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मत्ती 21:9 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

9 अग्रगामिनः पश्चाद्गामिनश्च मनुजा उच्चैर्जय जय दायूदः सन्तानेति जगदुः परमेश्वरस्य नाम्ना य आयाति स धन्यः, सर्व्वोपरिस्थस्वर्गेपि जयति।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

9 অগ্ৰগামিনঃ পশ্চাদ্গামিনশ্চ মনুজা উচ্চৈৰ্জয জয দাযূদঃ সন্তানেতি জগদুঃ পৰমেশ্ৱৰস্য নাম্না য আযাতি স ধন্যঃ, সৰ্ৱ্ৱোপৰিস্থস্ৱৰ্গেপি জযতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

9 অগ্রগামিনঃ পশ্চাদ্গামিনশ্চ মনুজা উচ্চৈর্জয জয দাযূদঃ সন্তানেতি জগদুঃ পরমেশ্ৱরস্য নাম্না য আযাতি স ধন্যঃ, সর্ৱ্ৱোপরিস্থস্ৱর্গেপি জযতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

9 အဂြဂါမိနး ပၑ္စာဒ္ဂါမိနၑ္စ မနုဇာ ဥစ္စဲရ္ဇယ ဇယ ဒါယူဒး သန္တာနေတိ ဇဂဒုး ပရမေၑွရသျ နာမ္နာ ယ အာယာတိ သ ဓနျး, သရွွောပရိသ္ထသွရ္ဂေပိ ဇယတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

9 agragAminaH pazcAdgAminazca manujA uccairjaya jaya dAyUdaH santAnEti jagaduH paramEzvarasya nAmnA ya AyAti sa dhanyaH, sarvvOparisthasvargEpi jayati|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

9 અગ્રગામિનઃ પશ્ચાદ્ગામિનશ્ચ મનુજા ઉચ્ચૈર્જય જય દાયૂદઃ સન્તાનેતિ જગદુઃ પરમેશ્વરસ્ય નામ્ના ય આયાતિ સ ધન્યઃ, સર્વ્વોપરિસ્થસ્વર્ગેપિ જયતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

9 agragAminaH pazcAdgAminazca manujA uccairjaya jaya dAyUdaH santAneti jagaduH paramezvarasya nAmnA ya AyAti sa dhanyaH, sarvvoparisthasvargepi jayati|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मत्ती 21:9
11 अन्तरसन्दर्भाः  

इत्थं तस्मिन् यिरूशालमं प्रविष्टे कोऽयमिति कथनात् कृत्स्नं नगरं चञ्चलमभवत्।


यदा प्रधानयाजका अध्यापकाश्च तेन कृतान्येतानि चित्रकर्म्माणि ददृशुः, जय जय दायूदः सन्तान, मन्दिरे बालकानाम् एतादृशम् उच्चध्वनिं शुश्रुवुश्च, तदा महाक्रुद्धा बभूवः,


अहं युष्मान् तथ्यं वदामि, यः परमेश्वरस्य नाम्नागच्छति, स धन्य इति वाणीं यावन्न वदिष्यथ, तावत् मां पुन र्न द्रक्ष्यथ।


ततः परं यीशुस्तस्मात् स्थानाद् यात्रां चकार; तदा हे दायूदः सन्तान, अस्मान् दयस्व, इति वदन्तौ द्वौ जनावन्धौ प्रोचैराहूयन्तौ तत्पश्चाद् वव्रजतुः।


पश्यत युष्माकं वासस्थानानि प्रोच्छिद्यमानानि परित्यक्तानि च भविष्यन्ति; युष्मानहं यथार्थं वदामि, यः प्रभो र्नाम्नागच्छति स धन्य इति वाचं यावत्कालं न वदिष्यथ, तावत्कालं यूयं मां न द्रक्ष्यथ।


सर्व्वोर्द्व्वस्थैरीश्वरस्य महिमा सम्प्रकाश्यतां। शान्तिर्भूयात् पृथिव्यास्तु सन्तोषश्च नरान् प्रति॥


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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