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2 कुरिन्थियों 4:16 - सत्यवेदः। Sanskrit NT in Devanagari

16 ततो हेतो र्वयं न क्लाम्यामः किन्तु बाह्यपुरुषो यद्यपि क्षीयते तथाप्यान्तरिकः पुरुषो दिने दिने नूतनायते।

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि


अधिकानि संस्करणानि

সত্যৱেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Assamese Script

16 ততো হেতো ৰ্ৱযং ন ক্লাম্যামঃ কিন্তু বাহ্যপুৰুষো যদ্যপি ক্ষীযতে তথাপ্যান্তৰিকঃ পুৰুষো দিনে দিনে নূতনাযতে|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

সত্যবেদঃ। Sanskrit Bible (NT) in Bengali Script

16 ততো হেতো র্ৱযং ন ক্লাম্যামঃ কিন্তু বাহ্যপুরুষো যদ্যপি ক্ষীযতে তথাপ্যান্তরিকঃ পুরুষো দিনে দিনে নূতনাযতে|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

သတျဝေဒး၊ Sanskrit Bible (NT) in Burmese Script

16 တတော ဟေတော ရွယံ န က္လာမျာမး ကိန္တု ဗာဟျပုရုၐော ယဒျပိ က္ၐီယတေ တထာပျာန္တရိကး ပုရုၐော ဒိနေ ဒိနေ နူတနာယတေ၊

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavEdaH| Sanskrit Bible (NT) in Cologne Script

16 tatO hEtO rvayaM na klAmyAmaH kintu bAhyapuruSO yadyapi kSIyatE tathApyAntarikaH puruSO dinE dinE nUtanAyatE|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

સત્યવેદઃ। Sanskrit Bible (NT) in Gujarati Script

16 તતો હેતો ર્વયં ન ક્લામ્યામઃ કિન્તુ બાહ્યપુરુષો યદ્યપિ ક્ષીયતે તથાપ્યાન્તરિકઃ પુરુષો દિને દિને નૂતનાયતે|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि

satyavedaH| Sanskrit Bible (NT) in Harvard-Kyoto Script

16 tato heto rvayaM na klAmyAmaH kintu bAhyapuruSo yadyapi kSIyate tathApyAntarikaH puruSo dine dine nUtanAyate|

अध्यायं द्रष्टव्यम् प्रतिलिपि




2 कुरिन्थियों 4:16
22 अन्तरसन्दर्भाः  

प्रत्यहम् अस्माकं प्रयोजनीयं भोज्यं देहि।


अपरं यूयं सांसारिका इव माचरत, किन्तु स्वं स्वं स्वभावं परावर्त्य नूतनाचारिणो भवत, तत ईश्वरस्य निदेशः कीदृग् उत्तमो ग्रहणीयः सम्पूर्णश्चेति युष्माभिरनुभाविष्यते।


अहम् आन्तरिकपुरुषेणेश्वरव्यवस्थायां सन्तुष्ट आसे;


अतो हे मम प्रियभ्रातरः; यूयं सुस्थिरा निश्चलाश्च भवत प्रभोः सेवायां युष्माकं परिश्रमो निष्फलो न भविष्यतीति ज्ञात्वा प्रभोः कार्य्ये सदा तत्परा भवत।


अपरञ्च युष्मासु बहु प्रीयमाणोऽप्यहं यदि युष्मत्तोऽल्पं प्रम लभे तथापि युष्माकं प्राणरक्षार्थं सानन्दं बहु व्ययं सर्व्वव्ययञ्च करिष्यामि।


अपरञ्च वयं करुणाभाजो भूत्वा यद् एतत् परिचारकपदम् अलभामहि नात्र क्लाम्यामः,


तस्यात्मना युष्माकम् आन्तरिकपुरुषस्य शक्ते र्वृद्धिः क्रियतां।


यो नवपुरुष ईश्वरानुरूपेण पुण्येन सत्यतासहितेन


स्वस्रष्टुः प्रतिमूर्त्या तत्त्वज्ञानाय नूतनीकृतं नवीनपुरुषं परिहितवन्तश्च।


वयम् आत्मकृतेभ्यो धर्म्मकर्म्मभ्यस्तन्नहि किन्तु तस्य कृपातः पुनर्जन्मरूपेण प्रक्षालनेन प्रवित्रस्यात्मनो नूतनीकरणेन च तस्मात् परित्राणां प्राप्ताः


किन्त्वीश्वरस्य साक्षाद् बहुमूल्यक्षमाशान्तिभावाक्षयरत्नेन युक्तो गुप्त आन्तरिकमानव एव।


यदि ख्रीष्टस्य नामहेतुना युष्माकं निन्दा भवति तर्हि यूयं धन्या यतो गौरवदायक ईश्वरस्यात्मा युष्मास्वधितिष्ठति तेषां मध्ये स निन्द्यते किन्तु युष्मन्मध्ये प्रशंस्यते।


अस्मान् अनुसरणं कुर्वन्तु : १.

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