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2 तीमुथियु 3:7 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

7 नित्यं शिक्षन्ते किन्तु सत्यमतस्य तत्त्वज्ञानं प्राप्तुं कदाचित् न शक्नुवन्ति ता दासीवद् वशीकुर्व्वते च ते तादृशा लोकाः।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

7 নিত্যং শিক্ষন্তে কিন্তু সত্যমতস্য তত্ত্ৱজ্ঞানং প্ৰাপ্তুং কদাচিৎ ন শক্নুৱন্তি তা দাসীৱদ্ ৱশীকুৰ্ৱ্ৱতে চ তে তাদৃশা লোকাঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

7 নিত্যং শিক্ষন্তে কিন্তু সত্যমতস্য তত্ত্ৱজ্ঞানং প্রাপ্তুং কদাচিৎ ন শক্নুৱন্তি তা দাসীৱদ্ ৱশীকুর্ৱ্ৱতে চ তে তাদৃশা লোকাঃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

7 နိတျံ ၑိက္ၐန္တေ ကိန္တု သတျမတသျ တတ္တွဇ္ဉာနံ ပြာပ္တုံ ကဒါစိတ် န ၑက္နုဝန္တိ တာ ဒါသီဝဒ် ဝၑီကုရွွတေ စ တေ တာဒၖၑာ လောကား၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

7 nityaM zikSantE kintu satyamatasya tattvajnjAnaM prAptuM kadAcit na zaknuvanti tA dAsIvad vazIkurvvatE ca tE tAdRzA lOkAH|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

7 નિત્યં શિક્ષન્તે કિન્તુ સત્યમતસ્ય તત્ત્વજ્ઞાનં પ્રાપ્તું કદાચિત્ ન શક્નુવન્તિ તા દાસીવદ્ વશીકુર્વ્વતે ચ તે તાદૃશા લોકાઃ|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

7 nityaM zikSante kintu satyamatasya tattvajJAnaM prAptuM kadAcit na zaknuvanti tA dAsIvad vazIkurvvate ca te tAdRzA lokAH|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




2 तीमुथियु 3:7
14 अन्तरसन्दर्भाः  

ततः स प्रत्यवदत्, स्वर्गराज्यस्य निगूढां कथां वेदितुं युष्मभ्यं सामर्थ्यमदायि, किन्तु तेभ्यो नादायि।


यूयम् ईश्वरात् सत्कारं न चिष्टत्वा केवलं परस्परं सत्कारम् चेद् आदध्व्वे तर्हि कथं विश्वसितुं शक्नुथ?


अतएव मानुषाणां चातुरीतो भ्रमकधूर्त्ततायाश्छलाच्च जातेन सर्व्वेण शिक्षावायुना वयं यद् बालका इव दोलायमाना न भ्राम्याम इत्यस्माभि र्यतितव्यं,


स सर्व्वेषां मानवानां परित्राणं सत्यज्ञानप्राप्तिञ्चेच्छति।


तथा कृते यदीश्वरः सत्यमतस्य ज्ञानार्थं तेभ्यो मनःपरिवर्त्तनरूपं वरं दद्यात्,


तमध्यस्माकं बहुकथाः कथयितव्याः किन्तु ताः स्तब्धकर्णै र्युष्माभि र्दुर्गम्याः।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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