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लूका 7:8 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

8 यस्माद् अहं पराधीनोपि ममाधीना याः सेनाः सन्ति तासाम् एकजनं प्रति याहीति मया प्रोक्ते स याति; तदन्यं प्रति आयाहीति प्रोक्ते स आयाति; तथा निजदासं प्रति एतत् कुर्व्विति प्रोक्ते स तदेव करोति।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

8 যস্মাদ্ অহং পৰাধীনোপি মমাধীনা যাঃ সেনাঃ সন্তি তাসাম্ একজনং প্ৰতি যাহীতি মযা প্ৰোক্তে স যাতি; তদন্যং প্ৰতি আযাহীতি প্ৰোক্তে স আযাতি; তথা নিজদাসং প্ৰতি এতৎ কুৰ্ৱ্ৱিতি প্ৰোক্তে স তদেৱ কৰোতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

8 যস্মাদ্ অহং পরাধীনোপি মমাধীনা যাঃ সেনাঃ সন্তি তাসাম্ একজনং প্রতি যাহীতি মযা প্রোক্তে স যাতি; তদন্যং প্রতি আযাহীতি প্রোক্তে স আযাতি; তথা নিজদাসং প্রতি এতৎ কুর্ৱ্ৱিতি প্রোক্তে স তদেৱ করোতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

8 ယသ္မာဒ် အဟံ ပရာဓီနောပိ မမာဓီနာ ယား သေနား သန္တိ တာသာမ် ဧကဇနံ ပြတိ ယာဟီတိ မယာ ပြောက္တေ သ ယာတိ; တဒနျံ ပြတိ အာယာဟီတိ ပြောက္တေ သ အာယာတိ; တထာ နိဇဒါသံ ပြတိ ဧတတ် ကုရွွိတိ ပြောက္တေ သ တဒေဝ ကရောတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

8 yasmAd ahaM parAdhInOpi mamAdhInA yAH sEnAH santi tAsAm EkajanaM prati yAhIti mayA prOktE sa yAti; tadanyaM prati AyAhIti prOktE sa AyAti; tathA nijadAsaM prati Etat kurvviti prOktE sa tadEva karOti|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

8 યસ્માદ્ અહં પરાધીનોપિ મમાધીના યાઃ સેનાઃ સન્તિ તાસામ્ એકજનં પ્રતિ યાહીતિ મયા પ્રોક્તે સ યાતિ; તદન્યં પ્રતિ આયાહીતિ પ્રોક્તે સ આયાતિ; તથા નિજદાસં પ્રતિ એતત્ કુર્વ્વિતિ પ્રોક્તે સ તદેવ કરોતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




लूका 7:8
12 अन्तरसन्दर्भाः  

किञ्चाहं भवत्समीपं यातुमपि नात्मानं योग्यं बुद्धवान्, ततो भवान् वाक्यमात्रं वदतु तेनैव मम दासः स्वस्थो भविष्यति।


यीशुरिदं वाक्यं श्रुत्वा विस्मयं ययौ, मुखं परावर्त्य पश्चाद्वर्त्तिनो लोकान् बभाषे च, युष्मानहं वदामि इस्रायेलो वंशमध्येपि विश्वासमीदृशं न प्राप्नवं।


तस्मात् पौल एकं शतसेनापतिम् आहूय वाक्यमिदम् भाषितवान् सहस्रसेनापतेः समीपेऽस्य युवमनुष्यस्य किञ्चिन्निवेदनम् आस्ते, तस्मात् तत्सविधम् एनं नय।


अनन्तरं सहस्रसेनापति र्द्वौ शतसेनापती आहूयेदम् आदिशत्, युवां रात्रौ प्रहरैकावशिष्टायां सत्यां कैसरियानगरं यातुं पदातिसैन्यानां द्वे शते घोटकारोहिसैन्यानां सप्ततिं शक्तिधारिसैन्यानां द्वे शते च जनान् सज्जितान् कुरुतं।


महामहिमश्रीयुक्तफीलिक्षाधिपतये क्लौदियलुषियस्य नमस्कारः।


सैन्यगण आज्ञानुसारेण पौलं गृहीत्वा तस्यां रजन्याम् आन्तिपात्रिनगरम् आनयत्।


अनन्तरं बन्धनं विना पौलं रक्षितुं तस्य सेवनाय साक्षात्करणाय वा तदीयात्मीयबन्धुजनान् न वारयितुञ्च शमसेनापतिम् आदिष्टवान्।


किन्तु श्रीयुक्तस्य समीपम् एतस्मिन् किं लेखनीयम् इत्यस्य कस्यचिन् निर्णयस्य न जातत्वाद् एतस्य विचारे सति यथाहं लेखितुं किञ्चन निश्चितं प्राप्नोमि तदर्थं युष्माकं समक्षं विशेषतो हे आग्रिप्पराज भवतः समक्षम् एतम् आनये।


हे दासाः, यूयं सर्व्वविषय ऐहिकप्रभूनाम् आज्ञाग्राहिणो भवत दृष्टिगोचरीयसेवया मानवेभ्यो रोचितुं मा यतध्वं किन्तु सरलान्तःकरणैः प्रभो र्भाीत्या कार्य्यं कुरुध्वं।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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