मैं (परमेश्वर) उससे उसकी सारी हँसी खुशी छींन लूँगा। मैं उसके वार्षिक उत्सवों, नये चाँद की दावतों और विश्राम के दिनों के उत्सवों का अंत कर दूँगा। मैं उसकी सभी विशेष दावतों को रोक दूँगा।
उसकी अँगूर की बेलों और अंजीर के वृक्षों को मैं नष्ट कर दूँगा। उसने कहा था, ‘ये वस्तुएँ मेरे प्रेमियों ने मुझे दी थीं।’ किन्तु अब मैं उसके बगीचों को बदल डालूँगा। वे किसी उजड़े जंगल जैसा हो जायेंगे। उन वृक्षों से जंगली जानवर आकर अपनी भूख मिटाया करेंगे।
इसलिये मैं (यहोवा) वापस आऊँगा और अपने अनाज को उस समय वापस ले लूँगा जब वह पक कर कटनी के लिये तैयार होगा। मैं उस समय अपने दाखमधु को वापस ले लूँगा जब अँगूर पक कर तैयार होंगे। अपनी ऊन और सन को भी मैं वापस ले लूँगा। ये वस्तुएँ मैंने उसे इसलिये दी थीं कि वह अपने नंगे तन को ढक ले।
तुम गरीबों से अनुचित कर वसूलते हो। तुम उनसे ढेर सारा गेहूँ लेते हो और इस धन का उपयोग तुम तराशे पत्थरों से सुन्दर महल बनाने में करते हो। किन्तु तुम उन महलों मे नहीं रहोगे। तुम अंगूरों की बेलों के सुन्दर खेत बनाते हो। किन्तु तुम उनसे प्राप्त दाखमधु को नहीं पीओगे।
सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “तुम बहुत अधिक पाने की चाह में रहते हो, किन्तु तुम्हें नहीं के बराबर मिलता हैं। तुम जो कुछ भी घर पर लाते हो, मैं इसे उड़ा ले जाता हूँ! क्यों क्योंकि मेरा मंदिर खंडहर पड़ा है। किन्तु तुम लोगों में हर एक को अपने अपने घरों की पड़ी है।
एक व्यक्ति बीस माप अनाज की ढेर के पास आता है, किन्तु वहाँ उसे केवल दस ही मिलते हैं और जब एक व्यक्ति दाखमधु के पीपे के पास पचास माप निकालने आता है तो वहाँ वह केवल बीस ही पाता है!