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नीतिवचन 7 - नवीन हिंदी बाइबल नवीन हिंदी बाइबल
नीतिवचन 7

1 हे मेरे पुत्र, मेरी बातों को माना कर, और मेरी आज्ञाओं को अपने मन में रखे रह।

2 मेरी आज्ञाओं का पालन कर तो तू जीवित रहेगा; मेरी शिक्षा को अपनी आँख की पुतली जानकर सुरक्षित रख।

3 उन्हें अपनी उँगलियों पर बाँध ले, और अपने हृदय-पटल पर लिख ले।

4 बुद्धि से कह, “तू मेरी बहन है,” और समझ को अपनी कुटुंबिनी बना।

5 तब तू पराई स्‍त्री से बचा रहेगा, अर्थात् उस चरित्रहीन स्‍त्री से जो चिकनी-चुपड़ी बातें बोलती है।

व्यभिचार की कहानी

6 एक दिन मैंने अपने घर की खिड़की, अर्थात् झरोखे से बाहर झाँका,

7 तो मुझे सरल-हृदय लोगों के बीच एक नासमझ युवक दिखाई दिया।

8 वह उस गली के मोड़ तक गया जहाँ वह स्‍त्री रहती थी, फिर उसने उसके घर का मार्ग लिया।

9 उस समय दिन ढल गया था, और साँझ हो गई थी, रात का अंधकार गहराता जा रहा था।

10 और देखो, एक स्‍त्री उससे मिली जिसकी वेशभूषा वेश्या की सी थी; उसका हृदय धूर्तता से भरा हुआ था।

11 वह अशांत और चंचल थी, उसके पैर घर में टिकते न थे।

12 वह कभी गली में, तो कभी चौक में दिखाई देती थी; वह हर मोड़ पर शिकार के लिए घात लगाती थी।

13 तब उसने उस युवक को पकड़कर चूमा, और निर्लज्‍ज मुँह बना कर उससे कहा :

14 “मुझे मेलबलियाँ चढ़ानी थीं; मैंने अपनी मन्‍नतें आज ही पूरी की हैं।

15 इसी कारण मैं तुझसे भेंट करने निकली; मैं तुझे ढूँढ़ रही थी, और तू अब मिल गया है।

16 मैंने अपने पलंग पर मिस्र की रंग-बिरंगी मखमल की चादरें बिछाई हैं।

17 मैंने अपने बिछौने को गंधरस, अगर और दालचीनी से सुगंधित किया है।

18 आ, हम भोर तक प्रेम के नशे में डूबे रहें। आ, हम एक दूसरे के प्रेम का आनंद लें।

19 मेरा पति घर पर नहीं है; वह लंबी यात्रा पर निकल गया है।

20 वह अपने साथ रुपयों की थैली ले गया है, और पूर्णिमा के दिन ही घर लौटेगा।”

21 लुभावनी बातें कह कहकर उसने उसे फँसा लिया; अपनी मीठी-मीठी बातों से उसने उसे अपने वश में कर लिया।

22 वह तुरंत उसके पीछे हो लिया, जैसे बैल कसाईखाने को, या बेड़ी पहने हुए कोई मूर्ख दंड पाने को जाता है।

23 अंत में उस युवक का कलेजा तीर से बेधा जाएगा। वह ऐसे पक्षी के समान है जो वेग से जाल की ओर उड़ता है और नहीं जानता कि वह अपने प्राणों से हाथ धो बैठेगा।

24 अब हे मेरे पुत्रो, मेरी सुनो, और मेरे मुँह के वचनों पर ध्यान दो।

25 तेरा मन ऐसी स्‍त्री के मार्गों की ओर न फिरे, तू उसकी राहों में भूलकर भी न जाना।

26 क्योंकि उसने बहुत से लोगों को मारकर घायल किया है; उसके द्वारा घात किए हुओं की संख्या बड़ी है।

27 उसका घर अधोलोक का मार्ग है, वह मृत्यु की कोठरी में पहुँचाता है।

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