भलाई के लिए परमेश्वर की स्तुति1 याह की स्तुति करो! मैं सीधे लोगों की गोष्ठी में, और मंडली में भी संपूर्ण मन से यहोवा का धन्यवाद करूँगा। 2 यहोवा के कार्य महान हैं, जो उनसे प्रसन्न रहते हैं, वे सब उन पर ध्यान लगाते हैं। 3 उसके कार्य वैभवशाली और प्रतापमय हैं, और उसकी धार्मिकता सदैव बनी रहती है। 4 उसने अपने आश्चर्यकर्मों का स्मरण कराया है; यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु है। 5 उसने अपने भय माननेवालों को भोजन प्रदान किया है; वह अपनी वाचा को सदा स्मरण रखता है। 6 उसने जाति-जाति की भूमि अपनी प्रजा को देकर अपने कार्यों का सामर्थ्य उन पर प्रकट किया है। 7 सत्य और न्याय उसके हाथों के कार्य हैं। उसकी सब आज्ञाएँ विश्वासयोग्य हैं; 8 वे सदा-सर्वदा अटल हैं। उनका पालन सच्चाई और सीधाई से किया जाता है। 9 उसने अपनी प्रजा को छुड़ाया है; उसने अपनी वाचा को सदा के लिए ठहराया है। उसका नाम पवित्र और भययोग्य है। 10 यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है। जो उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, उन सब की समझ उत्तम होती है। उसकी स्तुति सदा होती रहेगी। |