20 ठीक है. किंतु उन्हें तो उनके अविश्वास के कारण अलग किया गया किंतु तुम स्थिर हो अपने विश्वास के कारण. इसके विषय में घमंड न भरते हुए श्रद्धा भाव को स्थान दो.
दूसरे दिन सबेरे यहोशाफट के सैनिक उठे, और वे तकोअ के निर्जन प्रदेश की ओर गए। वे प्रस्थान कर ही रहे थे कि यहोशाफट उनके मध्य में खड़ा हुआ, और उसने उनसे कहा, ‘ओ यहूदा प्रदेश के निवासियो, ओ यरूशलेम के रहने वालो, मेरी बात सुनो: अपने प्रभु परमेश्वर पर विश्वास करो, तब तुम दृढ़ रह सकोगे; प्रभु के नबियों पर भरोसा रखो, तब तुम सफल होगे।’
प्रभु कहता है : ‘इन सबको स्वयं मेरे हाथों ने बनाया है, अत: ये सब वस्तुएँ मेरी ही हैं। पर मैं उस मनुष्य पर ध्यान दूंगा, जो विनम्र है जो आत्मा में पीड़ित है जो मेरे वचन में श्रद्धा रखता है।
एफ्रइम राज्य की राजधानी सामरी नगर है, और सामरी नगर का राजा बेन-रमल्याह है। मुझ-प्रभु पर दृढ़ विश्वास करो, अन्यथा तुम लोग उसके सामने दृढ़ नहीं रह सकोगे।’ ”
‘यद्यपि तूने अपने कार्यों से मेरे प्रति विद्रोह किया, तथापि तुझे उस दिन लज्जित नहीं होना पड़ेगा; क्योंकि मैं तेरे मध्य से अहंकारियों को, शेखी मारनेवालों को दूर कर दूंगा। उसके बाद तू मेरे पवित्र पर्वत पर अपना अहंकार नहीं दिखाएगी।
येशु ने कहा, “मैं तुम से कहता हूँ, वह पहला नहीं, बल्कि यह मनुष्य पापमुक्त हो कर अपने घर गया। क्योंकि जो कोई अपने आपको ऊंचा करता है, वह नीचा किया जाएगा; परन्तु जो अपने आप को नीचा करता है, वह ऊंचा किया जाएगा।”
किन्तु जब वे लोग पौलुस का विरोध करने और निन्दा करने लगे, तो उन्होंने अपने वस्त्र की धूल झाड़ कर उनसे यह कहा, “तुम्हारा रक्त तुम्हारे सिर पड़े! मेरा अन्त:करण शुद्ध है। मैं अब से गैर-यहूदियों के पास जाऊंगा।”
उस कृपा के अधिकार से, जो मुझे प्राप्त हुई है, मैं आप लोगों में हर एक से यह कहता हूँ: अपने को औचित्य से अधिक महत्व मत दीजिए। परमेश्वर द्वारा प्रदत्त विश्वास की मात्रा के अनुरूप हर एक को अपने विषय में सन्तुलित विचार रखना चाहिए।
भाइयो और बहिनो! मैं आप लोगों को उस शुभ-समाचार का स्मरण दिलाना चाहता हूँ, जिसका प्रचार मैंने आपके बीच किया, जिसे आपने ग्रहण किया और जिस में आप दृढ़ बने हुए हैं।
आपके विश्वास पर मनमाना अधिकार जताना हमारा उद्देश्य नहीं है। हम आप लोगों की सुख-शान्ति के लिए आपके सहयोगी हैं और आप लोग तो यों भी विश्वास में दृढ़ हैं।
मेरे प्रिय भाइयो और बहिनो! जिस प्रकार आप लोग सदा मेरी बात मानते रहे हैं, उसी प्रकार अब भी-मेरी उपस्थिति से अधिक मेरी अनुपस्थिति में और भी अधिक उत्साह से आप लोग डरते-काँपते हुए अपनी मुक्ति के कार्य में लगे रहें।
उन्हीं में आपकी जड़ें गहरी हों और उन्हीं में अपना आध्यात्मिक निर्माण करें। आप को जिस विश्वास की शिक्षा प्राप्त हुई है, उसी में दृढ़ बने रहें और आपके हृदय में धन्यवाद की प्रार्थना उमड़ती रहे।
वह अपने घमण्ड में उन सब का विरोध करता और उन से अपने को बड़ा मानता है, जो देवता कहलाते या पूज्य समझे जाते हैं, यहाँ तक कि वह परमेश्वर के मन्दिर में विराजमान हो कर स्वयं ईश्वर होने का दावा करता है।
इस वर्तमान संसार के धनवानों से अनुरोध करो कि वे घमण्ड न करें और नश्वर धन-सम्पत्ति पर नहीं, बल्कि परमेश्वर पर भरोसा रखें, जो हमारे उपभोग की सब वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में देता है।
वह प्रचुर मात्रा में अनुग्रह भी देता है, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है, “परमेश्वर घमण्डियों का विरोध करता, किन्तु विनीतों को अनुग्रह प्रदान करता है।”
यदि आप उसे “पिता” कह कर पुकारते हैं, जो पक्षपात किये बिना प्रत्येक मनुष्य का उसके कर्मों के अनुसार न्याय करता है, तो जब तक आप यहाँ परदेश में रहते हैं, तब तक उस पर श्रद्धा रखते हुए जीवन बितायें।
मैंने आप लोगों को यह संिक्षप्त पत्र सिलवानुस से लिखवाया है, जिन को मैं अपना विश्वसनीय भाई मानता हूँ। मैं आप को समझाता हूं, और विश्वास दिलाता हूँ कि इस में जो लिखा हुआ है, वह परमेश्वर का सच्चा अनुग्रह है। उस अनुग्रह में सुदृढ़ बने रहें।
उसने जितनी डींग मारी और जितना भोगविलास किया है, उसे उतनी यन्त्रणा और उतना शोक दो। वह अपने मन में यह कहती है, ‘मैं रानी की तरह सिंहासन पर विराजमान हूँ। मैं विधवा नहीं हूँ और कभी शोक नहीं मनाऊंगी।’
तुम यह कहते हो, ‘मैं धनी हूँ, मैं समृद्ध हो गया, मुझे किसी बात की कमी नहीं’, और तुम यह नहीं समझते कि तुम अभागे हो, दयनीय हो, दरिद्र, अन्धे और नंगे हो।