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लूका 1:53 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

53 क्षुधितान् मानवान् द्रव्यैरुत्तमैः परितर्प्य सः। सकलान् धनिनो लोकान् विसृजेद् रिक्तहस्तकान्।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

53 ক্ষুধিতান্ মানৱান্ দ্ৰৱ্যৈৰুত্তমৈঃ পৰিতৰ্প্য সঃ| সকলান্ ধনিনো লোকান্ ৱিসৃজেদ্ ৰিক্তহস্তকান্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

53 ক্ষুধিতান্ মানৱান্ দ্রৱ্যৈরুত্তমৈঃ পরিতর্প্য সঃ| সকলান্ ধনিনো লোকান্ ৱিসৃজেদ্ রিক্তহস্তকান্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

53 က္ၐုဓိတာန် မာနဝါန် ဒြဝျဲရုတ္တမဲး ပရိတရ္ပျ သး၊ သကလာန် ဓနိနော လောကာန် ဝိသၖဇေဒ် ရိက္တဟသ္တကာန်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

53 kSudhitAn mAnavAn dravyairuttamaiH paritarpya saH| sakalAn dhaninO lOkAn visRjEd riktahastakAn|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

53 ક્ષુધિતાન્ માનવાન્ દ્રવ્યૈરુત્તમૈઃ પરિતર્પ્ય સઃ| સકલાન્ ધનિનો લોકાન્ વિસૃજેદ્ રિક્તહસ્તકાન્|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

53 kSudhitAn mAnavAn dravyairuttamaiH paritarpya saH| sakalAn dhanino lokAn visRjed riktahastakAn|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




लूका 1:53
21 अन्तरसन्दर्भाः  

धर्म्माय बुभुक्षिताः तृषार्त्ताश्च मनुजा धन्याः, यस्मात् ते परितर्प्स्यन्ति।


इब्राहीमि च तद्वंशे या दयास्ति सदैव तां। स्मृत्वा पुरा पितृणां नो यथा साक्षात् प्रतिश्रुतं।


हे अधुना क्षुधितलोका यूयं धन्या यतो यूयं तर्प्स्यथ; हे इह रोदिनो जना यूयं धन्या यतो यूयं हसिष्यथ।


किन्तु हा हा धनवन्तो यूयं सुखं प्राप्नुत। हन्त परितृप्ता यूयं क्षुधिता भविष्यथ;


यीशुरवदद् अहमेव जीवनरूपं भक्ष्यं यो जनो मम सन्निधिम् आगच्छति स जातु क्षुधार्त्तो न भविष्यति, तथा यो जनो मां प्रत्येति स जातु तृषार्त्तो न भविष्यति।


हे भ्रातरः, आहूतयुष्मद्गणो यष्माभिरालोक्यतां तन्मध्ये सांसारिकज्ञानेन ज्ञानवन्तः पराक्रमिणो वा कुलीना वा बहवो न विद्यन्ते।


इदानीमेव यूयं किं तृप्ता लब्धधना वा? अस्मास्वविद्यमानेषु यूयं किं राजत्वपदं प्राप्ताः? युष्माकं राजत्वं मयाभिलषितं यतस्तेन युष्माभिः सह वयमपि राज्यांशिनो भविष्यामः।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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