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प्रेरिता 1:20 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

20 अन्यच्च, निकेतनं तदीयन्तु शुन्यमेव भविष्यति। तस्य दूष्ये निवासार्थं कोपि स्थास्यति नैव हि। अन्य एव जनस्तस्य पदं संप्राप्स्यति ध्रुवं। इत्थं गीतपुस्तके लिखितमास्ते।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

20 অন্যচ্চ, নিকেতনং তদীযন্তু শুন্যমেৱ ভৱিষ্যতি| তস্য দূষ্যে নিৱাসাৰ্থং কোপি স্থাস্যতি নৈৱ হি| অন্য এৱ জনস্তস্য পদং সংপ্ৰাপ্স্যতি ধ্ৰুৱং| ইত্থং গীতপুস্তকে লিখিতমাস্তে|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

20 অন্যচ্চ, নিকেতনং তদীযন্তু শুন্যমেৱ ভৱিষ্যতি| তস্য দূষ্যে নিৱাসার্থং কোপি স্থাস্যতি নৈৱ হি| অন্য এৱ জনস্তস্য পদং সংপ্রাপ্স্যতি ধ্রুৱং| ইত্থং গীতপুস্তকে লিখিতমাস্তে|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

20 အနျစ္စ, နိကေတနံ တဒီယန္တု ၑုနျမေဝ ဘဝိၐျတိ၊ တသျ ဒူၐျေ နိဝါသာရ္ထံ ကောပိ သ္ထာသျတိ နဲဝ ဟိ၊ အနျ ဧဝ ဇနသ္တသျ ပဒံ သံပြာပ္သျတိ ဓြုဝံ၊ ဣတ္ထံ ဂီတပုသ္တကေ လိခိတမာသ္တေ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

20 anyacca, nikEtanaM tadIyantu zunyamEva bhaviSyati| tasya dUSyE nivAsArthaM kOpi sthAsyati naiva hi| anya Eva janastasya padaM saMprApsyati dhruvaM| itthaM gItapustakE likhitamAstE|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

20 અન્યચ્ચ, નિકેતનં તદીયન્તુ શુન્યમેવ ભવિષ્યતિ| તસ્ય દૂષ્યે નિવાસાર્થં કોપિ સ્થાસ્યતિ નૈવ હિ| અન્ય એવ જનસ્તસ્ય પદં સંપ્રાપ્સ્યતિ ધ્રુવં| ઇત્થં ગીતપુસ્તકે લિખિતમાસ્તે|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




प्रेरिता 1:20
9 अन्तरसन्दर्भाः  

यतः मम प्रभुमिदं वाक्यमवदत् परमेश्वरः। तव शत्रूनहं यावत् पादपीठं करोमि न। तावत् कालं मदीये त्वं दक्षपार्श्व उपाविश।


कथयामास च मूसाव्यवस्थायां भविष्यद्वादिनां ग्रन्थेषु गीतपुस्तके च मयि यानि सर्व्वाणि वचनानि लिखितानि तदनुरूपाणि घटिष्यन्ते युष्माभिः सार्द्धं स्थित्वाहं यदेतद्वाक्यम् अवदं तदिदानीं प्रत्यक्षमभूत्।


हे भ्रातृगण यीशुधारिणां लोकानां पथदर्शको यो यिहूदास्तस्मिन् दायूदा पवित्र आत्मा यां कथां कथयामास तस्याः प्रत्यक्षीभवनस्यावश्यकत्वम् आसीत्।


सन् निजस्थानम् अगच्छत्, तत्पदं लब्धुम् एनयो र्जनयो र्मध्ये भवता कोऽभिरुचितस्तदस्मान् दर्श्यतां।


इदं यद्वचनं द्वितीयगीते लिखितमास्ते तद् यीशोरुत्थानेन तेषां सन्ताना ये वयम् अस्माकं सन्निधौ तेन प्रत्यक्षी कृतं, युष्मान् इमं सुसंवादं ज्ञापयामि।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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