परमेश्वर आहार के लिए ‘मन्ना देता है1 समस्त इस्राएली मंडली ने एलीम निकुंज से प्रस्थान किया। मिस्र देश से उनके निर्गमन के दूसरे महीने के पन्द्रहवें दिन वे सीन नामक निर्जन प्रदेश में पहुँचे। यह निर्जन प्रदेश एलीम निकुंज और सीनय पर्वत के मध्य में है। 2 समस्त इस्राएली मंडली निर्जन प्रदेश में मूसा और हारून के विरुद्ध बक-बक करने लगी। 3 इस्राएलियों ने उनसे कहा, ‘जब हम मिस्र देश में मांस की देगची के निकट बैठकर भरपेट भोजन करते थे, तब अच्छा होता कि हम प्रभु के हाथ मर गए होते; क्योंकि आप लोग इस निर्जन प्रदेश में समस्त जन-समुदाय को भूख से मार डालने के लिए मिस्र देश से हमें निकालकर लाए हैं।’ 4 प्रभु ने मूसा से कहा, ‘देख, मैं तुम्हारे लिए स्वर्ग से भोजन की वर्षा करूंगा। ये लोग प्रत्येक दिन बाहर निकलकर दैनिक भोजन एकत्र करेंगे। इससे मैं उनको परखूंगा कि वे मेरी व्यवस्था के अनुसार चलेंगे अथवा नहीं। 5 जितनी भोजन-सामग्री ये छठे दिन लाकर तैयार करेंगे, वह उससे दुगुनी होगी जो ये प्रतिदिन एकत्र करते हैं।’ 6 अत: मूसा और हारून ने सब इस्राएलियों से कहा, ‘सन्ध्या समय तुम्हें ज्ञात हो जाएगा कि प्रभु ने ही तुम्हें मिस्र देश से बाहर निकाला है। 7 प्रात:काल तुम उसकी महिमा देखोगे; क्योंकि प्रभु ने अपने विरुद्ध तुम्हारा बक-बकाना सुना है। हम क्या हैं कि तुम हमारे विरुद्ध बक-बक करते हो?’ 8 मूसा ने पुन: कहा, ‘यह तब होगा जब प्रभु सन्ध्या समय तुम्हें खाने के लिए मांस और प्रात:काल भर-पेट रोटी देगा; क्योंकि जो बक-बक तुमने प्रभु के विरुद्ध की थी, उसने उसे सुना है। हम क्या हैं? तुम्हारा बक-बकाना हमारे विरुद्ध नहीं, वरन् प्रभु के विरुद्ध है।’ 9 तत्पश्चात मूसा ने हारून से कहा, ‘तुम समस्त इस्राएली मंडली से यह कहो, “प्रभु के सम्मुख, उसके निकट जाओ; क्योंकि उसने तुम्हारा बक-बकाना सुना है।” ’ 10 जब हारून समस्त इस्राएली मंडली से बोला तब वे लोग निर्जन प्रदेश की ओर उन्मुख हुए और देखो, प्रभु की महिमा मेघ में दिखाई दी। 11 प्रभु मूसा से बोला, 12 ‘मैंने इस्राएलियों का बक-बकाना सुना है। तू उनसे यह कह, “तुम गोधूलि के समय मांस खाओगे और प्रात:काल रोटी से तृप्त होगे। तब तुम्हें ज्ञात होगा कि मैं प्रभु, तुम्हारा परमेश्वर हूं।” ’ 13 सन्ध्या समय बटेरें उड़कर आईं। उन्होंने पड़ाव को ढक लिया। सबेरे पड़ाव के चारों ओर ओस गिरी। 14 जब ओस सूख गई तब सूखी भूमि की सतह पर छोटे-छोटे छिलके, पाले के समान छोटे कण, दिखाई दिए। 15 जब इस्राएलियों ने उसे देखा तब वे एक दूसरे से कहने लगे, ‘यह क्या है?’। क्योंकि वे नहीं जानते थे कि वह क्या है। मूसा ने उनसे कहा, ‘यह रोटी है, जो प्रभु ने तुम्हें खाने के लिए दी है। 16 जो आज्ञा प्रभु ने दी, वह यह है, “प्रत्येक व्यक्ति अपनी खुराक के अनुसार उसे एकत्र करेगा। प्रत्येक व्यक्ति अपने तम्बू में रहने वाले मनुष्यों की गिनती के अनुसार व्यक्ति पीछे एक-एक ओमेर लेगा।” ’ 17 इस्राएलियों ने ऐसा ही किया। किसी ने अधिक, किसी ने कम एकत्र किया। 