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नीतिवचन 5 - नवीन हिंदी बाइबल नवीन हिंदी बाइबल
नीतिवचन 5

व्यभिचार के विरुद्ध चेतावनी

1 हे मेरे पुत्र, मेरी बुद्धि की बातों पर ध्यान दे; मेरी समझ की बातों पर कान लगा,

2 जिससे तेरा विवेक सुरक्षित बना रहे, और तेरे होंठ ज्ञान की रक्षा करें।

3 क्योंकि व्यभिचारिणी के होंठों से मधु टपकता है, और उसकी बातें तेल से भी अधिक चिकनी होती हैं;

4 परंतु अंत में वह स्‍त्री नागदौना सी कड़वी और दोधारी तलवार सी पैनी सिद्ध होती है।

5 उसके पैर मृत्यु की ओर बढ़ते हैं, और उसके कदम अधोलोक तक पहुँचते हैं।

6 वह जीवन के मार्ग पर ध्यान नहीं देती; उसकी चाल टेढ़ी-मेढ़ी है, पर वह यह नहीं जानती।

7 इसलिए अब हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और मेरी बातों से मुँह न मोड़।

8 ऐसी स्‍त्री से दूर ही रह, और उसके घर के द्वार के पास भी न जा।

9 कहीं ऐसा न हो कि तू अपना मान-सम्मान औरों को, और अपना जीवन किसी निर्दयी को सौंप दे;

10 या पराए तेरी कमाई से अपना पेट भरें, और तेरे परिश्रम का फल किसी परदेशी के घर पहुँचे;

11 और अपने अंतिम समय में जब तेरा शरीर क्षीण हो जाए तो तू कराहते हुए कहे,

12 “हाय! मैंने शिक्षा से कैसा बैर किया, और मेरे मन ने चेतावनियों का कैसा तिरस्कार किया!

13 मैंने अपने गुरुओं की बात न मानी और अपने सिखानेवालों की ओर कान न लगाया।

14 मैं सभा और मंडली के सामने पूरी तरह से नष्‍ट होने पर था।”

वैवाहिक जीवन का आनंद लेना

15 तू अपने ही कुंड से पानी, और अपने ही कुएँ के उमड़ते हुए जल में से पिया कर।

16 क्या तेरे सोते बाहर यहाँ-वहाँ, और तेरे जल की धाराएँ सड़कों पर फैल जाएँ?

17 वे केवल तेरे ही लिए हों, न कि तेरे साथ औरों के लिए भी।

18 तेरा सोता धन्य रहे; और तू अपनी जवानी की पत्‍नी के साथ आनंदित रह।

19 एक प्रेमी हरिणी और मनोहर मृगी के समान उसके स्तन तुझे सदा तृप्‍त रखें; उसका प्रेम तुझे सदा आकर्षित करता रहे।

20 हे मेरे पुत्र, तू व्यभिचारिणी स्‍त्री पर क्यों मोहित हो, और किसी पराई स्‍त्री को सीने से क्यों लगाए?

21 क्योंकि मनुष्य के मार्ग यहोवा की दृष्‍टि में बने रहते हैं, और वह उसके सारे चाल-चलन को देखता है।

22 दुष्‍ट अपने ही अधर्म के कामों में फँसेगा, और अपने ही पाप के बंधनों में जकड़ा रहेगा।

23 वह शिक्षा के अभाव में मर जाएगा, और अपनी बड़ी मूर्खता के कारण भटकता रहेगा।

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