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लूका 4:40 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

40 अथ सूर्य्यास्तकाले स्वेषां ये ये जना नानारोगैः पीडिता आसन् लोकास्तान् यीशोः समीपम् आनिन्युः, तदा स एकैकस्य गात्रे करमर्पयित्वा तानरोगान् चकार।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

40 অথ সূৰ্য্যাস্তকালে স্ৱেষাং যে যে জনা নানাৰোগৈঃ পীডিতা আসন্ লোকাস্তান্ যীশোঃ সমীপম্ আনিন্যুঃ, তদা স একৈকস্য গাত্ৰে কৰমৰ্পযিৎৱা তানৰোগান্ চকাৰ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

40 অথ সূর্য্যাস্তকালে স্ৱেষাং যে যে জনা নানারোগৈঃ পীডিতা আসন্ লোকাস্তান্ যীশোঃ সমীপম্ আনিন্যুঃ, তদা স একৈকস্য গাত্রে করমর্পযিৎৱা তানরোগান্ চকার|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

40 အထ သူရျျာသ္တကာလေ သွေၐာံ ယေ ယေ ဇနာ နာနာရောဂဲး ပီဍိတာ အာသန် လောကာသ္တာန် ယီၑေား သမီပမ် အာနိနျုး, တဒါ သ ဧကဲကသျ ဂါတြေ ကရမရ္ပယိတွာ တာနရောဂါန် စကာရ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

40 atha sUryyAstakAlE svESAM yE yE janA nAnArOgaiH pIPitA Asan lOkAstAn yIzOH samIpam AninyuH, tadA sa Ekaikasya gAtrE karamarpayitvA tAnarOgAn cakAra|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

40 અથ સૂર્ય્યાસ્તકાલે સ્વેષાં યે યે જના નાનારોગૈઃ પીડિતા આસન્ લોકાસ્તાન્ યીશોઃ સમીપમ્ આનિન્યુઃ, તદા સ એકૈકસ્ય ગાત્રે કરમર્પયિત્વા તાનરોગાન્ ચકાર|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

40 atha sUryyAstakAle sveSAM ye ye janA nAnArogaiH pIDitA Asan lokAstAn yIzoH samIpam AninyuH, tadA sa ekaikasya gAtre karamarpayitvA tAnarogAn cakAra|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




लूका 4:40
12 अन्तरसन्दर्भाः  

एतानि यद्यद् युवां शृणुथः पश्यथश्च गत्वा तद्वार्त्तां योहनं गदतं।


अनन्तरं यीशुरिति निशभ्य नावा निर्जनस्थानम् एकाकी गतवान्, पश्चात् मानवास्तत् श्रुत्वा नानानगरेभ्य आगत्य पदैस्तत्पश्चाद् ईयुः।


यतोऽनेकमनुष्याणामारोग्यकरणाद् व्याधिग्रस्ताः सर्व्वे तं स्प्रष्टुं परस्परं बलेन यत्नवन्तः।


मम कन्या मृतप्रायाभूद् अतो भवानेत्य तदारोग्याय तस्या गात्रे हस्तम् अर्पयतु तेनैव सा जीविष्यति।


अपरञ्च तेषामप्रत्ययात् स विस्मितः कियतां रोगिणां वपुःषु हस्तम् अर्पयित्वा केवलं तेषामारोग्यकरणाद् अन्यत् किमपि चित्रकार्य्यं कर्त्तां न शक्तः।


यत् परिधेये गात्रमार्जनवस्त्रे वा तस्य देहात् पीडितलोकानाम् समीपम् आनीते ते निरामया जाता अपवित्रा भूताश्च तेभ्यो बहिर्गतवन्तः।


पितरस्य गमनागमनाभ्यां केनापि प्रकारेण तस्य छाया कस्मिंश्चिज्जने लगिष्यतीत्याशया लोका रोगिणः शिविकया खट्वया चानीय पथि पथि स्थापितवन्तः।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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