18 किन्तु जब उन्होंने ओमेर पात्र से मापा तब अधिक एकत्र करने वाले के पास अतिरिक्त न निकला, और न कम एकत्र करने वाले के पास आवश्यकता से कम। प्रत्येक व्यक्ति ने अपनी खुराक के अनुसार एकत्र किया था। 19 मूसा ने उनसे कहा, ‘कोई भी व्यक्ति प्रात:काल तक उसे बचाकर नहीं रखेगा।’ 20 किन्तु उन्होंने मूसा की बात नहीं सुनी। कुछ लोगों ने उसे सबेरे तक बचाकर रखा। पर उसमें कीड़े पड़ गए और वह दुर्गन्धमय हो गया। मूसा उन पर क्रोधित हुए। 21 प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन सबेरे अपनी खुराक के अनुसार उसे एकत्र करता था। किन्तु जब सूर्य तपने लगता, वह पिघल जाता था। 22 उन्होंने छठे दिन भोजन दुगुनी मात्रा में, अर्थात् प्रति व्यक्ति पीछे दो ओमेर एकत्र किया। जब इस्राएली मंडली के सब अगुओं ने आकर मूसा को यह बताया 23 तब मूसा ने उनसे कहा, ‘यह वही बात है, जो प्रभु ने कही थी। कल परम विश्राम का दिन, प्रभु का पवित्र विश्राम-दिवस है। आज तुम्हें जितना पकाना है, उतना पकाओ; जितना उबालना है, उतना उबालो। जो कुछ शेष रहे, उसे सबेरे तक सुरक्षित रखो।’ 24 उन्होंने मूसा की आज्ञा के अनुसार भोजन सबेरे तक अलग रखा। वह न तो दुर्गन्धमय हुआ और न उसमें कीड़े पड़े। 25 मूसा ने कहा, ‘तुम इसे आज खाओ। आज प्रभु का विश्राम-दिवस है। इसलिए यह आज तुम्हें मैदान में नहीं मिलेगा। 26 तुम छ: दिन तक इसे एकत्र करना। सातवां दिन विश्राम-दिवस है। उस दिन यह तुम्हें नहीं मिलेगा।’ 27 कुछ व्यक्ति सातवें दिन उसे एकत्र करने के लिए बाहर गए, किन्तु उन्हें कुछ नहीं मिला। 28 प्रभु ने मूसा से कहा, ‘तुम कब तक मेरी आज्ञों और नियमों का पालन नहीं करोगे? 29 देखो, मैंने तुम्हें विश्राम-दिवस प्रदान किया है। इसलिए मैं तुम्हें छठे दिन दो दिन के लिए भोजन प्रदान करता हूं। अत: प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थान पर रहे। सातवें दिन कोई भी व्यक्ति अपने निवास-स्थान से बाहर न जाये।’ 30 इस प्रकार इस्राएलियों ने सातवें दिन विश्राम किया। 31 इस्राएल के वंशजों ने उस भोजन वस्तु का नाम ‘मन्ना’ रखा। वह धनिये के बीज के समान सफेद था। उसका स्वाद शहद से बने पुओं के सदृश था। 32 मूसा ने कहा, ‘जो आज्ञा प्रभु ने दी है, वह यह है : एक ओमेर माप “मन्ना” तुम्हारी पीढ़ी से पीढ़ी तक सुरक्षित रखा जाए जिससे वे उस भोजन को देखें जिसे मैंने तुम्हें निर्जन प्रदेश में खिलाया था, जब मैं तुम्हें मिस्र देश से निकालकर लाया।’ 33 मूसा ने हारून से कहा, ‘तुम एक घड़ा लो। उसमें एक ओमेर भर “मन्ना” डालो। उसे प्रभु के सम्मुख रखो जिससे वह तुम्हारी पीढ़ी से पीढ़ी तक सुरक्षित रहे।’ 34 मूसा को दी गई प्रभु की आज्ञा के अनुसार हारून ने घड़े को साक्षी की मंजूषा के सम्मुख रखा कि वह सुरक्षित रहे। 35 जब तक इस्राएली आबाद देश में नहीं पहुँच गए, वे चालीस वर्ष ‘मन्ना’ ही खाते रहे। कनान देश की सीमा पहुँचने तक इस्राएलियों ने ‘मन्ना’ ही खाया। 36 (एक ओमेर माप एपा का दसवां भाग होता है।) |
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
Copyright © Bible Society of India, 2015.
Used by permission. All rights reserved worldwide.
Bible Society of India