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3 योहन 1:12 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

12 दीमीत्रियस्य पक्षे सर्व्वैः साक्ष्यम् अदायि विशेषतः सत्यमतेनापि, वयमपि तत्पक्षे साक्ष्यं दद्मः, अस्माकञ्च साक्ष्यं सत्यमेवेति यूयं जानीथ।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

12 দীমীত্ৰিযস্য পক্ষে সৰ্ৱ্ৱৈঃ সাক্ষ্যম্ অদাযি ৱিশেষতঃ সত্যমতেনাপি, ৱযমপি তৎপক্ষে সাক্ষ্যং দদ্মঃ, অস্মাকঞ্চ সাক্ষ্যং সত্যমেৱেতি যূযং জানীথ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

12 দীমীত্রিযস্য পক্ষে সর্ৱ্ৱৈঃ সাক্ষ্যম্ অদাযি ৱিশেষতঃ সত্যমতেনাপি, ৱযমপি তৎপক্ষে সাক্ষ্যং দদ্মঃ, অস্মাকঞ্চ সাক্ষ্যং সত্যমেৱেতি যূযং জানীথ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

12 ဒီမီတြိယသျ ပက္ၐေ သရွွဲး သာက္ၐျမ် အဒါယိ ဝိၑေၐတး သတျမတေနာပိ, ဝယမပိ တတ္ပက္ၐေ သာက္ၐျံ ဒဒ္မး, အသ္မာကဉ္စ သာက္ၐျံ သတျမေဝေတိ ယူယံ ဇာနီထ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

12 dImItriyasya pakSE sarvvaiH sAkSyam adAyi vizESataH satyamatEnApi, vayamapi tatpakSE sAkSyaM dadmaH, asmAkanjca sAkSyaM satyamEvEti yUyaM jAnItha|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

12 દીમીત્રિયસ્ય પક્ષે સર્વ્વૈઃ સાક્ષ્યમ્ અદાયિ વિશેષતઃ સત્યમતેનાપિ, વયમપિ તત્પક્ષે સાક્ષ્યં દદ્મઃ, અસ્માકઞ્ચ સાક્ષ્યં સત્યમેવેતિ યૂયં જાનીથ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

12 dImItriyasya pakSe sarvvaiH sAkSyam adAyi vizeSataH satyamatenApi, vayamapi tatpakSe sAkSyaM dadmaH, asmAkaJca sAkSyaM satyameveti yUyaM jAnItha|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




3 योहन 1:12
8 अन्तरसन्दर्भाः  

यो जनोऽस्य साक्ष्यं ददाति स स्वयं दृष्टवान् तस्येदं साक्ष्यं सत्यं तस्य कथा युष्माकं विश्वासं जनयितुं योग्या तत् स जानाति।


यो जन एतानि सर्व्वाणि लिखितवान् अत्र साक्ष्यञ्च दत्तवान् सएव स शिष्यः, तस्य साक्ष्यं प्रमाणमिति वयं जानीमः।


ततस्ते प्रत्यवदन् कर्णीलियनामा शुद्धसत्त्व ईश्वरपरायणो यिहूदीयदेशस्थानां सर्व्वेषां सन्निधौ सुख्यात्यापन्न एकः सेनापति र्निजगृहं त्वामाहूय नेतुं त्वत्तः कथा श्रोतुञ्च पवित्रदूतेन समादिष्टः।


तन्नगरनिवासिनां सर्व्वेषां यिहूदीयानां मान्यो व्यवस्थानुसारेण भक्तश्च हनानीयनामा मानव एको


अतो हे भ्रातृगण वयम् एतत्कर्म्मणो भारं येभ्यो दातुं शक्नुम एतादृशान् सुख्यात्यापन्नान् पवित्रेणात्मना ज्ञानेन च पूर्णान् सप्प्रजनान् यूयं स्वेषां मध्ये मनोनीतान् कुरुत,


एतदर्थं यूयम् अस्मत्तो यादृशम् आदेशं प्राप्तवन्तस्तादृशं निर्विरोधाचारं कर्त्तुं स्वस्वकर्म्मणि मनांमि निधातुं निजकरैश्च कार्य्यं साधयितुं यतध्वं।


यच्च निन्दायां शयतानस्य जाले च न पतेत् तदर्थं तेन बहिःस्थलोकानामपि मध्ये सुख्यातियुक्तेन भवितव्यं।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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