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कुलुस्सियों 2:14 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

14 यच्च दण्डाज्ञारूपं ऋणपत्रम् अस्माकं विरुद्धम् आसीत् तत् प्रमार्ज्जितवान् शलाकाभिः क्रुशे बद्ध्वा दूरीकृतवांश्च।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

14 যচ্চ দণ্ডাজ্ঞাৰূপং ঋণপত্ৰম্ অস্মাকং ৱিৰুদ্ধম্ আসীৎ তৎ প্ৰমাৰ্জ্জিতৱান্ শলাকাভিঃ ক্ৰুশে বদ্ধ্ৱা দূৰীকৃতৱাংশ্চ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

14 যচ্চ দণ্ডাজ্ঞারূপং ঋণপত্রম্ অস্মাকং ৱিরুদ্ধম্ আসীৎ তৎ প্রমার্জ্জিতৱান্ শলাকাভিঃ ক্রুশে বদ্ধ্ৱা দূরীকৃতৱাংশ্চ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

14 ယစ္စ ဒဏ္ဍာဇ္ဉာရူပံ ၒဏပတြမ် အသ္မာကံ ဝိရုဒ္ဓမ် အာသီတ် တတ် ပြမာရ္ဇ္ဇိတဝါန် ၑလာကာဘိး ကြုၑေ ဗဒ္ဓွာ ဒူရီကၖတဝါံၑ္စ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

14 yacca daNPAjnjArUpaM RNapatram asmAkaM viruddham AsIt tat pramArjjitavAn zalAkAbhiH kruzE baddhvA dUrIkRtavAMzca|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

14 યચ્ચ દણ્ડાજ્ઞારૂપં ઋણપત્રમ્ અસ્માકં વિરુદ્ધમ્ આસીત્ તત્ પ્રમાર્જ્જિતવાન્ શલાકાભિઃ ક્રુશે બદ્ધ્વા દૂરીકૃતવાંશ્ચ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

14 yacca daNDAjJArUpaM RNapatram asmAkaM viruddham AsIt tat pramArjjitavAn zalAkAbhiH kruze baddhvA dUrIkRtavAMzca|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




कुलुस्सियों 2:14
21 अन्तरसन्दर्भाः  

तस्य जाया द्वाविमौ निर्दोषौ प्रभोः सर्व्वाज्ञा व्यवस्थाश्च संमन्य ईश्वरदृष्टौ धार्म्मिकावास्ताम्।


अतः स्वेषां पापमोचनार्थं खेदं कृत्वा मनांसि परिवर्त्तयध्वं, तस्माद् ईश्वरात् सान्त्वनाप्राप्तेः समय उपस्थास्यति;


यदि यूयं ख्रीष्टेन सार्द्धं संसारस्य वर्णमालायै मृता अभवत तर्हि यैै र्द्रव्यै र्भोगेन क्षयं गन्तव्यं


विधर्म्मस्य निगूढो गुण इदानीमपि फलति किन्तु यस्तं निवारयति सोऽद्यापि दूरीकृतो नाभवत्।


अनेनाग्रवर्त्तिनो विधे दुर्ब्बलताया निष्फलतायाश्च हेतोरर्थतो व्यवस्थया किमपि सिद्धं न जातमितिहेतोस्तस्य लोपो भवति।


अनेन तं नियमं नूतनं गदित्वा स प्रथमं नियमं पुरातनीकृतवान्; यच्च पुरातनं जीर्णाञ्च जातं तस्य लोपो निकटो ऽभवत्।


वयं यत् पापेभ्यो निवृत्य धर्म्मार्थं जीवामस्तदर्थं स स्वशरीरेणास्माकं पापानि क्रुश ऊढवान् तस्य प्रहारै र्यूयं स्वस्था अभवत।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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