प्रभु ने कहा, ‘यदि तुम अपने प्रभु परमेश्वर की वाणी ध्यानपूर्वक सुनोगे, जो कार्य मेरी दृष्टि में उचित है, उसे करोगे, मेरी आज्ञाओं पर कान दोगे और मेरी समस्त संविधियों का पालन करोगे, तो मैं तुम पर महामारियाँ नहीं डालूँगा, जो मैंने मिस्र-निवासियों पर डाली थीं, क्योंकि मैं प्रभु हूं−तुम्हें स्वस्थ करने वाला।’
पर तुम मेरे नाम के प्रति श्रद्धा-भक्ति रखते हो, इसलिए तुम पर धार्मिकता का सूर्य उदय होगा, उसके पंखों में रोग-निवारण की किरणें होंगी, जिनके स्पर्श से तुम स्वस्थ होगे। जैसे पशुशाला से छूटकर बछड़ा आनन्द से कूदता-फांदता है, वैसे ही तुम मुक्त होकर आनन्द से विचरण करोगे।
गाँव, नगर या बस्ती, जहाँ कहीं भी येशु आते, वहाँ लोग रोगियों को सार्वजनिक स्थानों पर रख कर उनसे अनुनय-विनय करते थे कि वह उन्हें अपने वस्त्र का सिरा ही छूने दें। जितनों ने उनका स्पर्श किया, वे सब-के-सब स्वस्थ्य हो गये।
और रोती हुई येशु के पीछे उन के चरणों के पास खड़ी हो गयी। वह अपने आँसुओं से येशु के चरण धोने, और अपने केशों से उन्हें पोंछने लगी। वह बार-बार उनके चरणों को चूमती और उन पर इत्र लगा रही थी।
यहां तक कि, जब उनके शरीर से स्पर्श किये हुए रूमाल और अँगोछे रोगियों पर डाल दिये जाते थे, तो उनकी बीमारियाँ दूर हो जाती थीं और दुष्ट आत्माएं निकल जाती थीं।
सच तो यह है कि लोग रोगियों को मुख्य सड़कों पर ले जा कर खटोलों तथा चारपाइयों पर लिटा देते थे, ताकि जब पतरस उधर से गुजरें, तो उनकी छाया ही उन में से किसी पर पड़ जाये।