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लूका 6:48 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

48 यो जनो गभीरं खनित्वा पाषाणस्थले भित्तिं निर्म्माय स्वगृहं रचयति तेन सह तस्योपमा भवति; यत आप्लाविजलमेत्य तस्य मूले वेगेन वहदपि तद्गेहं लाडयितुं न शक्नोति यतस्तस्य भित्तिः पाषाणोपरि तिष्ठति।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

48 যো জনো গভীৰং খনিৎৱা পাষাণস্থলে ভিত্তিং নিৰ্ম্মায স্ৱগৃহং ৰচযতি তেন সহ তস্যোপমা ভৱতি; যত আপ্লাৱিজলমেত্য তস্য মূলে ৱেগেন ৱহদপি তদ্গেহং লাডযিতুং ন শক্নোতি যতস্তস্য ভিত্তিঃ পাষাণোপৰি তিষ্ঠতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

48 যো জনো গভীরং খনিৎৱা পাষাণস্থলে ভিত্তিং নির্ম্মায স্ৱগৃহং রচযতি তেন সহ তস্যোপমা ভৱতি; যত আপ্লাৱিজলমেত্য তস্য মূলে ৱেগেন ৱহদপি তদ্গেহং লাডযিতুং ন শক্নোতি যতস্তস্য ভিত্তিঃ পাষাণোপরি তিষ্ঠতি|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

48 ယော ဇနော ဂဘီရံ ခနိတွာ ပါၐာဏသ္ထလေ ဘိတ္တိံ နိရ္မ္မာယ သွဂၖဟံ ရစယတိ တေန သဟ တသျောပမာ ဘဝတိ; ယတ အာပ္လာဝိဇလမေတျ တသျ မူလေ ဝေဂေန ဝဟဒပိ တဒ္ဂေဟံ လာဍယိတုံ န ၑက္နောတိ ယတသ္တသျ ဘိတ္တိး ပါၐာဏောပရိ တိၐ္ဌတိ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

48 yO janO gabhIraM khanitvA pASANasthalE bhittiM nirmmAya svagRhaM racayati tEna saha tasyOpamA bhavati; yata AplAvijalamEtya tasya mUlE vEgEna vahadapi tadgEhaM lAPayituM na zaknOti yatastasya bhittiH pASANOpari tiSThati|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

48 યો જનો ગભીરં ખનિત્વા પાષાણસ્થલે ભિત્તિં નિર્મ્માય સ્વગૃહં રચયતિ તેન સહ તસ્યોપમા ભવતિ; યત આપ્લાવિજલમેત્ય તસ્ય મૂલે વેગેન વહદપિ તદ્ગેહં લાડયિતું ન શક્નોતિ યતસ્તસ્ય ભિત્તિઃ પાષાણોપરિ તિષ્ઠતિ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

48 yo jano gabhIraM khanitvA pASANasthale bhittiM nirmmAya svagRhaM racayati tena saha tasyopamA bhavati; yata AplAvijalametya tasya mUle vegena vahadapi tadgehaM lADayituM na zaknoti yatastasya bhittiH pASANopari tiSThati|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




लूका 6:48
37 अन्तरसन्दर्भाः  

यः कश्चिन् मम निकटम् आगत्य मम कथा निशम्य तदनुरूपं कर्म्म करोति स कस्य सदृशो भवति तदहं युष्मान् ज्ञाापयामि।


किन्तु यः कश्चिन् मम कथाः श्रुत्वा तदनुरूपं नाचरति स भित्तिं विना मृृदुपरि गृहनिर्म्मात्रा समानो भवति; यत आप्लाविजलमागत्य वेगेन यदा वहति तदा तद्गृहं पतति तस्य महत् पतनं जायते।


यथा मया युष्माकं शान्ति र्जायते तदर्थम् एताः कथा युष्मभ्यम् अचकथं; अस्मिन् जगति युष्माकं क्लेशो घटिष्यते किन्त्वक्षोभा भवत यतो मया जगज्जितं।


बहुदुःखानि भुक्त्वापीश्वरराज्यं प्रवेष्टव्यम् इति कारणाद् धर्म्ममार्गे स्थातुं विनयं कृत्वा शिष्यगणस्य मनःस्थैर्य्यम् अकुरुतां।


अपरं प्रेरिता भविष्यद्वादिनश्च यत्र भित्तिमूलस्वरूपास्तत्र यूयं तस्मिन् मूले निचीयध्वे तत्र च स्वयं यीशुः ख्रीष्टः प्रधानः कोणस्थप्रस्तरः।


तथापीश्वरस्य भित्तिमूलम् अचलं तिष्ठति तस्मिंश्चेयं लिपि र्मुद्राङ्किता विद्यते। यथा, जानाति परमेशस्तु स्वकीयान् सर्व्वमानवान्। अपगच्छेद् अधर्म्माच्च यः कश्चित् ख्रीष्टनामकृत्॥


तस्माद् हे भ्रातरः, यूयं स्वकीयाह्वानवरणयो र्दृढकरणे बहु यतध्वं, तत् कृत्वा कदाच न स्खलिष्यथ।


अतएव हे प्रियबालका यूयं तत्र तिष्ठत, तथा सति स यदा प्रकाशिष्यते तदा वयं प्रतिभान्विता भविष्यामः, तस्यागमनसमये च तस्य साक्षान्न त्रपिष्यामहे।


अपरञ्च युष्मान् स्खलनाद् रक्षितुम् उल्लासेन स्वीयतेजसः साक्षात् निर्द्दोषान् स्थापयितुञ्च समर्थो


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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