12 ‘ओ मानव, तू अपने जाति-भाई-बहिनों से बोल : जब कोई धार्मिक मनुष्य अपराध करता है तब उसकी धार्मिकता उसको अपराध के दण्ड से नहीं बचा सकती। यदि दुर्जन अपना बुरा आचरण छोड़ दे तो वह निस्सन्देह पाप के दण्ड से बचेगा। यदि धार्मिक मनुष्य पाप करे तो उसकी धार्मिकता उसको मरने से नहीं बचा सकेगी।
12 “मनुष्य के पुत्र, अपने लोगों से कहो: ‘यदि किसी व्यक्ति ने अतीत में पुण्य किया है तो उससे उसका जीवन नहीं बचेगा। यदि वह बच जाये और पाप करना शुरु करे। यदि किसी व्यक्ति ने अतीत में पाप किया, तो वह नष्ट नहीं किया जाएगा, यदि वह पाप से दूर हट जाता है। अत: याद रखो, एक व्यक्ति द्वारा अतीत में किये गए पुण्य कर्म उसकी रक्षा नहीं करेंगे, यदि वह पाप करना आरम्भ करता है।’
12 और हे मनुष्य के सन्तान, अपने लोगों से यह कह, जब धमीं जन अपराध करे तब उसका धर्म उसे बचा न सकेगा; और दुष्ट की दुष्टता भी जो हो, जब वह उस से फिर जाए, तो उसके कारण वह न गिरेगा; और धमीं जन जब वह पाप करे, तब अपने धर्म के कारण जीवित न रहेगा।
12 हे मनुष्य के सन्तान, अपने लोगों से यह कह, जब धर्मी जन अपराध करे तब उसका धर्म उसे बचा न सकेगा, और दुष्ट की दुष्टता भी जो हो, जब वह उस से फिर जाए, तो उसके कारण वह न गिरेगा; और धर्मी जन, यदि वह पाप करे, तब अपने धर्म के कारण जीवित न रहेगा।
12 “इसलिये, हे मनुष्य के पुत्र, अपने लोगों से कहो, ‘यदि कोई धर्मी व्यक्ति आज्ञा नहीं मानता है, तो उसके पहले के धर्मीपन का कोई मतलब नहीं होगा. और यदि कोई दुष्ट व्यक्ति पश्चात्ताप करता है, तो उस व्यक्ति के पहले की दुष्टता के कारण उसे दंड नहीं मिलेगा. जो धर्मी व्यक्ति पाप करता है, वह जीवित नहीं रहेगा, यद्यपि वह पहले धर्मी था.’
12 हे मनुष्य के सन्तान, अपने लोगों से यह कह, जब धर्मी जन अपराध करे तब उसकी धार्मिकता उसे बचा न सकेगी; और दुष्ट की दुष्टता भी जो हो, जब वह उससे फिर जाए, तो उसके कारण वह न गिरेगा; और धर्मी जन जब वह पाप करे, तब अपनी धार्मिकता के कारण जीवित न रहेगा।
तब यदि मेरे निज लोग, जो मेरे अपने लोग हैं, जिनको मैंने अपना नाम दिया है, स्वयं को विनम्र और दीन बनाएंगे, मुझसे प्रार्थना करेंगे, और मेरे मुख का दर्शन प्राप्त करने का प्रयत्न करेंगे, और अपने बुरे आचरण को छोड़ देंगे, तो मैं स्वर्ग से उनकी प्रार्थना को सुनूंगा, और उनके पाप क्षमा कर दूंगा, मैं उनके देश को रोग-मुक्त कर दूंगा।
किन्तु यदि वह राष्ट्र जिस के विनाश के सम्बन्ध में मैंने घोषणा की थी, अपने बुरे मार्ग को छोड़कर मेरी ओर लौटता है, तो मैं पछताता हूं कि मैंने उस राष्ट्र का अनिष्ट करने का निश्चय किया था।
‘किन्तु यदि पाप करनेवाला दुर्जन अपने कुकर्म के मार्ग को छोड़ दे, और मेरी संविधियों का पालन करने लगे; यदि वह न्याय और धर्म के अनुरूप आचरण करने लगे तो वह मरेगा नहीं, वरन् जीवित रहेगा।
यदि मैं दुर्जन से यह कहूंगा, “तू अपने दुष्कर्म के कारण निश्चय मरेगा” और तू उसको चेतावनी नहीं देगा, और न उसको अपना कुमार्ग छोड़ने के लिए सावधान करेगा कि वह चेतावनी सुनकर अपना प्राण बचा ले, तो, ओ मानव, सुन, वह दुर्जन अपने दुष्कर्मों के कारण तो मरेगा ही, परन्तु मैं उसकी मृत्यु का दोष तेरे माथे ही मढूंगा।
‘ओ मानव, तू अपने जाति-भाई-बहिनों से बोल। तू उनसे यह कहना: जब मैं किसी देश पर उसके शत्रु के द्वारा आक्रमण करवाता हूं, तब वहां की जनता अपने में से किसी व्यक्ति को चुनती है, और उसको अपने देश का पहरेदार नियुक्त करती है।
फिर भी तुम, ओ इस्राएल के वंशजो, कहते हो, “प्रभु का व्यवहार न्यायपूर्ण नहीं है।” जबकि मैं तुम में से प्रत्येक व्यक्ति का न्याय उसके आचरण के अनुसार करता हूँ।’
परमेश्वर ने चाहा कि येशु अपना रक्त बहा कर पाप का प्रायश्चित करें, जिसका फल विश्वास द्वारा प्राप्त होता है। परमेश्वर ने इस प्रकार अपनी धार्मिकता का प्रमाण दिया; क्योंकि उसने अपनी सहनशीलता के अनुरूप पिछले युगों के पापों को अनदेखा कर दिया था।
मेरे बच्चो! मैं तुम लोगों को यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो। किन्तु यदि कोई पाप करे, तो पिता के पास हमारे एक सहायक विद्यमान हैं, अर्थात् धर्मात्मा येशु मसीह।