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प्रेरिता 18:2 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

2 तस्मिन् समये क्लौदियः सर्व्वान् यिहूदीयान् रोमानगरं विहाय गन्तुम् आज्ञापयत्, तस्मात् प्रिस्किल्लानाम्ना जायया सार्द्धम् इतालियादेशात् किञ्चित्पूर्व्वम् आगमत् यः पन्तदेशे जात आक्किलनामा यिहूदीयलोकः पौलस्तं साक्षात् प्राप्य तयोः समीपमितवान्।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

2 তস্মিন্ সমযে ক্লৌদিযঃ সৰ্ৱ্ৱান্ যিহূদীযান্ ৰোমানগৰং ৱিহায গন্তুম্ আজ্ঞাপযৎ, তস্মাৎ প্ৰিস্কিল্লানাম্না জাযযা সাৰ্দ্ধম্ ইতালিযাদেশাৎ কিঞ্চিৎপূৰ্ৱ্ৱম্ আগমৎ যঃ পন্তদেশে জাত আক্কিলনামা যিহূদীযলোকঃ পৌলস্তং সাক্ষাৎ প্ৰাপ্য তযোঃ সমীপমিতৱান্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

2 তস্মিন্ সমযে ক্লৌদিযঃ সর্ৱ্ৱান্ যিহূদীযান্ রোমানগরং ৱিহায গন্তুম্ আজ্ঞাপযৎ, তস্মাৎ প্রিস্কিল্লানাম্না জাযযা সার্দ্ধম্ ইতালিযাদেশাৎ কিঞ্চিৎপূর্ৱ্ৱম্ আগমৎ যঃ পন্তদেশে জাত আক্কিলনামা যিহূদীযলোকঃ পৌলস্তং সাক্ষাৎ প্রাপ্য তযোঃ সমীপমিতৱান্|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

2 တသ္မိန် သမယေ က္လော်ဒိယး သရွွာန် ယိဟူဒီယာန် ရောမာနဂရံ ဝိဟာယ ဂန္တုမ် အာဇ္ဉာပယတ်, တသ္မာတ် ပြိသ္ကိလ္လာနာမ္နာ ဇာယယာ သာရ္ဒ္ဓမ် ဣတာလိယာဒေၑာတ် ကိဉ္စိတ္ပူရွွမ် အာဂမတ် ယး ပန္တဒေၑေ ဇာတ အာက္ကိလနာမာ ယိဟူဒီယလောကး ပေါ်လသ္တံ သာက္ၐာတ် ပြာပျ တယေား သမီပမိတဝါန်၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

2 tasmin samayE klaudiyaH sarvvAn yihUdIyAn rOmAnagaraM vihAya gantum AjnjApayat, tasmAt priskillAnAmnA jAyayA sArddham itAliyAdEzAt kinjcitpUrvvam Agamat yaH pantadEzE jAta AkkilanAmA yihUdIyalOkaH paulastaM sAkSAt prApya tayOH samIpamitavAn|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

2 તસ્મિન્ સમયે ક્લૌદિયઃ સર્વ્વાન્ યિહૂદીયાન્ રોમાનગરં વિહાય ગન્તુમ્ આજ્ઞાપયત્, તસ્માત્ પ્રિસ્કિલ્લાનામ્ના જાયયા સાર્દ્ધમ્ ઇતાલિયાદેશાત્ કિઞ્ચિત્પૂર્વ્વમ્ આગમત્ યઃ પન્તદેશે જાત આક્કિલનામા યિહૂદીયલોકઃ પૌલસ્તં સાક્ષાત્ પ્રાપ્ય તયોઃ સમીપમિતવાન્|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




प्रेरिता 18:2
11 अन्तरसन्दर्भाः  

आगाबनामा तेषामेक उत्थाय आत्मनः शिक्षया सर्व्वदेशे दुर्भिक्षं भविष्यतीति ज्ञापितवान्; ततः क्लौदियकैसरस्याधिकारे सति तत् प्रत्यक्षम् अभवत्।


पौलस्तत्र पुनर्बहुदिनानि न्यवसत्, ततो भ्रातृगणाद् विसर्जनं प्राप्य किञ्चनव्रतनिमित्तं किंक्रियानगरे शिरो मुण्डयित्वा प्रिस्किल्लाक्किलाभ्यां सहितो जलपथेन सुरियादेशं गतवान्।


एष जनो निर्भयत्वेन भजनभवने कथयितुम् आरब्धवान्, ततः प्रिस्किल्लाक्किलौ तस्योपदेशकथां निशम्य तं स्वयोः समीपम् आनीय शुद्धरूपेणेश्वरस्य कथाम् अबोधयताम्।


पार्थी-मादी-अराम्नहरयिम्देशनिवासिमनो यिहूदा-कप्पदकिया-पन्त-आशिया-


जलपथेनास्माकम् इतोलियादेशं प्रति यात्रायां निश्चितायां सत्यां ते यूलियनाम्नो महाराजस्य संघातान्तर्गतस्य सेनापतेः समीपे पौलं तदन्यान् कतिनयजनांश्च समार्पयन्।


तत्स्थानाद् इतालियादेशं गच्छति यः सिकन्दरियानगरस्य पोतस्तं तत्र प्राप्य शतसेनापतिस्तं पोतम् अस्मान् आरोहयत्।


युष्मभ्यम् आशियादेशस्थसमाजानां नमस्कृतिम् आक्किलप्रिस्किल्लयोस्तन्मण्डपस्थसमितेश्च बहुनमस्कृतिं प्रजानीत।


त्वं प्रिष्काम् आक्किलम् अनीषिफरस्य परिजनांश्च नमस्कुरु।


युष्माकं सर्व्वान् नायकान् पवित्रलोकांश्च नमस्कुरुत। अपरम् इतालियादेशीयानां नमस्कारं ज्ञास्यथ।


पन्त-गालातिया-कप्पदकिया-आशिया-बिथुनियादेशेषु प्रवासिनो ये विकीर्णलोकाः


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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