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मार्क 10:51 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

51 ततो यीशुस्तमवदत् त्वया किं प्रार्थ्यते? तुभ्यमहं किं करिष्यामी? तदा सोन्धस्तमुवाच, हे गुरो मदीया दृष्टिर्भवेत्।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

51 ততো যীশুস্তমৱদৎ ৎৱযা কিং প্ৰাৰ্থ্যতে? তুভ্যমহং কিং কৰিষ্যামী? তদা সোন্ধস্তমুৱাচ, হে গুৰো মদীযা দৃষ্টিৰ্ভৱেৎ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

51 ততো যীশুস্তমৱদৎ ৎৱযা কিং প্রার্থ্যতে? তুভ্যমহং কিং করিষ্যামী? তদা সোন্ধস্তমুৱাচ, হে গুরো মদীযা দৃষ্টির্ভৱেৎ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

51 တတော ယီၑုသ္တမဝဒတ် တွယာ ကိံ ပြာရ္ထျတေ? တုဘျမဟံ ကိံ ကရိၐျာမီ? တဒါ သောန္ဓသ္တမုဝါစ, ဟေ ဂုရော မဒီယာ ဒၖၐ္ဋိရ္ဘဝေတ်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

51 tatO yIzustamavadat tvayA kiM prArthyatE? tubhyamahaM kiM kariSyAmI? tadA sOndhastamuvAca, hE gurO madIyA dRSTirbhavEt|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

51 તતો યીશુસ્તમવદત્ ત્વયા કિં પ્રાર્થ્યતે? તુભ્યમહં કિં કરિષ્યામી? તદા સોન્ધસ્તમુવાચ, હે ગુરો મદીયા દૃષ્ટિર્ભવેત્|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

51 tato yIzustamavadat tvayA kiM prArthyate? tubhyamahaM kiM kariSyAmI? tadA sondhastamuvAca, he guro madIyA dRSTirbhavet|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




मार्क 10:51
11 अन्तरसन्दर्भाः  

हट्ठे नमस्कारं गुरुरिति सम्बोधनञ्चैतानि सर्व्वाणि वाञ्छन्ति।


किन्तु यूयं गुरव इति सम्बोधनीया मा भवत, यतो युष्माकम् एकः ख्रीष्टएव गुरु


यूयं तेषामिव मा कुरुत, यस्मात् युष्माकं यद् यत् प्रयोजनं याचनातः प्रागेव युष्माकं पिता तत् जानाति।


याचध्वं ततो युष्मभ्यं दायिष्यते; मृगयध्वं तत उद्देशं लप्स्यध्वे; द्वारम् आहत, ततो युष्मत्कृते मुक्तं भविष्यति।


ततः स कथितवान्, युवां किमिच्छथः? किं मया युष्मदर्थं करणीयं?


तदा स उत्तरीयवस्त्रं निक्षिप्य प्रोत्थाय यीशोः समीपं गतः।


तदा यीशुस्ताम् अवदत् हे मरियम्। ततः सा परावृत्य प्रत्यवदत् हे रब्बूनी अर्थात् हे गुरो।


तदा सहस्रसेनापतिस्तस्य हस्तं धृत्वा निर्जनस्थानं नीत्वा पृष्ठवान् तव किं निवेदनं? तत् कथय।


यूयं किमपि न चिन्तयत किन्तु धन्यवादयुक्ताभ्यां प्रार्थनायाञ्चाभ्यां सर्व्वविषये स्वप्रार्थनीयम् ईश्वराय निवेदयत।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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