोमियों 3:9 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

9 तो, क्‍या हम यहूदी दूसरों की अपेक्षा बेहतर स्‍थिति में हैं? कदापि नहीं! हम यह आरोप लगा चुके हैं कि सब, चाहे यहूदी हों या यूनानी, पाप के अधीन हैं,

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पवित्र बाइबल

9 तो फिर हम क्या कहें? क्या हम यहूदी ग़ैर यहूदियों से किसी भी तरह अच्छे है, नहीं बिल्कुल नहीं। क्योंकि हम यह दर्शा चुके है कि चाहे यहूदी हों, चाहे ग़ैर यहूदी सभी पाप के वश में हैं।

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Hindi Holy Bible

9 तो फिर क्या हुआ? क्या हम उन से अच्छे हैं? कभी नहीं; क्योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

9 तो फिर क्या हुआ? क्या हम उनसे अच्छे हैं? कभी नहीं; क्योंकि हम यहूदियों और यूनानियों दोनों पर यह दोष लगा चुके हैं कि वे सब के सब पाप के वश में हैं।

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नवीन हिंदी बाइबल

9 तो क्या हुआ? क्या हम दूसरों से अच्छे हैं? बिलकुल नहीं! हम पहले ही दोष लगा चुके हैं कि चाहे यहूदी हों या यूनानी, सब पाप के अधीन हैं।

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सरल हिन्दी बाइबल

9 तब? क्या हम उनसे उत्तम हैं? बिलकुल नहीं! हम पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि यहूदी तथा यूनानी सभी पाप के अधीन हैं.

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रोमियों 3:9
21 क्रॉस रेफरेंस  

कौन यह दावा कर सकता है, कि मैंने अपना हृदय शुद्ध कर लिया है, मैं पाप से मुक्‍त होकर पवित्र हो गया हूँ?


ये दूसरों से कहते हैं, “मुझ से दूर रह, मुझे स्‍पर्श मत कर; क्‍योंकि मैं तुझसे अधिक पवित्र हूं।” ऐसे लोग मेरी नाक में धुएँ की तरह घुटन पैदा करते हैं, ये निरंतर जलनेवाली आग हैं।


जिस फरीसी ने येशु को निमन्‍त्रण दिया था, उसने यह देख कर मन-ही-मन कहा, “यदि यह आदमी नबी होता, तो अवश्‍य जान जाता कि जो स्‍त्री इसे छू रही है, वह कौन और कैसी है−वह तो पापिनी है।”


परमेश्‍वर का क्रोध स्‍वर्ग से उन लोगों के सब प्रकार के अधर्म और अन्‍याय पर प्रकट हो रहा है, जो अन्‍याय द्वारा सत्‍य को दबाये रखते हैं।


परमेश्‍वर ने सब को अवज्ञा के पाप में फँसने दिया, क्‍योंकि वह सब पर दया दिखाना चाहता था।


तो इसका निष्‍कर्ष क्‍या है? इस्राएल जिस बात की खोज में था, उसे नहीं पा सका, किन्‍तु चुने हुए लोगों ने उसे पा लिया और शेष लोगों का हृदय कठोर बन गया।


इसलिए, हे दूसरों पर दोष लगाने वाले! तुम चाहे जो भी हो, अक्षम्‍य हो। तुम दूसरों पर दोष लगाने के कारण अपने को दोषी ठहराते हो; क्‍योंकि तुम, जो दूसरों पर दोष लगाते हो, ये ही कुकर्म स्‍वयं करते हो।


तो दूसरों की अपेक्षा यहूदी को अधिक क्‍या मिला? और खतने से क्‍या लाभ?


हम जानते हैं कि व्‍यवस्‍था जो कुछ कहती है, वह उन लोगों से कहती है, जो व्‍यवस्‍था के अधीन हैं, जिससे प्रत्‍येक व्यक्‍ति का मुँह बन्‍द हो जाए और परमेश्‍वर के सामने समस्‍त संसार दण्‍ड के योग्‍य माना जाए।


यदि हमारा अधर्म परमेश्‍वर की धार्मिकता प्रदर्शित करता है, तो हम क्‍या कहें? क्‍या यह कि जब परमेश्‍वर क्रुद्ध होकर हमें दण्‍ड देता है, तब वह अन्‍याय करता है? मैं यह मानवीय तर्क के अनुसार कह रहा हूँ।


तो, क्‍या हम इसलिए पाप करें कि हम व्‍यवस्‍था के नहीं, बल्‍कि अनुग्रह के अधीन हैं? कदापि नहीं!


हम जानते हैं कि व्‍यवस्‍था आध्‍यात्‍मिक है, किन्‍तु मैं शारीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ दास हूँ,


मैं यह नहीं कहता कि मूर्ति को चढ़ाये हुए मांस की कोई विशेषता है अथवा यह कि मूर्ति का कुछ महत्व है।


तो क्‍या करना चाहिए? मैं अपनी आत्‍मा से प्रार्थना करूँगा और अपनी बुद्धि से भी। मैं अपनी आत्‍मा से गीत गाऊंगा और अपनी बुद्धि से भी।


कौन है वह, जो तुम को दूसरों की अपेक्षा अधिक महत्व देता है? तुम्‍हारे पास क्‍या है, जो तुम्‍हें न दिया गया हो? और यदि तुम को सब कुछ दान में मिला है, तो इस पर क्‍यों गर्व करते हो, मानो यह तुम्‍हें न दिया गया हो?


परन्‍तु जो व्‍यवस्‍था के कर्मकाण्‍ड पर निर्भर रहते हैं, वे शाप के अधीन हैं; क्‍योंकि लिखा है: “जो व्यक्‍ति व्‍यवस्‍था-ग्रन्‍थ में लिखी हुई सभी बातों का पालन नहीं करता रहता है, वह शापित है।”


परन्‍तु धर्मग्रन्‍थ ने सब कुछ पाप की शक्‍ति के अधीन बंदी बना दिया है, जिससे येशु मसीह में विश्‍वास के द्वारा विश्‍वास करने वालों के लिए प्रतिज्ञा पूरी की जाये।


लेकिन इससे क्‍या? बहाने से हो या सच्‍चाई से, चाहे जिस प्रकार हो, मसीह का प्रचार तो हो रहा है। मैं इसी से आनन्‍दित हूँ। और मैं आनन्‍द मनाता ही रहूँगा,


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