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योएल 1:18 - पवित्र बाइबिल CL Bible (BSI)

18 पशु कैसे कराह रहे हैं, रेवड़ के पशु विकल हैं, क्‍योंकि उनके लिए चरागाह नहीं हैं। भेड़-बकरियाँ भी विपत्ति का शिकार हो गईं।

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पवित्र बाइबल

18 हमारे पशु भूख से कराह रहे हैं। हमारे मवेशी खोये—खोये से इधर—उधर घूमते हैं। उनके पास खाने को घास नहीं हैं। भेड़ें मर रही हैं।

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Hindi Holy Bible

18 पशु कैसे कराहते हैं? झुण्ड के झुण्ड गाय-बैल विकल हैं, क्योंकि उनके लिये चराई नहीं रही; और झुण्ड के झुण्ड भेड़-बकरियां पाप का फल भोग रही हैं॥

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पवित्र बाइबिल OV (Re-edited) Bible (BSI)

18 पशु कैसे कराहते हैं? झुण्ड के झुण्ड गाय–बैल विकल हैं, क्योंकि उनके लिये चराई नहीं रही; और झुण्ड के झुण्ड भेड़–बकरियाँ पाप का फल भोग रही हैं।

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सरल हिन्दी बाइबल

18 पशु कैसे कराह रहे हैं! पशुओं के झुंड के झुंड विचलित हो भटक रहे हैं क्योंकि उनके लिए चरागाह नहीं है; यहां तक कि भेड़ों के झुंड भी कष्ट में हैं.

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इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) हिंदी - 2019

18 पशु कैसे कराहते हैं? झुण्ड के झुण्ड गाय-बैल विकल हैं, क्योंकि उनके लिये चराई नहीं रही; और झुण्ड के झुण्ड भेड़-बकरियाँ पाप का फल भोग रही हैं।

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योएल 1:18
10 क्रॉस रेफरेंस  

राजा अहाब ने ओबद्याह से कहा, ‘आओ, हम दोनों देश के समस्‍त जल-स्रोतों और घाटियों को जाएं। कदाचित हमें वहाँ चारा-पानी मिले, और हम घोड़ों तथा खच्‍चरों को मरने से बचा सकें। यों हम कुछ पशुओं को नहीं खोएंगे।’


राजा सुलेमान तथा उसके समीप एकत्र हुआ समस्‍त इस्राएली आराधकों का समूह मंजूषा के सम्‍मुख खड़ा हुआ। उन्‍होंने इतनी अधिक भेड़ों और बैलों की बलि चढ़ाई कि उनकी गणना नहीं की जा सकती। बलि-पशु असंख्‍य थे।


कब तक देश विलाप करता रहेगा? कब तक हमारे चरागाह की घास सूखती रहेगी? क्‍योंकि देशवासियों के दुष्‍कर्मों के कारण पशु और पक्षी भी नष्‍ट हो गए हैं: ये दुष्‍कर्मी कहते हैं, ‘प्रभु हमारा आचरण नहीं देखता है।’


इस कारण देश मृत्‍यु-शोक मना रहा है, सब निवासी कष्‍ट से मुरझा गए हैं; वन-पशु, आकाश के पक्षी; समुद्र की मछलियाँ भी मर गई हैं।


मैदान के पशु भी तेरी ओर ताक रहे हैं; क्‍योंकि जल-स्रोत सूख गए, निर्जन प्रदेश के चरागाहों को आग ने भस्‍म कर दिया।


आमोस ने कहा, ‘प्रभु सियोन से हुंकार रहा है, वह यरूशलेम से गरज रहा है। चरवाहों के चरागाह शोक मना रहे हैं, कर्मेल पर्वत की चोटी सूख गई है।’


यद्यपि अंजीर वृक्ष में फूल नहीं आए, अंगूर-लताओं में फल नहीं लगे, जैतून के फलों की फसल नहीं हुई, खेतों में भी अन्न नहीं उपजा, बाड़ों में भेड़-बकरी नहीं रही, और पशुशालाओं में गाय-बैल नहीं रहे,


सुनो, इसलिए तुम्‍हारे सिर के ऊपर का आकाश ओस नहीं बरसाता और नीचे की धरती उपज पैदा नहीं करती।


हम जानते हैं कि समस्‍त सृष्‍टि मिलकर अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराह रही है


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