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रोमियों 1:15 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

15 इसलिए मैं आप रोम निवासियों को भी शुभ समाचार सुनाने के लिए उत्‍सुक हूँ।

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पवित्र बाइबल

15 इसीलिये मैं तुम रोमवासियों को भी सुसमाचार का उपदेश देने को तैयार हूँ।

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Hindi Holy Bible

15 सो मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूं।

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

15 अत: मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूँ।

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नवीन हिंदी बाइबल

15 अतः जहाँ तक मेरा संबंध है, मैं तो तुम्हें भी जो रोम में हो, सुसमाचार सुनाने के लिए तैयार हूँ।

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सरल हिन्दी बाइबल

15 इसलिये मैं तुम्हारे बीच भी—तुम, जो रोम नगर में हो—ईश्वरीय सुसमाचार सुनाने के लिए उत्सुक हूं.

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रोमियों 1:15
12 क्रॉस रेफरेंस  

परन्‍तु प्रभु ने मेरे पिता दाऊद से यह कहा, “तूने मेरे नाम की महिमा के लिए भवन बनाने की हार्दिक इच्‍छा की। तेरे हृदय की यह इच्‍छा उत्तम है।


तत्‍पश्‍चात् मैंने स्‍वामी की यह वाणी सुनी, ‘मैं किस को भेजूं? हमारी ओर से कौन जाएगा?’ मैंने कहा, ‘मैं प्रस्‍तुत हूं, मुझे भेज।’


इसलिए फसल के स्‍वामी से विनती करो कि वह अपनी फसल काटने के लिए मजदूरों को भेजे।”


यह जो कुछ कर सकती थी, इसने कर दिया। इसने मेरे गाड़े जाने की तैयारी में पहले ही से मेरे शरीर पर इत्र लगाया।


इस पर येशु ने उन से कहा, “जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्‍छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है।


इस पर पौलुस ने कहा, “आप लोग यह क्‍या कह रहे हैं? आप रो-रो कर मेरा हृदय क्‍यों दु:खी कर रहे हैं? मैं प्रभु येशु के नाम के कारण यरूशलेम में न केवल बँधने, बल्‍कि मरने को भी तैयार हूँ।”


और यदि वह भेजा नहीं जाये, तो कोई प्रचारक कैसे बन सकता है? धर्मग्रन्‍थ में लिखा है, “कल्‍याण का शुभ समाचार सुनाने वालों के चरण कितने सुन्‍दर लगते हैं!”


जहाँ तक हो सके, अपनी ओर से सब के साथ शान्‍तिपूर्ण संबंध रखें।


इस में मैंने एक बात का विशेष ध्‍यान रखा। मैंने कभी वहां शुभसमाचार का प्रचार नहीं किया, जहाँ मसीह का नाम सुनाया जा चुका था; क्‍योंकि मैं दूसरों द्वारा डाली हुई नींव पर निर्माण करना नहीं चाहता था,


यदि मैं अपनी इच्‍छा से यह करता, तो मुझे पुरस्‍कार का अधिकार होता। किन्‍तु मैं अपनी इच्‍छा से यह नहीं करता। मुझे जो कार्य सौंपा गया है, मैं उसे पूरा करता हूँ।


यदि दान देने की उत्‍सुकता है, तो सामर्थ्य के अनुसार जो कुछ भी दिया जाए, वह परमेश्‍वर को ग्राह्य है। किसी से यह आशा नहीं की जाती है कि वह अपने सामर्थ्य से अधिक दान दे।


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