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मार्क 6:48 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

48 अथ सम्मुखवातवहनात् शिष्या नावं वाहयित्वा परिश्रान्ता इति ज्ञात्वा स निशाचतुर्थयामे सिन्धूपरि पद्भ्यां व्रजन् तेषां समीपमेत्य तेषामग्रे यातुम् उद्यतः।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

48 অথ সম্মুখৱাতৱহনাৎ শিষ্যা নাৱং ৱাহযিৎৱা পৰিশ্ৰান্তা ইতি জ্ঞাৎৱা স নিশাচতুৰ্থযামে সিন্ধূপৰি পদ্ভ্যাং ৱ্ৰজন্ তেষাং সমীপমেত্য তেষামগ্ৰে যাতুম্ উদ্যতঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

48 অথ সম্মুখৱাতৱহনাৎ শিষ্যা নাৱং ৱাহযিৎৱা পরিশ্রান্তা ইতি জ্ঞাৎৱা স নিশাচতুর্থযামে সিন্ধূপরি পদ্ভ্যাং ৱ্রজন্ তেষাং সমীপমেত্য তেষামগ্রে যাতুম্ উদ্যতঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

48 အထ သမ္မုခဝါတဝဟနာတ် ၑိၐျာ နာဝံ ဝါဟယိတွာ ပရိၑြာန္တာ ဣတိ ဇ္ဉာတွာ သ နိၑာစတုရ္ထယာမေ သိန္ဓူပရိ ပဒ္ဘျာံ ဝြဇန် တေၐာံ သမီပမေတျ တေၐာမဂြေ ယာတုမ် ဥဒျတး၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

48 atha sammukhavAtavahanAt ziSyA nAvaM vAhayitvA parizrAntA iti jnjAtvA sa nizAcaturthayAmE sindhUpari padbhyAM vrajan tESAM samIpamEtya tESAmagrE yAtum udyataH|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

48 અથ સમ્મુખવાતવહનાત્ શિષ્યા નાવં વાહયિત્વા પરિશ્રાન્તા ઇતિ જ્ઞાત્વા સ નિશાચતુર્થયામે સિન્ધૂપરિ પદ્ભ્યાં વ્રજન્ તેષાં સમીપમેત્ય તેષામગ્રે યાતુમ્ ઉદ્યતઃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मार्क 6:48
16 अन्तरसन्दर्भाः  

किन्तु तदानीं सम्मुखवातत्वात् सरित्पते र्मध्ये तरङ्गैस्तरणिर्दोलायमानाभवत्।


कुत्र यामे स्तेन आगमिष्यतीति चेद् गृहस्थो ज्ञातुम् अशक्ष्यत्, तर्हि जागरित्वा तं सन्धिं कर्त्तितुम् अवारयिष्यत् तद् जानीत।


गृहपतिः सायंकाले निशीथे वा तृतीययामे वा प्रातःकाले वा कदागमिष्यति तद् यूयं न जानीथ;


ततः सन्ध्यायां सत्यां नौः सिन्धुमध्य उपस्थिता किन्तु स एकाकी स्थले स्थितः।


किन्तु शिष्याः सिन्धूपरि तं व्रजन्तं दृष्ट्वा भूतमनुमाय रुरुवुः,


यदि द्वितीये तृतीये वा प्रहरे समागत्य तथैव पश्यति, तर्हि तएव दासा धन्याः।


अथ गम्यग्रामाभ्यर्णं प्राप्य तेनाग्रे गमनलक्षणे दर्शिते


तेषां जनिः शोणितान्न शारीरिकाभिलाषान्न मानवानामिच्छातो न किन्त्वीश्वरादभवत्।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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