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मार्क 7:6 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

6 ततः स प्रत्युवाच कपटिनो युष्मान् उद्दिश्य यिशयियभविष्यद्वादी युक्तमवादीत्। यथा स्वकीयैरधरैरेते सम्मन्यनते सदैव मां। किन्तु मत्तो विप्रकर्षे सन्ति तेषां मनांसि च।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

6 ততঃ স প্ৰত্যুৱাচ কপটিনো যুষ্মান্ উদ্দিশ্য যিশযিযভৱিষ্যদ্ৱাদী যুক্তমৱাদীৎ| যথা স্ৱকীযৈৰধৰৈৰেতে সম্মন্যনতে সদৈৱ মাং| কিন্তু মত্তো ৱিপ্ৰকৰ্ষে সন্তি তেষাং মনাংসি চ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

6 ততঃ স প্রত্যুৱাচ কপটিনো যুষ্মান্ উদ্দিশ্য যিশযিযভৱিষ্যদ্ৱাদী যুক্তমৱাদীৎ| যথা স্ৱকীযৈরধরৈরেতে সম্মন্যনতে সদৈৱ মাং| কিন্তু মত্তো ৱিপ্রকর্ষে সন্তি তেষাং মনাংসি চ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

6 တတး သ ပြတျုဝါစ ကပဋိနော ယုၐ္မာန် ဥဒ္ဒိၑျ ယိၑယိယဘဝိၐျဒွါဒီ ယုက္တမဝါဒီတ်၊ ယထာ သွကီယဲရဓရဲရေတေ သမ္မနျနတေ သဒဲဝ မာံ၊ ကိန္တု မတ္တော ဝိပြကရ္ၐေ သန္တိ တေၐာံ မနာံသိ စ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

6 tataH sa pratyuvAca kapaTinO yuSmAn uddizya yizayiyabhaviSyadvAdI yuktamavAdIt| yathA svakIyairadharairEtE sammanyanatE sadaiva mAM| kintu mattO viprakarSE santi tESAM manAMsi ca|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

6 તતઃ સ પ્રત્યુવાચ કપટિનો યુષ્માન્ ઉદ્દિશ્ય યિશયિયભવિષ્યદ્વાદી યુક્તમવાદીત્| યથા સ્વકીયૈરધરૈરેતે સમ્મન્યનતે સદૈવ માં| કિન્તુ મત્તો વિપ્રકર્ષે સન્તિ તેષાં મનાંસિ ચ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

6 tataH sa pratyuvAca kapaTino yuSmAn uddizya yizayiyabhaviSyadvAdI yuktamavAdIt| yathA svakIyairadharairete sammanyanate sadaiva mAM| kintu matto viprakarSe santi teSAM manAMsi ca|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मार्क 7:6
14 अन्तरसन्दर्भाः  

यादृशानि कर्म्माणि केनापि कदापि नाक्रियन्त तादृशानि कर्म्माणि यदि तेषां साक्षाद् अहं नाकरिष्यं तर्हि तेषां पापं नाभविष्यत् किन्त्वधुना ते दृष्ट्वापि मां मम पितरञ्चार्त्तीयन्त।


अहं युष्मान् जानामि; युष्माकमन्तर ईश्वरप्रेम नास्ति।


एतत्कारणात् तेषां परस्परम् अनैक्यात् सर्व्वे चलितवन्तः; तथापि पौल एतां कथामेकां कथितवान् पवित्र आत्मा यिशयियस्य भविष्यद्वक्तु र्वदनाद् अस्माकं पितृपुरुषेभ्य एतां कथां भद्रं कथयामास, यथा,


भक्तवेशाः किन्त्वस्वीकृतभक्तिगुणा भविष्यन्ति; एतादृशानां लोकानां संमर्गं परित्यज।


ईश्वरस्य ज्ञानं ते प्रतिजानन्ति किन्तु कर्म्मभिस्तद् अनङ्गीकुर्व्वते यतस्ते गर्हिता अनाज्ञाग्राहिणः सर्व्वसत्कर्म्मणश्चायोग्याः सन्ति।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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